इसके बाद ही भागलपुर की एक अदालत ने छह नवंबर, 2009 को इस मामले में यादव (58) को दोषी ठहराया था. न्यायमूर्ति ए के सीकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने राज्य सरकार की अपील विचारार्थ स्वीकार की और इस मामले में शीघ्र सुनवाई का निर्देश दिया.
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कामेश्वर को बरी किये जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में होगी सुनवाई
नयी दिल्ली/भागलपुर: 1989 भागलपुर सांप्रदायिक दंगों के मामले में कामेश्वर प्रसाद यादव को बरी करने के पटना हाइकोर्ट के फैसले के खिलाफ बिहार सरकार की अपील पर सुप्रीम कोर्ट विचार करने के लिए सहमत हो गया है. इन दंगों में एक हजार से अधिक लोग मारे गये थे. नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार ने […]
नयी दिल्ली/भागलपुर: 1989 भागलपुर सांप्रदायिक दंगों के मामले में कामेश्वर प्रसाद यादव को बरी करने के पटना हाइकोर्ट के फैसले के खिलाफ बिहार सरकार की अपील पर सुप्रीम कोर्ट विचार करने के लिए सहमत हो गया है. इन दंगों में एक हजार से अधिक लोग मारे गये थे. नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार ने 2006 में दंगों के मामलों को फिर से खोलने का फैसला किया था.
राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता केटीएस तुलसी और अधिवक्ता शोएब आलम ने कहा कि उच्च न्यायालय ने प्राथमिकी दर्ज होने में देरी के आधार पर दोष सिद्ध के आदेश को गलत ढंग से निरस्त किया. यह स्थापित कानून है कि सांप्रदायिक दंगों से जुड़े मामलों में प्राथमिकी में देरी इस तथ्य के आलोक में देखी जायेगी कि शहर में उथल पुथल मची हुई थी ओर लोग परेशान थे. साजिशकर्ताओं के खिलाफ गवाही के लिए आगे आने से डरे हुए थे या नहीं.यादव को 2007 में पहली बार गिरफ्तार किया गया था. वह दंगों के तीन अलग-अलग मामलों में बरी हो चुके हैं और हाइकोर्ट द्वारा इस मामले में सुनाये गये फैसले के बाद वह जुलाई में जेल से बाहर आये थे. यादव के खिलाफ 1990 में भागलपुर पुलिस ने हत्या के करीब तीन महीने बाद कयामुद्दीन के पिता की शिकायत पर मामला दर्ज किया था. नीतीश सरकार ने 2005 में भागलपुर दंगों के 27 मामलों को नये सिरे से खोलने का फैसला किया था.
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