भागलपुर : न्यूरो कांग्रेस में भाग लेने के लिए होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ नीतीश दुबे आगामी आठ अक्तूबर को जर्मनी की राजधानी बर्लिन जायेंगे. यह 25वां न्यू कांग्रेस वर्ल्ड न्यूरो सायकियाट्रिक एसोसिएशन द्वारा आयोजित होगा. वर्ल्ड न्यूरो मीट में 21वीं शताब्दी में होनेवाले न्यूरोलॉजिकल समस्याओं व उसके समाधान पर परिचर्चा होगी. यह पहला मौका होगा, जब वर्ल्ड न्यूरो कांग्रेस में होम्योपैथी के विशेषज्ञ को भी अपनी बात रखने का मौका मिलेगा.
प्रत्येक तीन साल पर आयोजित होनेवाले इस समारोह में पूरी दुनिया के जाने माने चिकित्सा शास्त्री जुटेंगे. वर्ल्ड नयूरो साइकियाट्रिक एसोसिएशन के तत्वावधान में भारत के कई प्रसिद्ध न्यूरोलॉजिस्ट को कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया है. लगभग 145 से अधिक देशों के चिकित्सा शास्त्री इस सेमिनार में भाग लेंगे.
मेडिकल यूनिवर्सिटी आॅफ वियाना के चीफ डॉक्टर वी वान वांगटन की अध्यक्षता में विश्व की तमाम नयूरोलोजिकल समस्याओं के समाधान के लिए पूरे विश्व में तेजी से अपनी अपनी विश्वसनीयता बनाने वाले फाइटोथेरेपी पर विशेष व्याख्यान होगा. इससे पहले भी डॉक्टर नीतीश को यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्ट लंदन एवं होम्योपैथी के सबसे बड़े अनुसंधान केंद्र डच होम्योपैथी यूनियन से आमंत्रण मिल चुका है. इसे लेकर वे जर्मनी व स्विटजरलैंड में आयोजित कार्यक्रम में भाग ले चुके हैं.
जीएसटी का नफा-नुकसान सुखिया दा की नजर में
निशि रंजन
जीएसटी का हल्ला. हल्ला कई शक्ल लेकर गांव तक पहुंच गया. नवतुरिया बुधगर चौखंडी पर बैठ कर पुराने समझदारों से पहलवानी कर रहे हैं. अच्छा या बुरा- तीर, तलवार चल रहे हैं. यहीं सुखिया दा भी बैठे हैं. सुखिया दा पहले से भी सूख गये हैं. गृह कार्य, नाना जंजाला. इसमें सूखेंगे नहीं तो क्या पहलवान बनेंगे. इधर बहस जारी है- नहीं भाई, अच्छा ही हो गया है. पहले सौ जगह टैक्स लगता था, अब समूचे देश में एक जैसा टैक्स. इ नहीं कि यहां खरीदे सामान तो महंगा और भागलपुर में सस्ता. दिल्ली-मुंबई कहीं खरीदो- एक दाम, एक टैक्स. दूसरा बुधगर गोला दागा- खाली सस्ते नहीं होगा, कई सामान महंगे भी तो हो जायेंगे. बतकट्टन और बहस जारी. सुखिया दा का हलक सूखने लगा. इधर चर्चा इस बात पर पहुंच गयी जीएसटी का खेती-किसानी पर क्या असर पड़ेगा
. बुधगर लोग बता रहे हैं- खेती मामले में कोई जीएसटी नहीं है. गेहूं और मकई उपजाइयेगा तो उस पर थोड़े न जीएसटी लगता है. हां, बढ़िया होटल में बैठ कर खाइयेगा तो उस पर जीएसटी लगेगा. सुखिया दा अभी भी बात को ठीक से समझ नहीं सके. लेकिन चर्चा के बीच में कूदते हुए बोले- एक बात बताओ, तीन बीघा में परवल लगाये. परवल क्या लगाये, किस्मत जल गया. आठ आना-एक टका किलो बिकना मुश्किल है. खेत में सड़ रहा है. लोग गाय-मवेशी तक को खिलाना नहीं चाह रहे. यही परवल का सब्जी बढ़िया होटल में बनने के बाद कितना दाम में बिकता है. चर्चा थम गयी, थोड़ी देर के लिए खामोशी तैरती रही. यही जीएसटी है क्या ? परवल उपजानेवाले को एक रुपया किलो का भाव मिलता है और सब्जी बना कर बेचनेवाले 200 रुपये प्लेट बेच रहे हैं. नवतुरिया बुधगर काे भी इ हिसाब जरा अटपटा लग रहा था.