बांका : कहते हैं ईमान रखने वाले लोग रमजान की समाप्ति पर दु:ख ही प्रकट करते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि रमजान में इबादत करने पर जितना अधिक पुण्य मिलता है उतना रमजान के बाद की इबादत में नहीं मिलता. इसलिए अधिक पुण्य कमाने का अवसर हाथ से निकल जाने का दुख ईमान रखने वाले लोगों को होता है
और यह लाजिमी भी है. परंतु यह खुशियों का त्योहार है इसलिए कि एक माह तक रोजा रखने और इबादत करने में जो सफल हुआ उसकी सफलता की खुशी मनाने का नाम ईद है. ईद के दिन प्रातः काल अपने को साफ-सुथरा करने, अच्छा कपड़ा पहनने तथा मीठी चीज खाकर ईदगाह जाने का हुक्म है. यह ईदगाह तक पैदल जाने और वह भी एक रास्ते से जाने और दूसरे रास्ते से वापसी का हुक्म है.
ईद की नमाज अदा करने से पहले तक गरीबों को फितरा दिये जाने का आदेश है. तंजीम ए इंसाफ के जिलाध्यक्ष डॉ अली इमाम ने कहा कि ये सारे अहकाम मानव कल्याण से संबंधित हैं, जिन्हें पुण्य से जोड़ दिया गया है ताकि लोग पुण्य की लालच में भी ऐसा सद्कर्म करें. ईद की नमाज से पहले तक गरीबों को फितरा देने का उद्देश्य है कि गरीब भी ईद की तैयारी कर सकें. ईदगाह पैदल एक रास्ते जाने और दूसरे रास्ते से वापस लौटने के हुकुम के पीछे उद्देश्य है कि अधिक से अधिक लोगों से मिलने जुलने का अवसर मिल सके. अर्थात जात पात, ऊंच नीच, अमीर गरीब आदि का भेद भाव समाप्त कर अधिक से अधिक लोगों से अपनापन भाईचारा स्थापित करने का शुभ अवसर ईद है. सारे गिले-शिकवे भूल कर समाज के सभी लोगों को साथ लेकर खुशियां मनाने और एक दूसरे की खुशियों में शामिल करने का संदेश देता है ईद. इसलिए यह एक महान त्योहार है.