औरंगाबाद (कोर्ट) : ब्रिटिश काल से प्रारंभ पेंशन योजना लोगों के लिए बुढ़ापे का सहारा है. यह बात पेंशनर्स एसोसिएशन की जिला शाखा द्वारा पेंशनर्स दिवस के अवसर पर आयोजित समारोह को संबोधित करते एसोसिएशन के सदस्यों ने कही.
क्लब रोड स्थित महासंघ कार्यालय परिसर में आयोजित इस समारोह की अध्यक्षता ललन प्रसाद ने की. समारोह में पेंशनरों ने पेंशन योजनाओं सहित अन्य समस्याओं पर भी चर्चा की. वक्ताओं ने कहा कि वर्ष 1982 में 17 दिसंबर को ही सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लिये गये एक ऐतिहासिक निर्णय में पेंशन योजना को यह कहते हुए सैद्धान्तिक स्वरूप प्रदान किया था कि पेंशन न तो नियोक्ता के इच्छा से दिया जाने वाला उपहार है.
यह कोई कृपा नहीं बल्कि पूर्व में की गयी सेवा या नौकरी के बदले राशि का भुगतान है. इसके बाद से पेंशन योजना शुरू कर की गयी थी. यही कारण है कि मंगलवार 17 दिसंबर को पेंशनर्स दिवस मनाया गया. समरोह में वक्ताओं ने कहा कि पेंशन की योजना ब्रिटिश काल के प्रारंभ से जारी है.
वैसे तो इस योजना का उल्लेख तीसरी शताब्दी में भी मिलती है. उस वक्त 40 वर्ष तक लगातार राजा की सेवा करने पर वेतन की आधी पेंशन की तरह दी जाती थी. राजशाही काल में भी मुलाजिमों को ताउम्र गुजर-बसर करने के लिए जागिरें तक दे दी जाती थीं. 1920 में औपनिवेशक शासकों द्वारा राजसी सेवा की ओर लोगों को आकर्षित करने के उद्देश्य से पेंशन योजना की शुरुआत की गयी थी.
इसके बाद राजकीय आयोगों ने अनेक सिफारिशों पर इसे बेहतर बनाया गया. 1935 में भारत सरकार ने इसे वैधानिक ताकत प्रदान की. इस दौरान सेवा निवृत्त जिला सूचना व जनसंपर्क पदाधिकारी व शिक्षा विभाग के सेवा निवृत्त अधिकारी यमुना सिंह को सम्मानित किया गया.
मौके पर एसोसिएशन के जिला मंत्री भोला शर्मा, संयुक्त मंत्री रामनरेश मिश्र, कोषाध्यक्ष पारसनाथ सिन्हा, रामदास शर्मा, रामनरेश शर्मा, मो. कादरी शिवदत यादव, महाजन प्रसाद, रामविलास शर्मा, अवधेश सिंह, श्रीकांत सिंह, अनिल शर्मा, वैद्यनाथ सिंह आदि उपस्थित थे.