कटौना (नालंदा) : कटौना गांव में अंधविश्वास के कारण सदियों से समय पर धान नहीं रोपने की रूढ़िवादी परंपरा चली आ रही थी. लेकिन, गांव के पांच प्रगतिशील किसानों ने आखिरकार हिम्मत दिखाई व धान की रोपनी शुरू कर वर्षो की इस परंपरा के बंधन को तोड़ दिया. किसानों के इस फैसले का गांववालों ने साथ नहीं दिया.
लेकिन शुक्रवार को इन किसानों के हाथों से खेत में रोपे जा रहे धान की मोरी को देखने के लिए गांव के एक पीपल के पेड़ के पास भीड़ इकट्ठी हो गयी. कटौना गांव में सैकड़ों वर्षो से रूढ़िवादी परंपरा चली आ रही है कि नागपंचमी के दिन लखन सेन ठाकुर की पिंडी पर घी देने के बाद ही गांव में धान की रोपनी शुरू होगी.
अगर नागपंचमी के दिन गांव में किसी व्यक्ति का निधन हो जाता है तो धान की रोपनी फिर अगले पंचमी यानी 15 दिन के बाद शुरू होगी. इस बीच में नागपंचमी के पहले कोई किसान धान की रोपनी करता है, तो उसके यहां किसी की मृत्यु हो जाती है या कोई बड़ी घटना हो जाती है. इस गांव में ऐसी कई बार अनहोनी होने से रूढ़िवादी मानसिकता और भी मजबूत हो गयी है, लेकिन इस रुढ़ीवादी मानसिकता के कारण गांव में धान की रोपनी काफी पिछात हो जाती है, जिसके कारण धान की पैदावार 40 प्रतिशत भी नहीं हो पाती हैं.
कभी-कभी तो धान की पैदावार भी नहीं होती है. इस तरह से इस गांव के तीन हजार एकड़ भूमि में धान की खेती काफी देर से शुरू होती है. इससे किसानों को काफी नुकसान हो रहा है.इतना ही नहीं इस गांव में अंधविश्वास के कारण ना तो प्याज और ना ही लहसुन की खेती होती है और ना ही गांव के किसी दुकान में इसकी बिक्री की जाती है. इसी तरह से इस पंचायत के पलटपुरा व गंगापुर गांव में भी इसी रूढ़ीवादी मानसिकता के कारण धान की रोपणी नागपंचमी के बाद ही होती है.यह रूढ़िवादी परंपरा पहले पूरे कटौना पंचायत में थी, लेकिन करीब 30 वर्ष पूर्व इस परंपरा को तोड़ कर इस पंचायत के छाछु बिगहा, लोहराजपुर, परमानंदपुर, भैदी गांव में धान की रोपनी शुरू हो गयी.