भागलपुर: वर्तमान नगर सरकार (नगर निगम) की कार्यकारिणी दो दिन बाद पहली वर्षगांठ मनायेगी. पिछले एक साल के दौरान ऐसा कोई काम नहीं हुआ जिस पर इतराया जा सके. नगर निगम में पार्षदों, कर्मचारियों की गुटबाजी चरम पर रही. विकास के लिए एकजुटता की कमी साफ दिखाई पड़ी. राज्य सरकार का रवैया भी उत्साहजनक नहीं रहा. नगर निगम एक स्थायी नगर आयुक्त के लिए तरसता रह गया.
भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की मेयर की कोशिश भी बहुत रंग ला पायी. अन्य वार्ड की बात तो छोड़िए महापौर व उपमहापौर के वार्ड के लोग भी सुविधा के लिए तरसते रहे. निगम के पास गिनाने लायक काम बस स्ट्रीट लाइट लगाने का ही रहा. बेहतर सफाई, उत्तम पेयजल व्यवस्था और सुंदर शहर के सपने में भी पंख लगता नहीं दिखा. नयी नगर सरकार से शहरवासियों को काफी उम्मीदें थीं, पर साल पूरा होते-होते हर अरमान पर पानी फिर गया.
राज्य सरकार ने भी छला
किसी भी निगम को चलाने के लिए स्थायी अधिकारी व पर्याप्त कर्मचारियों का होना जरूरी है. पर भागलपुर नगर निगम में 2011 से स्थायी नगर आयुक्त की नियुक्ति नहीं हुई. वर्तमान में भी डीडीसी राजीव रंजन सिंह रंजन नगर आयुक्त के प्रभार में हैं. वहीं नगर सचिव का प्रभार सुलतानगंज में कार्यपालक पदाधिकारी दिनेश राम के पास है. निगम का दूसरा महत्वपूर्ण पद अपर नगर आयुक्त का पद 2009-10 से ही खाली है. जिन लोगों को प्रभार दिया जाता रहा वह पहले से ही काफी महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं.
ऐसी स्थिति में उनसे यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह पूरी तरह नगर निगम को समय देंगे और भागलपुर की स्थिति सुधरेगा. नगर के विकास के लिए आयी राशि वेतन मद पर खर्च की जाती रही है. इसको लेकर यहां के पार्षदों ने धरना भी दिया, पर हुआ कुछ नहीं. काम करने की जगह राजनीति होती रही. ध्यान देने योग्य है कि यहां हमेशा नगर विकास मंत्री आते रहे हैं. पर सिर्फ घोषणाएं हुई हुआ कुछ नहीं. यहां यह कहना गलत नहीं होगा कि राज्य सरकार ने भी इस महत्वपूर्ण व ऐतिहासिक शहर को उपेक्षित किया.