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घर बनाता हूं औरों के लिए, पर खुद के आशियाने की मुझे अब तक है तलाश
भागलपुर : मालिक, तीन सौ रुपये में परिवार के दर्जनभर लोगों की बेहतर परवरिश तो नहीं हो पाती, हां काफी मुश्किल और जद्दोजहद के बाद पेट पल जाता है. ये शब्द थे, शहजंगी राजावाड़ी के मो अहमद के. अहमद की उम्र ने 45 की ही दहलीज लांघी होगी, लेकिन वक्त की तासीर ने क्रम उम्र […]
भागलपुर : मालिक, तीन सौ रुपये में परिवार के दर्जनभर लोगों की बेहतर परवरिश तो नहीं हो पाती, हां काफी मुश्किल और जद्दोजहद के बाद पेट पल जाता है. ये शब्द थे, शहजंगी राजावाड़ी के मो अहमद के. अहमद की उम्र ने 45 की ही दहलीज लांघी होगी, लेकिन वक्त की तासीर ने क्रम उम्र में ही उनके चेहरे पर लकीरनुमा चंद सिलवटें बना दी थीं. … और ये लकीरें बन बैठीं थीं इस बात का गवाह कि, सिकन आये भी तो चेहरे से ढुलका पसीना उसके पत्थर दिल को पसीजने न दे.
अहम को मजदूर दिवस का पता तो नहीं, हां रोजाना मजदूरी मिल जाये इस बात की जरूर उम्मीद लिये वह अपने घर से रोजाना निकलता है. ताकि अपने मासूमों को दो वक्त का निवाला मिल सके. अहम ने कम उम्र से ही न जाने कितने ही लोगों के लिए आशियाने बनाये, लेकिन दिल में एक खलिस रह गयी कि, इस उम्र में उसे एक अदद सा बेहतर आशियाना नसीब हो पाये. हां, अहम के लिए उम्मीदों का दीया एक वक्त रोशन नजर आता है, जब वह उम्मीद भरी जुबां से यह कह जाता है कि, बड़ा बेटा 12 साल का है, जल्द ही वह परिवार की परवरिश का भागीदार बनेगा. दाऊद वाट के ठेला चालक विक्रम पासवान का है.
ठेला लेकर कुछ कमाने की उम्मीद में निकले विक्रम के लिए सोमवार की बरसात ने पानी फेर दिया. अब दिनभर इस उम्मीद कटेगी कि, कब उसके ठेले पर बोझ लदे, ताकि वह अपनों की परवरिश का बोझ बमुश्किल ही सही, निभा सके. ऐसे सैकड़ों मजदूर हैं जो मजदूर दिवस नहीं, दो जून की रोटी का दर्द जानते हैं.
प्रतिदिन 15 हजार मजदूर आते हैं शहर, 12 हजार लौट जाते बिना काम : 15 हजार मजदूर शहर के विभिन्न चौक-चाैराहे पर काम की आस में सुबह-सुबह खड़े रहते हैं. तीन से चार हजार मजदूरों को ही काम मिल पाता है. 12 हजार मजदूरों को बिना काम वापस लौटना पड़ता है.
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