नवरात्र को लेकर शहर में भक्ति का माहौल बनने लगा है. चारों ओर मां दुर्गा के भजन बजने लगे हैं. मंदिरों व घर-मोहल्लों की साफ-सफाई पूरी हो गयी है. गुरुवार को कलश स्थापना के साथ शारदीय नवरात्र शुरू होगा. शारदीय नवरात्र आश्विन शुक्ल प्रतिपदा गुरुवार दिनांक 25 सितंबर को कन्या राशि, दैनिक हस्त नक्षत्र व ब्रहयोग में प्रारंभ हो रहा है.
ज्योतिषाचार्य डॉ सदानंद झा बताते हैं कि कलश स्थापन प्रतिपदा में इसी दिन दोपहर 12:37 बजे तक कर लेना चाहिए. एक अक्तूबर को रात्रि में पत्रिका प्रवेश, सरस्वती का आवाहन, रात्रि जागरण, महारात्रि निशा पूजा होगी. गुरुवार दो अक्तूबर को महाअष्टमी व नवमी व्रत मनाया जायेगा. इस दिन प्रात: 8:39 बजे तक अष्टमी है. इसके बाद नवमी का प्रवेश होगा. शुक्रवार प्रात: 6:35 बजे तक नवमी है. इसके बाद दशमी तिथि का प्रवेश होगा. इसी में देवी विसजर्न, नवरात्र व्रत का पारण, अपराजिता पूजा, त्रिशुलनी पूजा, जयंती धारण आदि किया जायेगा. ज्योतिषाचार्य डॉ सदानंद झा बताते हैं कि इस बार 25 सितंबर को मां का आगमन डोला पर हो रहा है, जिसे अशुभ माना जाता है. इसमें महामारी, रोग, शोक, भूकंप, झांझावात आदि की आशंका रहती है. गज पर मां भगवती का प्रस्थान विजया दशमी के दिन होगा, जो कि शुभ है. यह सुवृष्टि, अच्छी फसल की संभावना, जन-जीवन के लिए शांति का द्योतक होता है.
शक्ति की उपासना सर्वोपरि
पूजा को लेकर श्रद्धालुओं ने अपने पुरोहित से संपर्क साधना शुरू कर दिया है. नवरात्र को लेकर पंडित जी की व्यस्तता बढ़ गयी है. इससे लोगों को दूसरे स्थानों के पंडित जी से भी संपर्क करना पड़ रहा है. हालांकि अधिकांश श्रद्धालुओं ने पूजा विधि एकत्र भी कर ली है. कुछ श्रद्धालुओं ने पंडित जी के अभाव में खुद ही दुर्गा सप्तशती का पाठ करने का मन बनाया है. आदमपुर के प्रभाष चंद्र का कहना है वे पहले पंडितजी से पूजा कराते थे, लेकिन अब खुद ही पाठ करते हैं. ज्योतिषाचार्य प्रो सदानंद झा ने बताया कि ऐश्वर्य, पराक्रम, ज्ञान, आत्मतत्व, विद्यातत्व और शिवतत्व की प्राप्ति के लिए शक्ति उपासना सर्वोपरि है. शक्ति उपासना वैदिक काल से पौराणिक युग तक सात्विक एवं भाव प्रधान रहा है. दुर्गा सप्तशती को मंत्रों, देवी भागवत के पाठों एवं नवार्ण मंत्र जय एवं सात्विक हवन द्वारा भुक्ति-मुक्ति की प्राप्ति होती है. आश्विन शुक्ल पक्ष में मां दुर्गा की पूजा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ये चारों फल देने वाली है.
जयंती धारण करने की विधि
कलश स्थापना के समय जौ और गेहूं कलश के नीचे गंगा मिट्टी में रखा जाता है. जो कलश व प्रतिमा विसर्जन के समय तक अंकुरित हो जाता है. इसे ही जयंती कहा जाता है. इसे मंत्रोच्चरण के साथ कान में धारण किया जाता है.
जयंती धारण करने का मंत्र
ओम जयंति मंगला काली भद्रकाली कपालिनी.
दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते.
विद्युद्दाम समव्रभां मृगपति स्कंधस्थितां भीषणां,
कन्याभि: करवाल खेट विलसद्धस्ता भिरासेविताम्.
हस्तैश्र्चक्र गदासिरवेट विशिरवांश्र्चापं गुणं तर्जनीं.
बिश्र्राणाभनलात्मिकां शशिधरां दुर्गा त्रिनेत्रं भजे.
कलश स्थापना की सामग्री
कलश स्थापना के लिए गंगा जल के साथ पंचरत्न (स्वर्ण, हीरा, पद्मराज, सप्तमृतिका, पंचपल्लव, सर्वोषधि, रक्तवस्त्र(लाल सालूक), नारियल ये सभी वस्तुएं वैदिक मंत्रोच्चर द्वारा मिट्टी के कलश में दिया जाना चाहिए. इसके बाद मां भगवती षोडषोपचार पूजन, दुर्गा के सभी अंगों वाहन, परिकर, नव चंडिका, नव दुर्गा, नवग्रह, दशदिक्पाल, षोडष मातृका आदि का उनके मंत्रों से आवाहन पंचोपचार, पुष्पांजलि एवं आरती सहित की जानी चाहिए. पंडित रमेश चंद्र झा ने बताया कि नवरात्र में हरेक दिन संकल्प के साथ पूजन होना चाहिए.
दो से 10 वर्ष की कुंवारी कन्याओं का पूजन
उन्होंने बताया कि अष्टमी व नवमी को कुंवारी कन्याओं का पूजन होता है. इस दौरान पूजन के साथ-साथ कुंवारी कन्याओं को भोजन कराया जाता है. इसके लिए कन्याओं की संख्या नौ हो एवं इनकी उम्र दो से 10 वर्ष हो. इसे उत्तम माना जाता है.