भागलपुर : आंगन-बाहर में फुदकते, बच्चों के समीप पहुंच कर दाना चुगते ही फुर्र होते साधारण सी छोटी पक्षी गोरैया से शायद ही कोई हो, जो परिचित न हो. लेकिन गोरैया की पहले जैसी चहचहाहट सुनने को नहीं मिलती. गौरैया विलुप्ति के कगार पर नहीं है, लेकिन मानव आबादी के बीच इनकी संख्या में कमी आ गयी है.विशेषज्ञ कहते हैं कि गांव से शहर तक पहले गोरैया को घास के घर के मुंडेर मिल जाते थे.
घर में वैसी जगह मिल जाती थी, जहां वह घोंसला बना कर रह सके और प्राकृतिक माहौल का अनुभव करे. पहले गोरैया को हर 50 डेग पर कई आंगन मिल जाते थे, जहां बिखरे दाने वह चुग पाती थी. लेकिन अब न मुंडेर रहा, न आंगन. अब कंक्रीट के घर हैं और उसमें बड़ी आबादी का बास. गोरैया भी धीरे-धीरे अपने व्यवहार में बदलाव किया और पक्षियों के बीच जंगल में डेरा डाल लिया.
तिलकामांझी भागलपुर विवि के जंतु विज्ञान विभाग के शिक्षक डॉ डीएन चौधरी कहते हैं कि गोरैया विलुप्त नहीं हो रही है. जगह नहीं मिलने के कारण शिफ्ट कर रही है. दूसरा इस छोटी सी पक्षी पर मोबाइल टावरों का प्रभाव हो रहा है. उन्होंने बताया कि टावर से निकलनेवाले विद्युत चुंबकीय तरंग के कारण उसके व्यवहार में बदलाव हुआ है. हमें गोरैया के लिये बाहर में दाना छिड़कना चाहिए. घर के बाहर किसी कोने पर बर्तन टांग कर रखना चाहिए. बीज में कीटनाशक मिलाकर नहीं छिड़कना चाहिए.