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मदरसा मार्केट में खरीदारी के लिए आनेवाले होते हैं परेशान

कुव्यवस्था. पार्किंग से लेकर शौचालय व यूरिनल तक के लिए समस्या पेयजल, यूरिनल और शौचालय किसी भी बाजार की बुनियादी जरूरत होती है, पर पता नहीं क्यों औरंगाबाद के मुख्य बाजारों में इन तीनों सुविधाओं को नजरअंदाज किया गया है. शहर के अधिकतर पुराने बाजार व कॉमर्शियल काॅम्प्लेक्स का यही हाल है. सबसे पुराना मदरसा […]

कुव्यवस्था. पार्किंग से लेकर शौचालय व यूरिनल तक के लिए समस्या

पेयजल, यूरिनल और शौचालय किसी भी बाजार की बुनियादी जरूरत होती है, पर पता नहीं क्यों औरंगाबाद के मुख्य बाजारों में इन तीनों सुविधाओं को नजरअंदाज किया गया है. शहर के अधिकतर पुराने बाजार व कॉमर्शियल काॅम्प्लेक्स का यही हाल है. सबसे पुराना मदरसा मार्केट भी अब तक इन बुनियादी सुविधाओं से महरूम है.
औरंगाबाद सदर : शहर का सबसे पुराना मदरसा मार्केट व्यवसाय के दृष्टिकोण से शहर का सबसे महत्वपूर्ण मार्केट है. यहां न सिर्फ खिलौने और शृंगार की दुकानें है, बल्कि यहां हर जरूरी समान बिकते हैं. कपड़ा, दवा, बच्चों के लिए आइसक्रीम काॅर्नर, चश्मे की दुकान, जेनरल स्टोर, इलेक्ट्रिक शॉप, मोबाइल शॉप से ये मार्केट गुलजार रहता है और यहां प्रतिदिन लोग लाखों रुपये की खरीदारी भी करते हैं. लगन के वक्त इस मार्केट की रौनक देखते बनती है. यहां संचालित दुकानों की आमदनी का कोई व्यवसायी ही अंदाजा लगा सकता है. पर ये जान कर हैरत होती है कि इतने पुराने मार्केट में ग्राहकों के लिए कोई सुविधा नहीं है.
अगर किसी ग्राहक को प्यास लग जाये, तो पानी खरीद कर ही पीना पड़ता है और अगर खरीदारी के दौरान किसी ग्राहक को इमरजेंसी आ जाये और उसे यूरिनल की जरूरत पड़े, तो वह भी मार्केट में नहीं मिलता. दूर-दूर तक न तो कोई पेशाबघर है और न ही सार्वजनिक शौचालय. हां अगर दुकानदारों को ऐसी इमरजेंसी आ जाये, तो मदरसा मार्केट की छत इनके टॉयलेट के रूप में काम आती है. ताज्जुब तो यह है कि इस मार्केट में सबसे ज्यादा 80 प्रतिशत खरीदारी करनेवाली महिलाएं होती हैं, पर इनकी आवश्यकता का भी मार्केट में ध्यान नहीं रखा गया है. यही कारण है कि मदरसा मार्केट अब शहर के ग्राहकों को रास नहीं आ रहा. लोग मॉल और अन्य मार्केट की ओर रूख कर रहे हैं.
मार्केट के विकास में पैसों की कमी आ रही आड़े
किराये के पैसे से नहीं हो पाता मेंटेनेंस
वक्फ बोर्ड की पुरानी कमेटी ने कभी मदरसा मार्केट को बदलने का प्रयास नहीं किया. जब वक्फ बोर्ड ने स्थानीय कमेटी वक्फ नंबर 626 का गठन किया, तो इस कमेटी ने दुकानदारों से आग्रह कर पहले से तय किराये में 40 प्रतिशत किराया की बढ़ोतरी की. जिससे 57 से 58 हजार रूपये मासिक मदरसा मार्केट से किराया आने लगा.
फिर भी किराये के रुपये से मदरसा इसलामिया बनात में शिक्षकों का वेतन भुगतान, लड़कियों की शिक्षा और मदरसा स्थित मसजिद का ठीक से मेंटेनेंस भी नहीं हो पा रहा है. ऐसे में मार्केट का मेंटेनेंस कैसे संभव हो सकता है. बाजार में एक सामान्य दुकान का किराया चार से छह हजार रूपये है, पर मदरसा मार्केट के दुकानों से मात्र 300 से 400 रुपये ही मिलते हैं. इस स्थिति में मार्केट में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है. अब कल्याण विभाग को इसकी जिम्मेवारी सौंपी गयी है. ताकि, ध्वस्त हो रहे मार्केट को ठीक करे और बुनियादी सुविधाएं भी उपलब्ध कराये.
सैयद अतहर हुसैन उर्फ मंटो, पूर्व अध्यक्ष स्थानीय वक्फ बोर्ड सह वार्ड पार्षद
मार्केट के जीर्णोद्धार के लिए अब कल्याण विभाग से आस, किराया नहीं बढ़ाना चाहते दुकानदार
शहर के मदरसा मार्केट में लगभग 180 से ऊपर दुकानों की संख्या है. यह मार्केट वक्फ बोर्ड के अंतर्गत आता है, जिसे अब तक स्थानीय कमेटी द्वारा चलाया जा रहा था. पर मार्केट से वसूला जानेवाला किराया इतना कम है कि उससे वक्फ बोर्ड संतुष्ट नहीं हो पा रहा है. यही कारण है कि मार्केट की नयी कमेटी का गठन न कर वक्फ बोर्ड ने इस मार्केट को कल्याण विभाग को सौंप दिया है. पूर्व से मिली जानकारी के अनुसार बोर्ड ने मार्केट के जीर्णोद्धार और किराया बढ़ाने के लिए सभी दुकानदारों को नोटिस भी दी है.
लेकिन, दुकानदार किराया बढ़ाने के मूड में नहीं दिखते. सभी बारी-बारी से कल्याण विभाग के नोटिस का जवाब दे रहे हैं, पर कोई दुकानदार इस बात को लेकर गंभीर नहीं है कि किराया बढ़ने के साथ मार्केट में बुनियादी सुविधाएं बहाल होंगी और मार्केट का मेंटेनेंस भी संभव हो पायेगा. ऐसे में न्यूनतम से न्यूनतम 300 और 400 से किराये में दुकानदार मजे काट रहे हैं और ग्राहकों को कोई सुविधा नहीं मिल रही.

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