पटना: प्रतिबंधित नक्सली संगठनों ने लेवी की वसूली में कॉरपोरेट स्टाइल में काम करना शुरू कर दिया है. विकास कार्यो में लगी निर्माण एजेंसियों को सरकार द्वारा भुगतान की जा रही राशि की जानकारी हासिल करने के लिए उन्होंने सूचना का अधिकार कानून को भी हथियार बनाया है और इससे मिलने वाली जानकारी के आधार पर निजी निर्माण एजेंसियों और ठेकेदारों के खिलाफ कार्रवाई भी शुरू कर दी है. हाल के दिनों में राज्य के विभिन्न इलाकों में निर्माण एजेंसियों के बेस कैंपों पर हो रहे लगातार हमले इसी का नतीजा है.
सरकार से भुगतान मिलने के बाद जब निर्माण एजेंसियां नक्सलियों को लेवी का भुगतान नहीं करती हैं तो उन्हें सबक सिखाने के लिए उनके वाहन, मशीन और कार्यस्थल को निशाना बनाया जाता है.
ऑपरेशन में मिले हैं दस्तावेज : जमुई में कोबरा बटालियन, एसटीएफ और जिला पुलिस बल द्वारा चलाये गये एक तलाशी अभियान में पुलिस को नक्सलियों के ठिकानों से कई ऐसे दस्तावेज मिले हैं जो सरकारी सूचनाओं से संबंधित हैं. ये दस्तावेज बताते हैं कि किस निर्माण एजेंसी को निर्माण कार्यो के लिए सरकार से कब और कैसे राशि का भुगतान किया गया है.
किस्तों में कर रहे लेवी की वसूली
नक्सलियों ने लेवी वसूली का अपना पुराना तरीका बदल लिया है और निर्माण कंपनियों को लेवी के भुगतान में सुविधा देने के लिए उन्होंने किस्तों पर लेवी वसूली शुरू की है.
काम शुरू करने से पहले और काम खत्म होने तक कई किस्तों में लेवी का भुगतान करना पड़ता है.
किस्तों में लेवी देने के लिए नक्सलियों और निर्माण एजेंसियों के बीच एक समझौता किया जाता है, जिसमें सरकार से भुगतान मिलने के बाद लेवी राशि के भुगतान की शर्त होती है.
इस समझौते का उल्लंघन करने पर नक्सली उनके कार्यस्थल पर हमले क ा रास्ता अपना रहे हैं.
नक्सली निर्माण एजेंसियों से निविदा की राशि का पांच प्रतिशत हिस्सा बतौर लेवी वसूल रहे हैं. बिहार में यह रकम पांच से सात सौ करोड़ रुपये बतायी जाती है.
सरकार ने आज एक अध्ययन के हवाले से बताया कि नक्सली ठेकेदारों, व्यापारियों एवं निगमित घरानों आदि से सालाना 140 करोड़ रुपये की जबरन वसूली कर रहे हैं.
गृह राज्यमंत्री आरपीएन सिंह ने विवेक गुप्ता के सवाल के लिखित जवाब में राज्यसभा में कहा कि दिल्ली के रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान के एक अध्ययन के मुताबिक नक्सली विभिन्न स्नेतों से न्यूनतम 140 करोड़ रुपये वार्षिक एकत्र कर रहे हैं.