बन गये हैं सैकड़ों तालाबनुमा गड्ढे, चार साल में भी पीडब्ल्यूडी को नहीं साैंपी गयी
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22 किमी में एक इंच भी नहीं बची है सड़क
बन गये हैं सैकड़ों तालाबनुमा गड्ढे, चार साल में भी पीडब्ल्यूडी को नहीं साैंपी गयी रुपौली(पूर्णिया) : जर्जर से जर्जर सड़क में भी बीच-बीच में कुछ सौ मीटर का रास्ता ऐसा जरूर होता है, जहां वाहन चालक बेफिक्र होकर गाड़ी चला सके. सड़क थोड़ी समतल हो, झटके नहीं लगे. मगर आज जिस सड़क की दास्तान […]
रुपौली(पूर्णिया) : जर्जर से जर्जर सड़क में भी बीच-बीच में कुछ सौ मीटर का रास्ता ऐसा जरूर होता है, जहां वाहन चालक बेफिक्र होकर गाड़ी चला सके. सड़क थोड़ी समतल हो, झटके नहीं लगे. मगर आज जिस सड़क की दास्तान हम बता रहे हैं, उस पूरे 22 किमी की सड़क में एक इंच भी ऐसा नहीं है, जहां वाहन चालक रिलैक्स हो सके. पूरा का पूरा रास्ता ध्वस्त है, गड्ढों और हिचकोलों से भरा है, हर पल सवारी के गिर जाने का खतरा रहता है. वैसे तो यह सड़क न एनएच है और न ही स्टेट हाइवे. मगर रोज सैकड़ों चार पहिया वाहनों, बसों-ट्रकों के चलने और चार जिले के यात्रियों के इससे सफर करने की वजह से यह सड़क खासी महत्वपूर्ण
22 किमी में एक इंच…
है. पिछले चार सालों से यह सड़क और उस पर लाचार होकर सफर करने वाले यात्री बदहाली झेलने को अभिशप्त हैं. यह पूर्णिया जिले के रुपौली प्रखंड से होकर विजय घाट तक जाने वाली ग्रामीण कार्य विभाग की सड़क है. कोसी नदी के किनारे स्थित सुदूरवर्ती इलाके में स्थित इस सड़क का इस्तेमाल मधेपुरा और सहरसा जिले के यात्री भागलपुर और पूर्णिया के कई प्रखंडों के लोग मधेपुरा जाने के लिये करते हैं. इसके अलावा इस सड़क से होकर इस इलाके के तकरीबन सौ गांवों के लोग जिला मुख्यालय पूर्णिया जाते हैं और दस से अधिक प्रधानमंत्री सड़क योजना वाली सड़कें इस सड़क से जुड़ती हैं. इसके बावजूद यह स्टेट हाइवे तो क्या पीएचइडी वाली सड़क भी नहीं है. इसे बिहार सरकार के ग्रामीण कार्य विभाग ने 2006 में बनवाया है. रुपौली प्रखंड मुख्यालय से जैसे ही आप इस सड़क पर चढ़ेंगे इस सड़क की दुर्दशा कीचड़युक्त गड्ढे के रूप में सामने आ जायेगी. उसके बाद ऐसे ही कम से कम सौ-सवा सौ तलाबनुमा कीचड़युक्त गड्ढे आपको इस शहर में मिलेंगे. पूरी सड़क जर्जर व टूटी हुई मिलेगी. पूरे रास्ते में एक इंच जमीन ऐसी नहीं मिलेगी जो समतल हो. कई जगह सड़क नदी की भवरों की तरह लगने लगती है. इस सड़क पर एक बार यात्रा का मतलब रीढ़ की हड्डियों में दर्द हो जाना है.
इस रास्ते के आखिर में स्थित मोहनपुर बाजार के एक जागरूक नवयुवक निमेष नीरव उर्फ गुड्डू कहते हैं कि 2013 से ही इस सड़क का यह हाल है. अक्सर एक्सीडेंट होते हैं. बारिश होने पर पम्पसेट लगाकर बाजार से पानी खिंचवाया जाता है. इस इलाके में मक्के की खेती बहुत होती है. उपजायी गयी फसल को बाजार तक ले जाने में भी किसानों को काफी मुश्किल होती है.
रुपौली-विजय घाट सड़क बदहाल, 2006 में हुआ था निर्माण
सौ से अधिक गांवों के लोगों का है एकलौता सहारा
इस सड़क को बनवाने का श्रेय पूर्णिया के पूर्व सांसद उदय सिंह को जाता है. उन्होंने इस सड़क का निर्माण 2006 में करवाया और 2013 में इसकी मरम्मत करवायी. तबसे इस सड़क की मरम्मत नहीं हुई है. इस सड़क पर लोगों की आवाजाही बढ़ने पर इसे स्टेट हाइवे किये जाने की मांग उठने लगी. पूर्व सांसद उदय सिंह ने ने इसे पीडब्ल्यूडी सड़क बनाये जाने की प्रक्रिया शुरू भी की. मगर प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी. इस सड़क के मसले पर पूछे जाने पर पूर्व सांसद उदय सिंह कहते हैं, उस वक़्त जब हमने
सौ से अधिक गांवों के…
इस सड़क का निर्माण किया था, हम इसे ग्रामीण सड़क के तौर पर देख रहे थे. मगर धीरे-धीरे इस पर ट्रैफिक का लोड काफी बढ़ गया, ऐसे में हम इसे पीडब्ल्यूडी के तहत लाने की कोशिश कर रहे थे. हमने राज्य के मंत्रियों से भी कहा था, मगर यह हो नहीं सका. पिछले दिनों सांसद महोदय से मुलाकात हुई तो उन्हें भी कहा. मगर उन्होंने कहा कि मरम्मत के लिए कुछ नहीं हो सका है, सड़क को अभी टेंडर की प्रक्रिया में जाना है. हमने इस सड़क का निर्माण कानून-व्यवस्था की बेहतरी के मकसद से भी कराया था. मगर अब जो सड़क के हालात हैं, उससे इलाके के कानून-व्यवस्था के प्रभावित होने का भी खतरा है.
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