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मंत्री व जनप्रतिनिधियों की घोषणा से छले जा रहे किसान

औरंगाबाद (ग्रामीण) : औरंगाबाद के साथ-साथ गया जिले के अति महत्वाकांक्षी परियोजना उत्तर कोयल नहर सिर्फ राजनीति की भेंट चढ़ कर रह गयी है. कुटुंबा, नवीनगर, देव, मदनपुर व औरंगाबाद समेत गया जिले के कई प्रखंडों के प्रमुख सिंचाई परियोजना का हाल ज्यों का त्यों है. निर्माण कार्य शुरू होने से करीब 46 वर्ष बीत […]

औरंगाबाद (ग्रामीण) : औरंगाबाद के साथ-साथ गया जिले के अति महत्वाकांक्षी परियोजना उत्तर कोयल नहर सिर्फ राजनीति की भेंट चढ़ कर रह गयी है. कुटुंबा, नवीनगर, देव, मदनपुर व औरंगाबाद समेत गया जिले के कई प्रखंडों के प्रमुख सिंचाई परियोजना का हाल ज्यों का त्यों है. निर्माण कार्य शुरू होने से करीब 46 वर्ष बीत जाने के बाद भी उत्तर कोयल नहर व हड़ियाही सिंचाई परियोजना का कार्य पूरा नहीं हो सका. ये दोनों परियोजना यदि पूर्ण हो जाये तो किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है, पर यह केवल राजनीतिज्ञों का अखाड़ा बन कर रहा गया है.
चुनाव के समय विभिन्न दलों के नेता इस परियोजना को पूर्ण कराने की बात करते हैं, पर चुनाव समाप्त होते ही वे भूल जाते हैं. नेताओं के इस भुलकड़ नीति का खामियाजा यहां के किसान वर्षों से झेल रहें हैं. गौरतलब है कि पिछले वर्ष सांसद सुशील कुमार सिंह के प्रयास से केंद्रीय वन पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावेड़कर कुटकू डैम का निरीक्षण कर सिंचाई की सुविधा हर-हाल में बहाल करने का आश्वासन दिया था. इसके पहले सूबे के पूर्व सीएम जीतन राम मांझी ने भी हड़ियाही परियोजना को पूरा करा कर किसानों के खेत तक पानी पहुंचाने की बात मंच से कही थी. इसी वर्ष फरवरी माह में सांसद सुशील कुमार सिंह बटाने के हड़ियाही परियोजना का जायजा लिए थे.
इस परियोजनाओं को पूर्ण कराने के लिए उन्होंने किसानों के साथ झारखंड प्रदेश के गुलबझरी में विस्थापितों के साथ सभा की और डालटेनगंज के उपायुक्त के साथ दो फरवरी को बैठक भी किया. बैठक में झारखंड विधानसभा सचेतक राधाकृष्ण किशोर व पलामू सांसद बीडी राम भी थे. बैठक में मानो ऐसा लगा की एक माह में ही यह परियोजना का कार्य करा लिया जायेगा, पर कई माह बीतने के बाद भी बैठक की बातों पर अमल नहीं किया जा सका.
लागत से कई गुना अधिक खर्च होने के बाद भी कार्य नहीं हुआ पूरा
दोनो ही परियोजना में लक्ष्य से कई गुणा अधिक राशि अब तक खर्च हो चुकी है. जानकारी के अनुसार, उत्तर कोयल नहर के कार्य में अब तक 752 करोड़ की राशि खर्च हो गयी है. इसके बाद भी नहर अधूरा ही पड़ी है. कुटकु डैम की बात तो दूर रही बराज को भी कोई देखने वाला नहीं है. बराज में जो गेट लगाया गया है उसमें से मात्र पांच छह गेट ही ऑपरेट होता है शेष सभी जाम है.
कुटकू में गेट लगाने व हड़ियाही में गेट गिराने से ही बहाल होगी सिंचाई सुविधा
उत्तर कोयल नहर की बात करें या फिर हड़ियाही सिंचाई परियोजना की. दोनों ही योजना अधूरी पड़ी है. उत्तर कोयल नहर का कुटकू डैम बन कर तैयार है सिर्फ उसमें गेट लगाने का कार्य बाकी है. गेट लगाने पर वन व पर्यावरण विभाग ने रोक लगा रखा है. इस दिशा में वन व पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावेड़कर ने खुद रोक हटवाने की घोषणा एक सभा में हजारों किसानों के बीच की थी. लेकिन, तकरीबन एक वर्ष बीत गया, पर गेट नहीं लग सका. गेट नहीं लगने के कारण उत्तर कोयल सिर्फ बरसाती नहर बन कर रह गया है. बटाने नहर सिंचाई परियोजना के हड़ियाही डैम तो गेट लग कर भी तैयार है. यहां विस्थापित किसानों ने अपनी मांगों को लेकर गेट को ऊपर उठा कर उसे ओल्डींग कर दिया है. यदि किसानों की मांगों पर विचार कर गेट गिरा दिया जाता है तो पानी का जमाव शुरू हो जायेगा और इससे हजारों हेक्टेयर भूमि सिंचित होगी.
प्रधानमंत्री ने भी उत्तर कोयल परियोजना पर दिया था आश्वासन
उत्तर कोयल परियोजना को पूर्ण कराने के लिए सांसद सुशील कुमार सिंह ने कई प्रयास किये. लेकिन, उनका प्रयास अब तक सफल नहीं हो सका है. प्रधानमंत्री से लेकर केंद्रीय मंत्री तक का ध्यान आकृष्ट कराया. यहां तक कि संसद में भी कई बार परियोजना के मुद्दे को उठाया. बावजूद इस पर कोई सकारात्मक पहल नहीं हुई. लोकसभा चुनाव के दौरान गया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर कोयल परियोजना को पूर्ण कराने का आश्वासन भी दिया था. लेकिन, दो साल बीतने के बाद भी इस पर फिर दुबारा कभी बात नहीं हुई. अब सवाल यह उठता है कि आखिर किसानों का दोष क्या है. आखिर कब तक परियोजना पर राजनीति होती रहेगी.
दोनों योजनाओं से जिले के 60 हजार हेक्टेयर से अधिक भूमि में होगी सिंचाई
उत्तर कोयल नहर से जिले के 60 हजार हेक्टेयर से अधिक भूमि में सिंचाई होती है, तो हड़ियाही परियोजना से 10466 हेक्टेयर भूमि सिंचित करने का लक्ष्य है.
दोनों से सिंचाई बहाल होने के बाद यहां के किसानों का लाखों की आमदनी बढ़ जायेगी. लेकिन, किसानों के हक और उनकी उम्मीदों को धूमिल किया जा रहा है. सूखे पड़े नहर व कैनालों को देख कर ऐसा लगता है कि इस पर सिर्फ राजनीति ही होगी. जब-जब चुनाव का समय आता है,उतर कोयल व हड़ियाही की राजनीति शुरू हो जाती है. बिहार से लेकर झारखंड तक के नेता अपना उल्लू-सीधा करने की कोशिश में लग जाते है. घोषणा ऐसे करते है, जैसे बस किसानों को उत्तर कोयल से पानी मिलने ही वाला है.
लेकिन, जैसे ही चुनाव समाप्त होता है, वैसे ही तमाम कोशिशों पर ब्रेक लग जाता है. सवाल यह उठता है कि आखिर इन दोनों परियोजनाओं से किसानों को कब लाभ होगा.

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