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नियम को ताक पर रख चल रही दवा दुकानें

नियम को ताक पर रख चल रही दवा दुकानेंविभाग मौन विशेषप्रतिनिधि, किशनगंजऔषधि अधिनियम के विरुद्ध जिले में चल रही दवा दुकानों पर अंकुश लगाने की सरकार के निर्देश के बावजूद भी किशनगंज जिले में संबंधित विभाग द्वारा अभियान नहीं चलाये जाने से कुकुरमुत्ते की तरह उग आयी हैं दवा दुकानें. अधिकांश दुकानों में प्रतिबंधित दवाएं […]

नियम को ताक पर रख चल रही दवा दुकानेंविभाग मौन विशेषप्रतिनिधि, किशनगंजऔषधि अधिनियम के विरुद्ध जिले में चल रही दवा दुकानों पर अंकुश लगाने की सरकार के निर्देश के बावजूद भी किशनगंज जिले में संबंधित विभाग द्वारा अभियान नहीं चलाये जाने से कुकुरमुत्ते की तरह उग आयी हैं दवा दुकानें. अधिकांश दुकानों में प्रतिबंधित दवाएं नियम के विरुद्ध बिक्री की जा रही है. इतना ही नहीं बिना बिल का दवा दुकान में उपलब्ध है. फ्रीज में रखने वाली दवा बाहर पड़ी रहती है.जिले में बिना अनुज्ञप्ति की लगभग 300 दुकानेंजिले में इन दिनों दवा दुकानों की भरमार हो गयी है. किराना दुकानों की तरह हर गली मुहल्ले में दवा की दुकानें खुल गयी है. जिले में लगभग ढाई सौ से तीन सौ बिना लाइसेंस की दवा दुकान है, जहां अवैध रूप से दवाओं की होती है, जिसके कारण सरकार को प्रतिमाह लाखों रुपये के राजस्व का नुकसान हो रहा है. सवाल यह है कि उन अवैध दवा विक्रेताओं को कौन और कैसे दवा आपूर्ति कर रहा है. औषधि नियंत्रण विभाग के नियम के अनुसार दवा दुकानदार थोक दवा विक्रेता से दवा लेने के लिए उसे अपने लाइसेंस का जेरॉक्स कॉपी देना होता है और थोक विक्रेता किसे कौन सी दवा बेचा है लाइसेंस के प्रति के साथ रखना है. लेकिन दवा एजेंसी नियम को ताक पर रख कर राजस्व बचाने के चक्कर में गड़बड़ झाला करते हैं. बिना प्रिसक्रिप्शन के मिल जाता है नेट्राभिट व अन्य अवैध दवा दुकानदार धड़ल्ले से प्रतिबंधित दवाओं की बिक्री करते हैं. कुछ ऐसी ही दवाएं हैं, जो सिर्फ चिकित्सक के परामर्श के आधार पर ही बिक्री करना है. ऐसे में थोक दवा विक्रेता यदि किसी दुकानदार को प्रतिबंधित दवा देता है तो इस संबंध में थोक दवा विक्रेता एजेंसी को इसकी जानकारी लिखित रूप से ड्रग इंस्पेक्टर एवं ड्रग कंट्रोल विभाग को देना है. लेकिन शायद ही इस नियम को पालन किया जाता है. बड़ी आसानी से प्रतिबंधित दवा उपलब्ध रहने के कारण इसका फायदा आपराधिक तत्व भी उठा रहे हैं. ट्रेनों में नशा खुरानी की वारदात अंदर सामने आते रहे है, जिसमें गिरोह के सदस्य चालबाजी से यात्रियों को खाना में इन नशीली दवा खिला कर सारा सामान लूट लेते हैं. रेल पुलिस ने कई मामलों के खुलासे भी किये जिसमें गिरोह के सदस्यों ने ही बताया कि नेट्रामिट एवं अन्य प्रतिबंधित नशीली दवा का उपयोग वे लोग यात्रियों को लूटने के लिए करते हैं. औषधि नियंत्रण विभाग द्वारा दवा संबंधी मामलों की निगरानी के लिए जिले में ड्रग इंस्पेक्टर पदस्थापित हैं. इसके बावजूद यदि जिले में अवैध ड्रग माफिया सक्रिय है. यदि इस बात की भनक ड्रग इंस्पेक्टर को नहीं है, तो इससे स्पष्ट है कि वे अपने कर्तव्यों के प्रति लापरवाह हैं या फिर उनके संरक्षण में ही अवैध दवा विक्रेता फल-फूल रहा है. क्या कहते हैं सीएससिविल सर्जन परशुराम प्रसाद ने बताया कि ड्रग इंस्पेक्टर अज्ञात कारणों से लंबी छुट्टी पर चले गये हैं, जिस कारण छापेमारी में कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि इस संबंध में विभाग के वरीय पदाधिकारियों के साथ-साथ जिला पदाधिकारी को अवगत करा कर ड्रग इंस्पेक्टर की प्रतिनियुक्ति की मांग की गयी है.

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