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लालू पर सीबीआइ मेहरबान, आरोप हटाने के पक्ष में

नयी दिल्ली: चौंकानेवाले कदम के तहत, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ) के निदेशक रंजीत सिन्हा ने चारा घोटाले के संबंध में तीन मामलों में राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के खिलाफ आरोपों को हटाये जाने की वकालत की है. इनमें से एक मामले में राजद नेता को दोषी ठहराया जा चुका है. लालू यादव के खिलाफ […]

नयी दिल्ली: चौंकानेवाले कदम के तहत, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ) के निदेशक रंजीत सिन्हा ने चारा घोटाले के संबंध में तीन मामलों में राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के खिलाफ आरोपों को हटाये जाने की वकालत की है. इनमें से एक मामले में राजद नेता को दोषी ठहराया जा चुका है. लालू यादव के खिलाफ आरोपों को हटाये जाने की सिफारिश करते हुए सिन्हा ने न केवल अभियोजन निदेशक (डीओपी) ओपी वर्मा से, बल्कि पटना जोन के प्रमुख समेत पटना शाखा के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों से भी असहमति जतायी.

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद को चारा घोटाले से संबंधित मामलों में से एक मामले में पहले ही दोषी ठहराया जा चुका है. सिन्हा ने कहा कि सीबीआइ अधिकारियों और जेडी के विचार झारखंड में वर्ष 2014 में आपराधिक अपील एसजे नंबर 50 (जगदीश शर्मा बनाम झारखंड राज्य) में की गयी टिप्पणियों से मेल नहीं खाते जहां अदालत कहती है, ‘ऐसा प्रतीत होता है कि आवेदक इस मामले में भी उन्हीं आरोपों को लेकर आगे बढ़े हैं और आरोपों की बारीकियां भी समान प्रतीत होती हैं.’

सीबीआइ का तर्क
मेरा यह विचार है कि किसी व्यक्ति पर उसी अपराध के लिए किसी अन्य मामले में फिर से मुकदमा नहीं चलाया जा सकता जिसके लिए उसे पहले ही दोषी ठहराया जा चुका हो जबकि सबूत एक समान हैं.

रंजीत सिन्हा, सीबीआइ निदेशक

गेंद सॉलिसिटर के पाले मेंरंजीत सिन्हा की विशेष अपील पर मामला सॉलीसिटर जनरल को भेज दिया गया है. हालांकि, सीबीआइ निदेशक व डीओपी में मतभेद के मामले में उचित प्राधिकार अटॉर्नी जनरल हैं. कहा, मामले में अधिकतर सबूत व आरोपित एक समान हैं, जिसमें आरोपों की बारीकियां भी हैं. सीबीआइ निदेशक ने 26 फरवरी को कहा था, मैं शाखा, एचओजेड और डीओपी से असहमत हूं. तीनों आरसी में, याचिकाओं में उठाये गये कानूनी मुद्दों पर राय जानने के लिए उन्हें एसजी को भेजा जाये.’

अभियोजन निदेशक खिलाफ
इस मामले की सीबीआइ ने विभिन्न स्तरों पर पड़ताल की थी, जिसमें अभियोजन निदेशक ओपी वर्मा की राय है कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 300 (1) और संविधान का अनुच्छेद 20 (2) मौजूदा मामले पर लागू नहीं होते हैं. धारा 300 (1) कहती है कि एक व्यक्ति, जिसके खिलाफ सक्षम न्यायिक क्षेत्रधिकार

अदालत द्वारा किसी अपराध के लिए मामले की सुनवाई एक बार की जा चुकी है और ऐसे अपराध के लिए उसे दोषी या बरी किया जा चुका है. ऐसे में उस दोषसिद्धि या बरी किये जाने के फैसले के लागू रहते, उस पर उसी अपराध के लिए और न ही किसी अन्य अपराध के लिए समान तथ्यों के आधार पर फिर से मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है. वर्मा ने यादव की संलिप्ततावाले एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया जो कहता है , ‘अलग-अलग और विशेष अधिनियमों के संदर्भ में, प्रत्येक मामले में भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत मुख्य अपराध अलग-अलग समय पर विभिन्न कोषागार से धन निकाले जाने का है. इसमें साजिश केवल एक संबद्ध अपराध है, यह नहीं कहा जा सकता कि कथित प्रत्यक्ष गतिविधि समान लेन-देन की प्रक्रिया में है.’

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