पटना: नोबेल पुरस्कार विजेता और नालंदा अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय के चांसलर प्रो अमर्त्य सेन ने नालंदा अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय को लेकर केंद्र के सोच पर सवाल उठाया है. उनको आशंका है कि यदि केंद्र का यही रवैया रहा, तो नालंदा अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय कहीं केंद्रीय विवि की तरह न बन कर रह जाये. हालांकि, उन्होंने उम्मीद जतायी कि सभी बाधाओं को पार कर आखिरकार यह विवि अपने अंतरराष्ट्रीय स्वरूप में विकसित होगा. वह शनिवार को यहां द एशियाटिक सोसायटी, बिहार के एक कार्यक्रम में भाग लेने आये थे. इस मौके पर प्रो सेन ने कहा, नालंदा अंतरराष्ट्रीय विवि के निर्माण के लिए नौ देशों ने
सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किये हैं. इस काम में उनकी भी भूमिका है. यहां दुनिया भर के फैकल्टी और छात्र आयेंगे. इसलिए इस विवि का स्तर अंतरराष्ट्रीय होना चाहिए यानी इसका इन्फ्रास्ट्रक्चर, फैकल्टी और सुविधाएं अंतरराष्ट्रीय दज्रे के अनुरूप होनी चाहिए. फंड भी वैसा ही होना चाहिए. लेकिन, केंद्र में शायद इसके प्रति किसी केंद्रीय विश्वविद्यालय जैसा सोच दिखता है.
कार्यक्रम में डॉ पीयूषेंदु गुप्ता को ‘इतिहास रत्न’ सम्मान से नवाजा गया. इस मौके पर प्रसिद्ध अर्थशास्त्री लॉर्ड मेघनाथ देसाई भी मौजूद थे.अपने संबोधन में अमर्त्य सेन ने कहा कि बिहार में ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासतें भरी पड़ी हैं. नालंदा, तक्षशिला और अब तेलहड़ा में इसके अवशेष मिले हैं.
प्रो सेन ने कहा कि नालंदा अंतरराष्ट्रीय विवि के निर्माण के लिए कानून पास हो गया है और एक बड़ी बाधा पार कर ली गयी है. उम्मीद है कि वित्त मंत्रलय से भी इसके लिए पूरा फंड मिल जायेगा और दूसरी बाधा भी पार हो जायेगी.
क्या यह विवि इस साल तयशुदा समय पर काम करने लगेगा? इस सवाल पर प्रो सेन ने कहा कि सब कुछ केंद्र सरकार के रुख पर निर्भर करता है. अगर केंद्रीय वित्त मंत्रलय ने सही समय पर पूरा फंड दिया और केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रलय का सहयोग मिला, तो ऐसा हो पायेगा.