पटना : सूबे के आठ मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में करीब 250 चिकित्सक शिक्षक पदोन्नति के इंतजार में बूढ़े हो रहे हैं. जिन्हें 2004 में प्रोफेसर के पद पर प्रोन्नति मिल जानी चाहिए, वे अभी तक असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर काम कर रहे हैं. मंगलवार को कैबिनेट के निर्णय के बाद ऐसे चिकित्सकों में मायूसी है. कैबिनेट ने 67 वर्ष की उम्रवाले सेवानिवृत्त चिकित्सक शिक्षकों को संविदा पर नियुक्त का निर्णय लिया है.
स्वास्थ्य विभाग मेडिकल कॉलेज अस्पतालों के चिकित्सकों की सेवानिवृत्ति की उम्र सीमा में 2007 से वृद्धि करता आ रहा है. इससे वरीय पदों पर रिक्ति हो ही नहीं रही है. 2007 में पहली बार चिकित्सकों की सेवानिवृत्ति की उम्र सीमा 58 वर्ष से बढ़ा कर 60 वर्ष कर दी गयी. नवंबर, 2009 में 60 वर्ष से बढ़ा कर 62 वर्ष कर दी गयी.
फिर फरवरी, 2011 में 62 वर्ष से 65 वर्ष कर दी गयी. इधर, मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में विभिन्न विभागों में 1999 में सीनियर रेसीडेंसी करनेवाले चिकित्सक शिक्षक असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर ही काम कर रहे हैं. चिकित्सक शिक्षकों की नियमित प्रोन्नति के प्रावधान के अनुसार असिस्टेंट प्रोफेसर की पांच वर्ष की सेवा करने व अनुभव प्राप्त करनेवाले चिकित्सक शिक्षकों को एसोसिएट प्रोफेसर और चार वर्ष तक एसोसिएट प्रोफेसर पर सेवा करने के बाद प्रोफेसर पद पर प्रोन्नति दे दी जाती है. राज्य के मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में वर्ष 2004 में असिस्टेंट प्रोफेसर बने चिकित्सकों को 2009 में एसोसिएट प्रोफेसर पद पर प्रोन्नति मिल जानी चाहिए.
अगर उन्हें नियमित प्रोन्नति मिलती तो वे प्रोफेसर बन गये होते. 2004 में असिस्टेंट पद पर बहाल करीब 200 चिकित्सक अभी तक उसी पद पर काम कर रहे हैं. ऊपर के पद पर रिक्ति रहते हुए भी उन्हें प्रोन्नति नहीं मिल रही है. इसी तरह करीब 50 एसोसिएट प्रोफेसर हैं जिन्हें पदोन्नति का इंतजार हैं. ऐसे चिकित्सक संविदा पर नियुक्ति की उम्र सीमा बढ़ाने पर असंतोष व्यक्त कर रहे हैं. उनका कहना है कि अवकाश ग्रहण करने की उम्र सीमा 65 वर्ष होने पर सरकार को चिकित्सक ही नहीं मिल रहे हैं.