अररिया: सामाजिक ताना-वाना कमजोर हो रहा है. लोक लाज की भी परवाह नहीं रह गयी है. अनैतिक आचरण करने वालों के विरुद्ध समाज खड़ा नहीं हो रहा है. दूसरी ओर पुलिस के हाथ कानून से बंधे हैं. एक सीमा तक दायरा है. हालांकि बहुत सारे मामलों को महिला हेल्प लाइन में सुलझाने का प्रयास भी किया जाता है.
उभय पक्षों के बीच समझौता भी होता है. लेकिन इस तरह के मामले लगातार सामने आते रहे हैं. हालांकि कुछ मामलों का अंत दुखद भी होता है.
केस स्टडी : एक
दस वर्ष का एक व तीन वर्ष को दो पुत्र, पांच वर्ष की पुत्री की मां पति को कमाने प्रदेश भेज दी. पति प्रत्येक माह प्रदेश से पैसा भी भेजता है. मकसद यह कि बच्चों की पढ़ाई-लिखाई हो. परवरिश अच्छे से हो. इस महिला की मां थाना में चौकीदार है. परिवार खुशहाल है. बावजूद वह कुछ दिनों पूर्व अपने जिगर के टुकड़ों को छोड़ शादी-शुदा प्रेमी के साथ भाग गयी. मामला कुर्साकांटा थाना में अंकित हुआ. नेपाल सीमा से बरामद औरत पुलिस से कहती है कि हम पति के साथ नहीं, प्रेमी के साथ रहेंगे. बच्चे मां को पिता के घर जाने को खुशामद करते हैं. मगर मां की ममता की स्नेहिल धारा मानों सूख चुकी थी. यह प्रेमी के साथ जाने पर आमदा थी. मामला कुर्साकांटा थाना क्षेत्र के सिझुआ लक्ष्मीपुर गांव का है.
केस स्टडी : दो
दो बच्ची की मां है. संविदा कर्मी है. पति भी कमाऊ है. वर्ष 2002 में शादी हुई थी. दोनों ने प्रेम विवाह किया था. सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था. हंसता-खेलता परिवार टूट के कगार पर है. पत्नी बच्चों को रखना चाहती है. लेकिन पति के साथ रहने से इनकार करती है. पति थाना में आवेदन देता है. पत्नी पर किसी दूसरे सहकर्मी से अवैध रिश्ता बनाने का आरोप भी लगाता है. थानेदार का हाथ कानून से बंधा है. समझाने का प्रयास किया जाता है कि ऐसा निर्णय न ले. लोग चटखारे लेकर चर्चा भी करते हैं. मगर महिला पति के साथ जाने से मुकर जाती रही है. पति-पत्नी रानीगंज का रहने वाला बताया जाता है. आखिर इन रिश्तों में आयी खटास को बदल कर मिठास आने के प्रति समाज क्यों है खामोश?
केस स्टडी : तीन
रानीगंज थाना क्षेत्र के परसाहाट की 68 वर्षीय महिला धोमनी देवी को घर से जबरन निकाल कर कुछ लोगों ने घर व जायदाद पर कब्जा जमा लिया. पति की मृत्यु पांच साल पूर्व हो चुकी है. नि:संतान रहने के वजह से पति की सहमति से धोमनी ने एक लड़के को गोद ले रखी थी. उसे भी भगा दिया गया धोमनी के साथ. मामला थाना व महिला हेल्पलाइन में आया. कार्रवाई चल रही है. गांव से दूर किसी के घर रह कर गुजारा कर रही है. सवाल उठता है कि आखिर समाज के लोग इस जुल्म के खिलाफ आवाज क्यों नहीं उठाते. तभी तो मामला थाना या महिला हेल्पलाइन पहुंचा? कहां जा रहा हमारा समाज? यह चिंता का विषय बनता जा रहा है. यह गवाह है सामाजिक ताना-वाना टूटने का.
केस स्टडी : चार
धुंध-कुहासे से बेपरवाह एक वृद्ध महिला थाना आती है कहते है ऐ पुलिस वालों! मेरे बेटे को पकड़ो. मारपीट करता है. खाना नहीं देता है. समाज के लोग हमें पागल कहते हैं. सो इंसाफ चाहिए. घर से बेघर इस महिला का दर्द बूंद बन कर उसके आंखों से छलक पड़ती है. थानेदार सहृदय है. फौरन पंचायत के मुखिया से बात की. पुलिस जवान घर पर भेजा. मुखिया की पहल से उसे खाने का अनाज भी मिला व तन ढकने, ठंड से बचने को कंबल भी दिया. लेकिन महिला का दर्द यह कि जिस फुलबाड़ी को हमने सजाया-संवारा उस चमन से क्यों हमें हटा दिया गया. सवाल तब भी उठता है कि आखिर समाज के लोग एक वृद्ध मां के साथ पुत्रों द्वारा की जा रही ज्यादती पर जुवां क्यों नहीं खोलते? क्या सामाजिक संवेदनाएं मर तो नहीं गयी? बहरहाल यह तो बानगी मात्र है कि सामाजिक ताना-वाना में घुन लग गया है. व्यक्ति वादी सोच से पनपी यह बीमारी सामाजिक मान्यताओं, अब धारणाओं को संवेदनहीन बना रही है. इससे इनकार नहीं किया जा सकता है.