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सिमरिया की मुक्तिधाम योजना खटाई में
लाख कोशिश के बाद भी है कुव्यवस्था का आलम बेगूसराय/बीहट : सिमरिया श्मशान घाट को खुद अपने उद्धारक की बाट जोह रहा है. जबकि सिर्फ बेगूसराय ही नहीं मिथिलांचल के कई जिलों का प्रसिद्ध यह श्मशान घाट लाख कोशिशों के बाद भी कुव्यवस्था का शिकार है और असुरक्षित भी. जिसके कारण प्रत्येक दिन शव के […]
लाख कोशिश के बाद भी है कुव्यवस्था का आलम
बेगूसराय/बीहट : सिमरिया श्मशान घाट को खुद अपने उद्धारक की बाट जोह रहा है. जबकि सिर्फ बेगूसराय ही नहीं मिथिलांचल के कई जिलों का प्रसिद्ध यह श्मशान घाट लाख कोशिशों के बाद भी कुव्यवस्था का शिकार है और असुरक्षित भी. जिसके कारण प्रत्येक दिन शव के दाह संस्कार के लिए आने वाले लोग यहां की व्यवस्था देखकर खिन्न हो जाते हैं. घाट किनारे साफ-सफाई के अभाव में सर्वत्र पसरी गंदगी, जले-अधजले शवों की हड्डियां सिमरिया श्मशान घाट की व्यवस्था की पोल खोलता है.
इतना ही नहीं श्मशान घाट पर कब्जा किये लोगों की गिद्ध दृष्टि परंपरा व सुविधा के नाम पर अर्थालाभ के लिए लगी रहती है.कागज पर सिमट कर रह गयी घोषणा :सिमरिया श्मशान घाट को सुधारने के लिए बड़ी-बड़ी घोषणाएं की गयी लेकिन आज तक उन घोषणाओं को धरातल पर नहीं उतारा जा सका. ये सभी घोषणाएं कागजों पर ही सिमट कर रह गयी. सिमरिया श्मशान घाट में आज तक सड़क, बिजली, पीने का पानी,सुरक्षा, शव यात्रियों के बैठने के लिए शेड की व्यवस्था नहीं की जा सकी है. सिमरिया श्मशान घाट के जमा खाते में फिलहाल घोषित योजनाओं की लंबी फेहरिस्त है. सपनों और उम्मीदों के अलावा जमीन पर अब तक कुछ नहीं उतरा है.
श्मशान घाट तक पहुंचने के लिए नहीं है सड़क की व्यवस्था :बेगूसराय के अलावा दरभंगा,मधुबनी,समस्तीपुर,लखीसराय,शेखपुरा समेत अन्य जिलों से प्रत्येक दिन सिमरिया घाट पहुंचने वाले शवयात्रियों के लिए यहां सड़क की समुचित व्यवस्था नहीं है.नतीजा है कि शव यात्री किसी तरह श्मशान घाट तक पहुंचते हैं.
कई बार देखा गया है कि राजेंद्र पुल से सिमरिया श्मशान घाट तक शवों को ले जाने में गाड़ियां दुर्घटनाग्रस्त हो गयी और उसमें बैठे लोग भी घायल हो गये. सिमरिया श्मशान घाट तक समुचित सड़क की व्यवस्था हो इसके लिए कई बार स्थानीय लोगों के साथ दूसरे जिलों से भी आनेवाले लोगों ने शासन-प्रशासन से मांग की .लेकिन आज तक इसे जमीन पर उतारने में शासन- प्रशासन के लोगों ने दिलचस्पी नहीं दिखायी.
रोशनी व पेयजल की नहीं है समुचित व्यवस्था: श्मशान घाट में आज तक प्रकाश की जहां व्यवस्था नहीं हो पायी है वहीं घाट पर लोगों को पीने के लिए पानी की समुचित व्यवस्था उपलब्ध कराने में शासन-प्रशासन विफल रहा है. सबसे अधिक परेशानी लोगों को जेठ की दोपहरी तथा ठंड के दिनों में होती है. श्मशान घाट पर चापाकल की व्यवस्था नहीं होने से खरीदकर पानी पीते हैं. सबसे अधिक परेशानी रात में शवों को लेकर श्मशान घाट पहुंचने वाले लोगों को होती है. भाड़े पर पेट्रोमेक्स की रोशनी के सहारे दाह संस्कार करना पड़ता है.
रात में असुरक्षित महसूस करते हैं शव लेकर आने वाले लोग :खास करके रात में दाह संस्कार करने आये लोग बेहद असुरक्षित महसूस करते हैं.
पर्याप्त रोशनी के अभाव में लोग कई बार अपराधियों के लूट-पाट निशाना बन चुके हैं. हालांकि स्थानीय चकिया ओपी की सक्रियता से फिलहाल विराम लगा हुआ है. लेकिन इसके बाद भी श्मशान घाट पर पर्याप्त सुरक्षा की जरूरत है. कई बार लोगों ने यहां स्थायी पुलिस चौकी की मांग की ताकि शव लेकर आनेवाले लोग भयमुक्त होकर अंतिम संस्कार करने के बाद सुरक्षित घर लौट सकें.
हाथी का दांत बना हुआ है विद्युत शवदाह गृह :सिमरिया गंगा घाट पर एक करोड़ की लागत से बनाया गया विद्युत शवदाह गृह हाथी का दांत बन कर रह गया है. लगभग 10 वर्षों से शवदाह गृह बंद पड़ा है. जिसके कारण लोग गंगा तट पर ही शवों का दाह-संस्कार करते हैं.
प्राप्त जानकारी के अनुसार 11 मई 2002 को विश्वास बोर्ड ने पांच वर्षों के करार पर उक्त शवदाह गृह को व्यावसायिक श्रेणी में रखते हुए 85 हजार रुपये का मासिक विपत्र भेजना शुरू किया .जिसका भुगतान संभव नहीं था क्योंकि महीने भर में 100 से अधिक शव भी इसमें जल नहीं पाते थे और प्रति शव 300 रुपये लिये जाते थे. स्थानीय जनप्रतिनिधि ने कई बार विश्वास बोर्ड को विद्युत शवदाह गृह को घरेलू आपूर्ति की श्रेणी में रखने के लिए गुहार लगायी थी लेकिन किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया.
फलत: चार मार्च 2006 से विद्युत शवदाह गृह का कनेक्शन काट देने के बाद से यह बंद पड़ा है.महंगे दर पर लकड़ियां खरीदने को विवश हैं लोग :विद्युत शवदाह गृह एवं मुक्ति धाम बंद होने से लोगों की परेशानियां बढ़ रही है. सिमरिया घाट निवासी श्याम शंकर झा, राम रतन झा ,धीरज कुमार सहित अन्य लोगों ने बताया कि सिमरिया गंगा घाट पर प्रतिदिन औसतन पचास से साठ शवों को जलाने में तकरीबन चार सौ मन लकड़ियों का उपयोग किया जाता है. महंगे दामों पर लकड़ियां खरीदने को विवश लोगों के द्वारा अधजली अवस्था में ही शव को गंगा में प्रवाहित कर देने के कारण गंगा और प्रदूषित होती जा रही है.फिलवक्त लाखों की कमाई करने वाला सिमरिया गंगा घाट अपनी किस्मत पर आंसू बहा रहा है.
मुक्ति धाम को लेकर हरकत में आया प्रशासन:सिमरिया श्मशान घाट पर दाह संस्कार करने में लोगों की असुविधा को देखते हुए जिला प्रशासन ने विगत पांच वर्षों से भी अधिक समय से बंद पड़े मुक्तिधाम को फिर से चालू करने की दिशा में पहल शुरू कर दी है. गुरुवार की शाम जिला पदाधिकारी के निर्देश पर सदर एसडीओ विनय कुमार ने बरौनी बीडीओ ओम राजपूत के साथ सिमरिया घाट जाकर मुक्तिधाम का स्थलीय निरीक्षण किया.
उन्होंने बताया कि लकड़ी पर जलने वाले शवों के लिए 6 बेडों वाले मुक्तिधाम को फिर से मूलभूत सुविधाओं से सुसज्जित किया जायेगा. मुक्तिधाम की मौजूदा स्थिति और इसके पुनरुद्धार के लिए आवश्यक कार्रवाई के लिए डीएम के समक्ष रिपोर्ट प्रस्तुत की जायेगी.
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