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देव में छठ पर्व करने का अद्वितीय महत्व

देव में छठ पर्व करने का अद्वितीय महत्वऔरंगाबाद (नगर) देवनगरी औरंगाबाद जिला का एक अति महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है. यहां राजा ऐल द्वारा निर्मित सूर्य मंदिर अपने ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक व पौराणिक महत्व के लिए विश्व विख्यात रहा है. देव में लोक पर्व ‘छठ ‘ के पावन अवसर पर मेले का आयोजन अतिप्राचीन है. जिला […]

देव में छठ पर्व करने का अद्वितीय महत्वऔरंगाबाद (नगर) देवनगरी औरंगाबाद जिला का एक अति महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है. यहां राजा ऐल द्वारा निर्मित सूर्य मंदिर अपने ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक व पौराणिक महत्व के लिए विश्व विख्यात रहा है. देव में लोक पर्व ‘छठ ‘ के पावन अवसर पर मेले का आयोजन अतिप्राचीन है. जिला मुख्यालय से 18 किलोमीटर पर अवस्थित देव सूर्य मंदिर अपनी ऐतिहासिक व कलात्मक भव्यता का उत्कृष्ट नमूना है. यहां छठ पर्व करने का अद्वितीय महत्व है. हिंदुओं के सभी व्रतों में अत्यंत कठिन, चमत्कारी, पवित्र व मनोवांछित फलदायक धार्मिक अनुष्ठान है. इस पर्व में व्रती की छोटी सी गलती भी भयंकर परिणामदायक सिद्ध होता है. इस पर्व का अनुष्ठान महिला व पुरुष दोनों करते हैं. परंपरा के आधार पर यह व्रत प्रत्येक वर्ष चैत व कार्तिक महीने में होता है. व्रती अति पवित्रता से इस पर्व की पूर्ण तैयारी करते हैं. वे खान-पान व प्रसाद बनाने में विशेष नियम का पालन करते हैं. वे सूर्य को साक्षी मानकर अर्घ अर्पण करते हैं. यह पर्व चार दिनों का होता है, जिसका बहुत बड़ा महत्व है. भगवान भास्कर के प्रति असीम आस्था का प्रतीक बन छठ पर्व अद्वितीय है, जिसका महत्व जन श्रुतियों, गाथाओं व कथाओं से स्पष्ट परिलक्षित होता है. सूर्य मंदिर का जीर्णोद्धार राजा भैरवेंद्र ने 1434 में कराया था. उन्होंने ही देव मंदिर के ऊपर स्वर्ण कलश स्थापित कराया था. इस प्रकार विश्व विख्यात तीर्थ स्थल देव नगरी में आज भी ऐल निर्मित सूर्य मंदिर व सूर्यकुंड करोड़ों हिंदुओं का धार्मिक स्थल के रूप में अवस्थित है. प्रतिवर्ष कार्तिक व चैत मास में छठ व्रत का मेला आयोजित होता है. दूर-दूर से लाखों नर-नारी छठ व्रत करने के नियमित पधारकर अपने इष्ट देव सूर्य से मनोवांछित फल की प्राप्ति करते हैं. छठव्रत के संबंध में पौराणिक मान्यता है कि पाडवों को वनवास काल में जब भोज पत्र भोजन ग्रहण कर जीवन यापन करना पड़ रहा था, उस विषम परिस्थिति में उन्हें अनेक साधु संतों के आगमन की सूचना मिली. उनके आतिथ्य में असमर्थ होकर पांडव घबरा गये. द्रोपदी ने कुल गुरु धैम्य ऋषि के निकट जाकर अपनी चिंता से उन्हें अवगत कराया. तत्पश्चात महान ऋषि धैम्य ने छठ व्रत की महत्ता की जानकारी देते हुए, सूर्य पूजन व सूर्य उपसाना की विधिवत विधि बतायी और उसे छठ व्रत करने का परामर्श दिया.

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