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मुख्य सड़क पर चलना मुश्किल

औरंगाबाद शहर : कहने को तो शहर का मुहल्ला है, लेकिन व्यवस्था गांवों से भी बदतर. समाज के हर तबके के लोग यहां निवास करते हैं, लेकिन नीति एक जैसी नहीं. जिसने सहयोग किया, उसने पाया और जिसने नहीं किया, वह घाटे में रहा. यानी व्यावसायिक दृष्टिकोण से भी मोल-जोल और तोल का काम हुआ. […]

औरंगाबाद शहर : कहने को तो शहर का मुहल्ला है, लेकिन व्यवस्था गांवों से भी बदतर. समाज के हर तबके के लोग यहां निवास करते हैं, लेकिन नीति एक जैसी नहीं. जिसने सहयोग किया, उसने पाया और जिसने नहीं किया, वह घाटे में रहा. यानी व्यावसायिक दृष्टिकोण से भी मोल-जोल और तोल का काम हुआ.
अभी कुछ ही माह बाद नगर पर्षद का चुनाव कराया जायेगा. इसकी तैयारी संबंधित वार्ड के संभावित प्रत्याशियों ने शुरू भी कर दी है. प्रशासनिक स्तर पर भी चुनाव को अमलीजामा पहनाने का दौर शुरू हो गया है. ताज दोबारा हासिल करने के लिए वार्ड पार्षदों ने आम जनता का दिल जीतने के लिए विकास की कवायद भी शुरू कर दी है, लेकिन इस बीच उस जगह को पुराने हाल में ही छोड़ दिया गया.
हम बात कर रहे हैं वार्ड नंबर 13 के शाहपुर बिगहा मुहल्ले का. वैसे यह सिर्फ नाम का मुहल्ला है. देखने से पता चलता है कि यहां आजादी के बाद कुछ हुआ ही नहीं. वैसे पता भी चला कि शाहपुर बिगहा औरंगाबाद शहर के सबसे पुराने मुहल्लों में एक है और इसका प्रमाण मिट्टी के जर्जर हो चुके मकान हैं. प्रभात खबर की टीम शाहपुर बिगहा की हाल जानने पहुंची, तो पता चला कि यहां विकास का काम हुआ ही नहीं है. संकीर्ण गलियां और घरों के सामने फैली गंदगी इस बात की गवाही दे रही थी. यहां रहनेवाले लोग अपना दुखड़ा सुनाना भी नहीं चाहते, क्योंकि कई बार वो सुना चुके है, पर किसी ने कभी उनकी सुधि भी नहीं ली.
वैसे अधिकांश महादलित परिवार के है. वार्ड नंबर 13 टिकरी मुहल्ला में शाहपुर बिगहा, आजादनगर सहित कई छोटे-मोटे मुहल्ले हैं, जहां की स्थिति बदतर है. स्थानीय वार्ड पार्षद व विधायक से मुहल्लेवालों ने विकास की गुहार लगायी, लेकिन सुनवाई नहीं हुई. सवाल यह उठता है कि जिस मुहल्ले का मुख्य पथ ही जर्जर हो और उस पर नाली का पानी भरा हो तो गलियो और लिंक पथों के विकास की बात ही बेमानी है. मुख्य सड़क पर नाला का निर्माण तो हुआ ,लेकिन खानापूर्ति सा दिखता है. नालियों में जमा गंदगी ने आम लोगों को परेशान कर दिया है.
शाहपुर बिगहा की विकास पर स्थानीय वार्ड पार्षद ने ध्यान ही नहीं दिया. चार महादलितों के घर खुद का चापाकल है और इन्हीं के रहमोकरम पर अन्य लोगों को पानी मिलता है गरमी के मौसम में चापाकल जब सूख जाती है तो हाहाकार मच जाता है. मुहल्ले से 100 मीटर की दूरी पर गोरैया बाबा मंदिर के समीप एक सरकारी चापाकल है,जिस पर पानी लेने के लिए होड़ लगी रहती है.
सुरेंद्र राम
शाहपुर बिगहा पर नेताओं का आगमन कुछ देने के लिए नहीं, बल्कि लेने के लिए होता है. जब-जब चुनाव का समय आता है, वोट मांगने नेता पहुंच जाते है. उस वक्त सब कुछ देने की बात होती है,लेकिन फिर भूल जाते हैं. वार्ड में विकास को लेकर बहुत काम होना बाकी है. जनप्रतिनिधि ध्यान दिये होते, तो यह मुहल्ला भी काफी विकसित हो चुका होता. वार्ड का हाल काफी बुरा है.
बसंती देवी
बिजली का पोल भी नहीं गड़ा
मुहल्ले में महादलितो को विकास से जोड़ने की पहल ही नहीं की गयी. टिकरी मुहल्ले के अन्य इलाके में बेहतर सुविधा है,लेकिन इस मुहल्ले में बिजली का एक पोल भी नहीं. बांस के सहारे दलित-महादलित परिवार बिजली की रोशनी पाता है. बरसात के मौसम में तो घर से निकलना भी मुश्किल हो जाता है. विकास की उम्मीद करे तो किससे.
खिरमोहन पासवान
पानी की निकासी भी नहीं
शहर के अन्य इलाको में घर के गंदा पानी की निकासी के लिये नाला का निर्माण किया जा रहा है,लेकिन शाहपुर बिगहा के लोग नाली के अभाव में खाली पड़े जमीन में घर का गंदा पानी गिरा रहे है. उसमें भी झगड़ा झंझट का नौबत आते रहता है. जनप्रतिनिधि नहीं चाहते कि हमलोगों को सुविधा मिले. सरकारी योजनाओं का लाभ जानकारी के अभाव में नहीं मिल पाता है.
रजमतिया देवी

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