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गंदगी व कूड़े से भरे घाटों पर एक दिन बाद नहीं किसी की नजर

दिखावा. साफ-सफाई के ‘पुरोधाओं’ की छठ समाप्ति के बाद खुलने लगी पोल औरंगाबाद कार्यालय : कुछ लोगों को सुर्खियां बटोरने की आदत सी हो गयी है. ऐसे लोगों के लिए समाजसेवा सबसे बढ़ा आसान रास्ता बन गया है. छठपर्व के पहले समाजसेवियों व स्वयंसेवी संगठनों के लोगों ने सड़कों व गलियों के साथ-साथ विभिन्न छठ […]

दिखावा. साफ-सफाई के ‘पुरोधाओं’ की छठ समाप्ति के बाद खुलने लगी पोल

औरंगाबाद कार्यालय : कुछ लोगों को सुर्खियां बटोरने की आदत सी हो गयी है. ऐसे लोगों के लिए समाजसेवा सबसे बढ़ा आसान रास्ता बन गया है. छठपर्व के पहले समाजसेवियों व स्वयंसेवी संगठनों के लोगों ने सड़कों व गलियों के साथ-साथ विभिन्न छठ घाटों की सफाई कर खूब सुर्खियां बटोरीं. अब छठ समाप्त हो चुका है. सभी घाटों पर गंदगी ही गंदगी है. ऐसे में इन समाजसेवियों का कहीं पता नहीं चल रहा है. ताज्जुब की बात तो यह है कि स्वच्छता का ढोल पीटनेवाला नगर पर्षद भी खामोश है.
शहर के मुख्य घाटों का हाल : शहर के मुख्य छठ घाट सूर्य मंदिर अदरी नदी की स्थिति भयावह है. शनिवार की दोपहर जब प्रभात खबर की टीम ने शहर के विभिन्न छठ घाटों की साफ -सफाई का जायजा लिया, तो पता चला कि यहां साफ-सफाई के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति हुई है. इससे बेहतर तो छठ घाट की स्थिति एक माह पहले थी.
छठ घाट की साफ-सफाई का दावा करने वाले नगर पर्षद के पदाधिकारियों की आखिर छठ घाट की भयावह स्थिति पर नजर क्यों नहीं पड़ी. अदरी नदी व विराटपुर घाट की स्थिति भी एक जैसी ही दिखी. स्थानीय लोगों का कहना था कि सिर्फ छठ के पहले साफ-सफाई पर नगर पर्षद का ध्यान जाता है. छठ समाप्ति के बाद इधर-उधर बिखरी गंदगियों को साफ करने में नगर पर्षद असहज महसूस करता है. सबसे बड़ी बात यह है कि सूर्य व शिव मंदिर पूजा समिति द्वारा सूर्य मंदिर घाट की जिम्मेदारी प्रत्येक छठ पर्व के दौरान ली जाती है. यानी समिति द्वारा श्रद्धालुओं के लिए हर तरह की व्यवस्था की जाती है. इसके लिए समिति के कार्यकर्ता शहर में चंदा इकट्ठा करते हैं. सवाल यह उठता है कि चंदे के पैसे से सिर्फ छठ के पहले तक ही सफाई की जानी थी या बाद में भी. इधर नगर पर्षद के मुख्य पार्षद उदय प्रसाद गुप्ता ने कहा कि छठ पूजा के बाद छठ घाटों की सफाई की जा रही है, जो बचे हुए घाट हैं उनकी सफाई भी हो जायेगी.

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