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फ्लॉप रही मोदी की हुंकार रैली : वशिष्ठ

पटना : जदयू के प्रदेश अध्यक्ष सह सांसद वशिष्ठ नारायण सिंह ने भाजपा की हुंकार रैली को फ्लॉप बताया है. उन्होंने कहा कि रैली के लिए जिस तरह से प्रचार-प्रसार किया गया था, उसके अनुसार यह नहीं रही. बेतहाशा पैसे खर्च किये गये. यह पैसा गरीबों का नहीं था. कॉरपोरेट घरानों के दम पर रैली […]

पटना : जदयू के प्रदेश अध्यक्ष सह सांसद वशिष्ठ नारायण सिंह ने भाजपा की हुंकार रैली को फ्लॉप बताया है. उन्होंने कहा कि रैली के लिए जिस तरह से प्रचार-प्रसार किया गया था, उसके अनुसार यह नहीं रही. बेतहाशा पैसे खर्च किये गये. यह पैसा गरीबों का नहीं था. कॉरपोरेट घरानों के दम पर रैली आयोजित थी. प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि रैली का उद्देश्य क्या था.यह समझ से परे है.रैली का कोई औचित्य ही नहीं था.हुंकार रैली की घोषणा के समय केंद्र सरकार के खिलाफ रैली करने की बात थी. इसे समेट कर राज्य सरकार के खिलाफ कर दिया गया है. दरअसल,अपने खोते जनाधार को बताने के लिए भाजपा ने यह रैली की थी, पर असफल रही. संख्या की दृष्टि से यह काफी कम था.

रैली में आनेवालों को देख कर भी कहा जा सकता है कि हुंकार रैली में कौन लोग आये थे. अधिकार रैली में समाज के निचले तबकों की भागीदारी अधिक थी. वंचित तबके की भागीदारी अधिक थी. हुंकार रैली में वह तबका गायब था. सड़कों पर जिस तरह से छोटी गाड़ियां आती-जाती रही. उससे संख्या का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है.

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फ्लॉप रही मोदी की हुंकार रैली : वशिष्ठ 2

अधिकार रैली से हुंकार रैली की तुलना किये जाने पर उन्होंने कहा कि अधिकार रैली का मकसद जदयू की ताकत बढ़ाना नहीं था. वह पहली रैली थी जो किसी राजनीतिक दल ने अपने स्वार्थ के बजाय राज्य हित के मुद्दे पर रैली बुलायी थी. रैली में आने वाले लोगों के चेहरे को देख कर समझा जा सकता था कि बिहार पिछड़ा है. पिछड़ेपन से उबरने के लिए लोग उस रैली में स्वत: स्फूर्त शामिल हुए थे. वैसे भी किसी रैली से उस पार्टी का चरित्र भी झलकता है.

अनुशासन, योजना व समय पर तय जिम्मेदारियों को पूरा करने के कारण ही अधिकार रैली बेहद सफल रही थी. जदयू ने उस रैली में किसी को घर से बाहर नहीं निकलने या यात्र नहीं करने की अपील नहीं की थी. भाजपा को तो बिहारियों पर ही भरोसा नहीं है. दूसरे राज्य से मंच लाया गया. भाजपाइयों का बिहारियों से भरोसा उठ गया.

अधिकार रैली में लोगों ने इस रैली में बढ़-चढ़ कर भाग लिया था, जितने लोग गांधी मैदान में थे. उससे अधिक शहर की सड़कों पर थे. आम लोग भी आते-जाते रहे. राज्य का ऐसा कोई कोना नहीं था,जहां से लोग नहीं आये. लोगों ने आत्मानुशासन का परिचय दिया. अधिकार रैली बिहार के विकास को लेकर थी.

* अमेरिकी पैटर्न पर भाजपा कर रही प्रचार : सिद्दीकी

भाजपा अमेरिकी पैटर्न पर प्रचार कर रही है. हुंकार रैली का अर्थ व मायने जनता की समझ से बाहर है. आखिर भाजपा के नेता किस बात की हुंकार भर रहे हैं. अगर इसके जगह पर आह्वान रैली करते, तो बात समझ में आती. रैलियों को महंगा बना दिया गया है.

हुंकार रैली में पानी की तरह पैसा बहाया गया है उससे लगता है कि क्षेत्रीय दल अब रैली करने को लेकर हिम्मत नहीं करेंगे. यह सब क्षेत्रीय दलों के अस्तित्व को गौण करने की साजिश है. यह कहना है राजद विधायक दल के नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी का. श्री सिद्दीकी बताते हैं लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी भी राजनीतिक दलों को अपनी बात जनता तक पहुंचाने के लिए रैली करने का अधिकार है, लेकिन जिस तरह से भाजपा ने माहौल पैदा कर दिया है उसके शुभ संकेत सामने नजर नहीं आ रहे हैं. इससे दुविधा की स्थिति उत्पन्न हो गयी है. हुंकार रैली, गरीब रैला की तुलना में कहीं भी नहीं है, जबकि इसके लिए करोड़ों रुपये खर्च किये गये हैं.

* सुनूं क्या सिंधु मैं गजर्न तुम्हारा : शत्रुघ्न प्रसाद सिंह, पूर्व सांसद

सर्वोच्च न्यायालय व निर्वाचन आयोग के निर्देशों को धता बताते हुए चाल, चरित्र, चेहरे का नया प्रतिमान गढ़नेवाली पार्टी सत्ता, संपत्ति, वैभव का दंभपूर्ण प्रदर्शन कर भारत राष्ट्र राज्य का कैसा भव्य मंदिर निर्माण करना चाहती है, इसकी कल्पना से भय -आतंक की भयावह तसवीर उभरती है. फेसबुक, ट्विटर, अत्याधुनिक कैमरे, दिल्ली निर्मित लौह फ्रेमयुक्त मंच पर अकेला तथाकथित महानायक, विकास पुरुष, हिंदू हृदय सम्राट के हुंकार से बिहार को जगाने का दंभ भरा गया. आखिर करोड़ों अपारदर्शी व्यय के प्रवाह को कौन रोकेगा? धन पशुओं के चरागाह में तब्दील मुल्क हिंदुस्तान की तकदीर बनानेवाला वैभव प्रदर्शन है 27 अक्तूबर की रैली.

इस तरह राजनीति में धन के वीभत्स प्रदर्शन का गवाह बनी हुंकार रैली. बुद्ध के बिहार में जज्बाती नारे का उभार, जातीय एवं धार्मिक उन्मादी तेवर खतरे के गंभीर संकेत हैं. अंबानी के 88 हजार करोड़ के गैस घोटाले पर विकास पुरुष की चुप्पी का जवाब चाहिए बिहारवासियों को. गुजरात उच्च न्यायालय के समान कार्य के लिए समान वेतन के न्याय निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में गुजरात सरकार की अपील बिहार में नियोजित अल्प वेतनभोगी शिक्षकों, संविदा पर नियुक्त अभियंताओं, चिकित्सकों, आशा की भी हकमारी है.

बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ ने गुजरात के मेहनतकशों की न्यूनतम मजदूरी और समान कार्य के लिए समान वेतन की संवैधानिक प्रतिबद्धता को नकाराने की नीतियों के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में हस्तक्षेप याचिका दायर की है. 25 अक्तूबर को सत्तू, नमक, माथे पर गठरी, गोद में नौनिहाल लिये माताओं, बेकार नौजवानों के जत्थे, जिनके सपनों को राजनीति के उन्मादी दबंगों ने चकनाचूर कर दिया है, कंधे पर लाल झंडा लिए केंद्र और राज्य को भी आक्रोश की लाल लहरों से चुनौती देने आये थे.

दूसरी ओर पूरी-मिठाई, बोतलबंद पेयजल आदि लोभ, लालच के ढेर सारे पकवान परोसे गये. दिल्ली, गुजरात के मंच निर्माताओं, होर्डिग, बैनरों, नारों के आतंक से पूरा सूबा परेशान हुआ. बिहार को विशेष राज्य के दर्जे के सर्वसम्मत विधानमंडल प्रस्ताव को सड़क पर शर्मनाक ढंग से रौंदने का अपराध भी 27 अक्तूबर की रैली में देखने को मिला. भाकपा ने जहां एक ओर वैकल्पिक आर्थिक नीति, भूमिहीनों को जमीन और उस पर एक आशियाना, किसानों, मजदूरों को तीन हजार पेंशन, बाढ़-सुखाड़ का स्थायी समाधान आदि जनहित के सवालों पर जनाक्रोश अभिव्यक्त किया. वहीं, भाजपा कांग्रेसी आर्थिक नीतियों की ही पैरोकार है.

क्या सार्वजनिक क्षेत्रों की रक्षा, समावेशी विकास, सुदृढ़ बैंकिंग व्यवस्था के बिना राष्ट्र का संतुलित विकास होगा? हुंकार में इसका जवाब नहीं मिला. जिस गांधी मैदान में लोकनायक जयप्रकाश ने इंदिरा राज्य के भ्रष्टाचार और तानाशाही के प्रतिरोध में संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया था, क्या गुजरात में लोकायुक्त की नियुक्ति में अनवरत व्यवधान पैदा कर उसी संपूर्ण क्रांति की भ्रूण हत्या के अपराध के पाप का प्रक्षालन राष्ट्रपिता की विशाल प्रतिमा के सामने नहीं हुआ? बंजारा विवाद, अमित शाह से सीबीआइ की पूछताछ के प्रतिशोध में न्यायिक व्यवस्था की अवमानना के संबंध में पंथ निरपेक्षता का निष्ठावान पक्षधर बिहार जवाब चाहता है.

टाटा को 22 हजार करोड़ के निवेश के उपहार में गुजरात के गरीबों की कमाई के 95 लाख 705 करोड़ का ऋण एक प्रतिशत सूद पर देनेवाले गुजरात ने बिहार के विकास का आखिर कैसा सपना दिखाया? वह शहजादे, विकास पुरुष, हिंदू हृदय सम्राट जैसे असंयत, अशिष्ट भाषा मर्यादा उल्लंघन के अपराध से तोबा कब करेंगे? क्या ऐसा करने की धृष्टता बिहारवासी कर सकते हैं. सिंधु के तट से आये अतिथि के सम्मान में राष्ट्रकवि दिनकर की शब्दांजलि-

सुनूं क्या सिंधु मैं गजर्न तुम्हारा,

स्वयं युग धर्म का हुंकार हूं मैं

* सरकार का खुफिया तंत्र विफल

राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा व प्रदेश अध्यक्ष डॉ अरुण कुमार ने सीरियल बम ब्लास्ट की निंदा की है. गांधी मैदान में नरेंद्र मोदी की रैली और एक दिन पूर्व राष्ट्रपति के दौरे को लेकर सरकार व पुलिस प्रशासन को हाइ अलर्ट रहने की जरूरत थी. बावजूद राजधानी के महत्वपूर्ण स्थल पटना जंकशन और गांधी मैदान में बम ब्लास्ट हुए. गांधी मैदान का इलाका भी काफी महत्वपूर्ण है. कई वरीय प्रशासनिक अधिकारियों का निवास है. ऐसे स्थल पर बम ब्लास्ट की घटना साबित करती है कि पुलिस प्रशासन पंगु हो गया है. यह सरकार की दोहरी नाकामी है. घटना ने साबित कर दिया है कि बिहार का खुफिया तंत्र बिल्कुल नाकाम है.

सरकार को मारे गये पांच लोग व करीब सौ घायलों की जिम्मेदारी लेते हुए जनता से माफी मांगनी चाहिए. राजनीति में वैचारिक विरोध लाजिमी है. आश्चर्य तब होता है जब कोई व्यक्ति सत्ता के मद में चूर हो जनता की बलि चढ़ा देता है. आरोप लगाया कि राजनीतिक शीर्ष पर बैठा व्यक्ति अपने निहित स्वार्थ को पूरा करने के लिए इतने घटिया हद तक की राजनीति में उतर सकता है. रालोसपा घटना की निंदा करती है. उन्होंने मृतक के परिजनों को 20-20 लाख मुआवजा व घायलों को दो-दो लाख व मुफ्त इलाज की मांग की है.

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