पेशे से वह मजदूर था, लेकिन सभी के दिलों के पर राज करता था. बदले में गांव वालों से उसे स्नेह व प्यार भी मिलता था. गांव के यज्ञ प्रयोजन में बनने वाले भोज में वह अव्वल दर्जे का कारीगर था. खाना लजीज व स्वादिष्ट बनाता था. गांव के जिस-जिस व्यक्ति ने जाना कि सुदीन नहीं रहा, तो सभी के मुंह से निकल पड़ा कि अच्छे लोगों को भगवान जल्दी ही अपने पास बुला लेते हें. वह अपने परिवार का बड़ा बेटा था. उसका छोटा भाई पोदीन भोक्ता, बहन बबीता कुमारी, पत्नी रीना देवी व एक वर्ष की बेटी करिश्मा कुमारी, पिता मंगल भोक्ता व मां का भरण-पोषण अब कौन करेगा, यह सबसे बड़ा सवाल इस परिवार के लिए है. वहीं उसकी सास मीना देवी अपनी विधवा बेटी व नातिन का इलाज सदर अस्पताल में करा रही थी.
आगे बता दें कि सुदीन, जो अपने स्वभाव व विचार से गांववालों का प्यारा था, जब उसकी मौत हुई, तो उसके मृत शरीर को कंधा देने चार लोग भी सामने नहीं आये. गांव के जिस जिस व्यक्ति को परिवार वालोंने शव को शमशान घाट पहुंचाने के लिए कहा, सबने कन्नी काट ली. अंतिम विदाई में जिन्हें शामिल होना चाहिए था, उनकी जुबान से बस यही निकल रहा था, कि जो व्यक्ति वहां जायेगा, उसे भी यह अज्ञात बीमारी हो जायेगी और वह मर जायेगा. जब गांव के लोगों का साथ नहीं मिला, तो बगल के गांव कोरीचक से लोगों को बलवा कर शव को ले जाया गया. क्या इसी समय के लिए सुदीन गांव के लोगों की सहायता करता था, उनकी कही बातें नहीं टालता था, यह विचारणीय प्रश्न है.