लगभग दो सौ साल से इस प्राचीन मंदिर में पूजा होती है. मां की प्रतिमा स्थापित की जाती है. सबसे बड़ी बात यह है कि इस मंदिर में कभी भी लाउडस्पीकर का उपयोग नहीं किया गया, न ही सजावट के लिए झालर और लाइट बत्ती लगे. मंदिर में पूजा अर्चना होती है. पहली बार मंदिर के ऊपर तिरपाल का प्रयोग किया गया है, कारण मंदिर का कुछ हिस्सा गंगा में समा गया है. छत सही नहीं है इसलिए बारिश से बचने के लिए यह प्रयोग किया गया है.
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200 साल पुराने मंदिर में पारंपरिक तरीके से होती है पूजा
भागलपुर : शहर में मां दुर्गा की पूजा हो रही है. पूरे शहर में भजन गूंज रहे हैं. कई जगह विशाल पंडाल बनाये गये हैं. लाखों रुपये सजावट पर खर्च हो रहे हैं. कई जगह कार्यक्रम का आयोजन हो रहा है, लेकिन इस सभी से अलग बरारी के कायस्थ टोले में गंगा किनारे स्थित दुर्गा […]
भागलपुर : शहर में मां दुर्गा की पूजा हो रही है. पूरे शहर में भजन गूंज रहे हैं. कई जगह विशाल पंडाल बनाये गये हैं. लाखों रुपये सजावट पर खर्च हो रहे हैं. कई जगह कार्यक्रम का आयोजन हो रहा है, लेकिन इस सभी से अलग बरारी के कायस्थ टोले में गंगा किनारे स्थित दुर्गा मंदिर में पारंपरिक तरीके से दुर्गापूजा होती है.
सप्तमी से दशमी तक लगता है चूड़ा-दही का भोग
मंदिर में दुर्गापूजा का आयोजन दास परिवार करता आ रहा है. यह मंदिर इन्हीं का है, मंदिर की देखरेख और पूजा का दायित्व संभालने वाले गोपेश चंद्र दास बताते हैं कि इस मंदिर में पूजा-अर्चना 1734 में ही शुरू हुई थी. इस परंपरा को मेरे दादाजी ललन बाबू ने निभाया फिर मेरे पिता रमेश चंद्र दास ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया. अब मेरे बड़े भाई राजेश चंद्र दास और मैं निभा रहा हूं. मेरे बड़े भाई इस मंदिर के मेढ़पति हैं. मंदिर में जिउतिया पूजा से पूजा शुरू हो जाती है. सप्तमी से दशमी पूजा तक चूड़ा-दही और मिठाई का भोग लगता है. दसवीं पूजा को प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है. पूजा में कायस्थ टोले के सभी लोग पूजा में भाग लेते हैं. उन्होंने बताया कि मंदिर में कभी भी लाउडिस्पीकर पर पूजा का प्रसारण नहीं होता है. बिजली के झालर का प्रयोग नहीं किया जाता है.
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