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सृजन का राज जाननेवालों को मिलती थी मुंहमांगी कीमत

प्रशासनिक अधिकारियों, बैंकिंग अधिकारियों, रईस लोगों की की पत्नियों को भी बनाने लगी थी सदस्य भागलपुर : करोड़ों के सृजन घोटाले का पर्दाफाश होने के बाद से चर्चाओं का बाजार गरम है. एक चर्चा यह भी है कि संस्था का राज जाननेवालों को मनोरमा देवी खरीद लेती थी. ऐसे लोगों को पहले लालच दिया जाता […]

प्रशासनिक अधिकारियों, बैंकिंग अधिकारियों, रईस लोगों की की पत्नियों को भी बनाने लगी थी सदस्य

भागलपुर : करोड़ों के सृजन घोटाले का पर्दाफाश होने के बाद से चर्चाओं का बाजार गरम है. एक चर्चा यह भी है कि संस्था का राज जाननेवालों को मनोरमा देवी खरीद लेती थी. ऐसे लोगों को पहले लालच दिया जाता था अगर बात बन जाती थी तो ठीक, अन्यथा उनकी कमजोरी पकड़ कर उन्हें बिकने को मजबूर किया जाता था. फिर भी वे नहीं मानते थे, तो घोटाले में संलिप्त सफेदपोशों से जान जाने की धमकी तक दी जाती थी. यही वजह है राज जानने वाले किसी न किसी तरह से बिक ही जाते थे.
ऐसे में संस्था का राज बना ही रह गया. संस्था से जुड़ने वाले प्रशासनिक और बैंकिंग अधिकारियों, रईस लोगों की संख्या कम नहीं थी. सालों से जुड़े रहने के कारण वे लखपति और करोड़पति तक हो गये. फिर भी घोटाले का सिलसिला थमा नहीं. समृद्ध होने के कारण वे सभी इस दलदल से न निकल जाये, इसलिए उनकी पत्नियों को भी संस्था का सदस्य बनाया जाने लगा था, ताकि संस्था फलती-फूलती रहे.
सरकार से बैंकिंग का दर्जा मिलने से पहले सृजन फलने-फूलने लगे थे
दरअसल उस समय सबौर में एक ही राष्ट्रीयकृत बैंक था. इसका फायदा सृजन को मिला. इलाके में एक ही बैंक होने की वजह से जरूरतमंद सृजन की ओर रुख करने लगे थे. बताया जाता है कि सृजन संस्था दूसरे बैंकों से सस्ती दर पर पैसे लेती थी और अपने कस्टमर को ज्यादा दर पर लोन देती थी.
सृजन अकाउंट में कुछ इस तरह आते थे पैसे
सरकार ने अपने एक फैसले में कहा था कि सभी सरकारी मद के पैसे एक ही बैंक में आयेंगे. वह बैंक था भारतीय स्टेट बैंक. लेकिन सभी नियमों को ताक पर रखते हुए सरकारी योजना के पैसे इंडियन बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा में जमा कराये गये. फिर वहां से सारे पैसे सृजन नामक संस्था में ट्रांसफर कर दिये जाते थे.
सरकारी योजना का पैसा मार्केट में बिजनेस के नाम पर जाता था
जांच में पता चला है कि 27 सितंबर 2014 को ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स से 12.20 करोड़ रुपये का चेक इशू किया गया था जिसे मुख्यमंत्री नगर विकास योजना के खाते में इंडियन बैंक में जमा करने के लिए भेजा गया. यह चेक सृजन के खाते में जमा किया गया. मालूम हो कि इस चेक के जमा होने के महज तीन दिन बाद सृजन का रजिस्ट्रेशन को-ऑपरेटिव सोसाइटी बैंक के रूप में हुआ था. कुछ इस तरह के ऐसे कई मामले थे, जिसमें पैसे तो किसी दूसरे योजना के लिए होते थे. पर यह पैसा किसी न किसी तरह सृजन के खाते में जमा हो जाता था. फिर बाद में यह पैसा सृजन के कॉपरेटिव बैंक से मार्केट में बिजनेस के नाम पर निकल जाता था. प्रशासन की ओर से भी मुख्यमंत्री नगर विकास योजना के लिए 5.5 करोड़ रुपये का चेक जमा किया गया था. चेक तो इस खाता में जमा हुआ लेकिन बाद में तीन चेक के माध्यम से यह पैसा फिर सृजन के खाते में चला गया.

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