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डेंडराइट के नशे में बरबाद हो रहा देश का भवष्यि

कटोरिया : वैसे तो डेंडराइट नामक गोंद का उपयोग गैरेज, फर्नीचर दुकान, टायर रिपेयरिंग दुकान आदि जगहों में कारीगरों के द्वारा दो वस्तुओं या टूटे वस्तुओं को जोड़ने में किया जाता है़ लेकिन आज देश का होनहार भविष्य यानि समाज के मासूम बच्चे डेंडराइट के गोंद में चिपकते जा रहे हैं वे इस खतरनाक केमिकल […]

कटोरिया : वैसे तो डेंडराइट नामक गोंद का उपयोग गैरेज, फर्नीचर दुकान, टायर रिपेयरिंग दुकान आदि जगहों में कारीगरों के द्वारा दो वस्तुओं या टूटे वस्तुओं को जोड़ने में किया जाता है़ लेकिन आज देश का होनहार भविष्य यानि समाज के मासूम बच्चे डेंडराइट के गोंद में चिपकते जा रहे हैं

वे इस खतरनाक केमिकल का प्रयोग नशा के रूप में कर रहे हैं. इस अति ज्वलनशील व उड़नशील केमिकल को सूंघ कर नशा करने वाले बच्चे धीरे-धीरे इसका गुलाम हो जाते हैं. या यूं कहें कि इसकी आदत लग जाने के बाद वे डेंडराइट सूंघे बिना बेचैन होने लगते हैं. डेंडराइट को नशा के रूप में प्रयोग करने का तरीका भी बड़ा अजूबा है़ मासूम बच्चे इसे रूमाल पर उड़ेल कर मुट्ठी में बंद कर इसे सूंघते हैं. जब इसका नशा चढ़ने लगता है, तो वे डेंडराइट युक्त रूमाल को चूसने लगते हैं.

चंद मिनटों में ही मासूम दिखने वाले बच्चे का चेहरा खूंखार दिखने लगता है़ मदहोशी में उसकी आंखें उपर होने लगती है़ डेंडराइट जब अपना प्रभाव दिखाता है, तो बच्चे का शरीर व मस्तिष्क कुछ मिनटों के लिए नि:शक्त हो जाता है़ डेंडराइट का प्रयोग नशा के रूप में होने से बाजार में इसकी डिमांड भी काफी बढ़ी है़ पान व स्टेशनरी दुकानों में भी डेंडराइट का छोटा फाइल गुटखा-भांग की तरह टंगा रहता है़ डेंडराइट नशा के मकड़जाल से मासूमों को बचाये रखने हेतु शीघ्र विशेष अभियान चला कर रोकथाम जरूरी है़

इसके लिए स्थानीय लोगों, जनप्रतिनिधियों एवं अभिभावकों को जवाबदेह होने की जरूरत है़ वरना पूरा का पूरा समाज डेंडराइट से ऐसे चिपक जायेगा, जिसे बाद में छुड़ा पाना असंभव ही नहीं, नामुमकिन भी हो जायेगा़ कहते हैं चिकित्सकइस संबंध में रेफरल अस्पताल के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डा योगेंद्र प्रसाद मंडल ने कहा कि डेंडराइट, थीनर, पेंट, नेल-पॉलिश आदि को सूंघने का नशा करने से फेफड़ा व किडनी पर दुष्प्रभाव पड़ता है़

अचानक हृदय का धड़कना रूक सकता है़ मानसिक स्थिति भी बिगड़ सकती है़ इसके लिए बच्चों को समाज व शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने की जरूरत होती है़ बच्चों व अभिभावकों को इस दिशा में जागरूक भी करनी चाहिए़

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