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– संजय –

महातबाही, बड़ी लापरवाही

पटना : उत्तराखंड में आयी भीषण तबाही को पांच महीने से अधिक समय हो चुका है. लेकिन, इस तबाही में मारे गये बिहार के लोगों के परिजनों को अब तक मुआवजा नहीं मिला है. बिहार सरकार और उत्तराखंड सरकार की ओर से उन्हें सात-सात लाख रुपये मिलने थे.

डीएम के माध्यम से पीड़ित परिवारों को राशि देनी है. लेकिन, अब तक आपदा प्रबंधन विभाग को किसी भी डीएम ने पीड़ित परिजनों को मुआवजा दे देने की सूचना नहीं दी है. मुआवजा देने की घोषणा के बाद जिलों में अब भी कागजी काम ही हो रहे हैं. इस वर्ष 16-17 जून को अति बारिश के कारण उत्तराखंड के केदारनाथ, रामबाढ़ा, गौरीकुंड, सोनप्रयाग, गोविंदघाट सहित अन्य इलाके में भागीरथी, मंदाकिनी, अलकनंदा, गौरी, काली व अन्य सहायक नदियों में भीषण बाढ़ आयी थी.

इस विनाश में बड़ी संख्या में लोग लापता हुए थे. बिहार से उस समय 58 लोगों की सूची बनी थी. इसके बाद आपदा प्रबंधन विभाग ने लोगों से आमंत्रण मांगे. 22 और लोगों के लापता होने की सूचना विभाग को मिली. उत्तराखंड सरकार से लापता लोगों की सूची का मिलान हुआ.

आपदा आने के बाद केंद्र सरकार ने उत्तराखंड त्रसदी की भयावहता को देखते हुए नियमावली में संशोधन किया और पांच लाख रुपये देने की घोषणा की. इसमें से डेढ़ लाख रुपये केंद्र के एसडीआरएफ मद में आपदा कोष से, डेढ़ लाख रुपये उत्तराखंड सरकार और शेष दो लाख रुपये प्रधानमंत्री आपदा राहत कोष से दिये जायेंगे. वहीं, बिहार सरकार ने अलग से दो लाख रुपये देने की घोषणा की. यह राशि आपदा प्रबंधन विभाग व मुख्यमंत्री राहत कोष के माध्यम से दी जानी है.

मुआवजे के लिए भटक रहे देवेंद्र के परिजन

बिहटा के लक्षमणपुर निवासी देवेंद्र प्रसाद सिंह जमादार थे. बक्सर जिले में पोस्टिंग थी. पूर्व मंत्री अश्विनी चौबे के गार्ड थे. उत्तराखंड गये, कोई पता नहीं चला. परिजनों ने चार अक्तूबर को अंतिम संस्कार कर दिया. परिजन पटना व बक्सर के डीएम व एसपी, आपदा प्रबंधन विभाग, डीजीपी व उत्तराखंड सरकार को आवेदन दे चुके हैं. अब भी जांच चल रही है.

पत्नी किरण देवी व छोटे भाई शैलेंद्र कहते हैं कि केवल वही कमानेवाले थे. दो बेटे व दो बेटियां हैं. एक की शादी हो चुकी है. अन्य तीनों इंटर व बीए में पढ़ रहे हैं. घर का खर्च चलाने में परेशानी हो रही है. सरकार से ही आस है. अगर पैसा नहीं मिला,तो घर चलाने से लेकर बच्चों को पढ़ाने-लिखाने में समस्या हो जायेगी.

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