पटना: जिस स्वाइन फीवर के टीके के लिए बिहार सरकार कोलकाता के आरडीडीएल लेबोरेटरी से अनुरोध कर रही है, वह 1996 में पशुपालन विभाग के वैक्सीन इकाई में बनना शुरू हो गया था. प्रशासनिक लाल फीताशाही के कारण संस्थान के विशेषज्ञों का तबादला कर दिया गया. इसके बाद इस टीका की दूसरी खेप तक नहीं बन सकी. अब इसकी एक खुराक के लिए भी सरकार को दूसरे राज्यों की ओर देखना पड़ रहा है.
बिहार में पशुपालन को मजबूत करने के लिए बिहार की तत्कालीन सरकार ने वैक्सीन इकाई में 62 विशेषज्ञों की नियुक्ति की थी. यहां गंभीर बीमारी एंथ्रेक्स तक के टीके बनाये जाते थे. 2013 में पटना जिले के नौबतपुर में पशुओं में खतरनाक बीमारी एंथ्रेक्स की जानकारी मिलने के बाद झारखंड से एंथ्रेक्स के पांच हजार टीके झारखंड से मंगाये गये. संस्थान के पूर्व विशेषज्ञ डॉ वीरेश प्रसाद सिन्हा ने बताया कि यहां स्वाइन फीवर, बीक्यू, एचएस सहित नौ प्रकार के महत्वपूर्ण टीके बनाये जाते थे. डॉ सिन्हा ने बताया कि बिहार में पशुओं में होनेवाले चेचक का सफाया इसी संस्थान में बने आरटी टीका से किया गया था. अब पशुओं में चेचक के पूर्ण रूप से खात्मे की घोषणा की जा चुकी है. उन्होंने बताया कि एलआरएस जो अब पशु स्वास्थ्य एवं उत्पादन संस्थान के नाम से जाना जाता है, में पशुओं की बीमारी की जांच, पॉल्ट्री में बीमारी के सभी प्रकार के टीके, बांझपन, टीबी कंट्रोल, पशुओं की प्रजाति में उन्नयन, नौ प्रकार के वैक्सीन उत्पादन सहित कुल 18 डिवीजन कार्यरत थे. अब ये सभी डिवीजन नॉन फंक्शनल हो चुका है.
डॉ सिन्हा ने बताया कि अब संस्थान में कुल 19 विशेषज्ञ ही कार्यरत हैं. ये आखिर करें, तो क्या करें. सभी एक-एक विशेषज्ञ को एक-एक डिवीजन का प्रमुख नियुक्त कर दिया गया है. ऐसे में कैसे किसी प्रकार की बेहतरी की बात कर सकते हैं.
उन्होंने बताया कि अब इस संस्थान को वेटनरी विवि में शामिल कराने की साजिश की जा रही है. यदि यह वेटनरी विश्वविद्यालय में शामिल हो गया तो इस पर राज्य सरकार का नियंत्रण ही खत्म हो जायेगा. इससे कभी आपात स्थिति में बीमारी नियंत्रण की सरकार के प्रयास को झटका लग सकता है, क्योंकि इस इकाई पर तब विश्वविद्यालय का नियंत्रण होगा. उन्होंने कहा कि देश के किसी भी राज्य में इस तरह के संस्थान राज्य सरकार के तहत ही कार्य करता है.