राजनीति में कैसे आना हुआ, यह अचानक था या फिर पहले से योजना थी.
यह अचानक ही था. पिता लालू जी कानूनी कारणों से चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. पाटलिपुत्र इलाके में हजारों कार्यकर्ताओं से पिता जी का करीबी संबंध रहा है. वो सब कार्यकर्ता आये और परिवार से ही एक उम्मीदवार देने की जिद कर रहे थे. इधर, लालू जी के नहीं लड़ने से दल के भीतर भी असमंजस की स्थिति बनी हुई थी. रामकृपाल यादव समेत कई नेता टिकट के दावेदार थे. ऐसे में किसी एक को टिकट देने से पार्टी संकट में पड़ सकती थी. इस कारण यह निर्णय हुआ कि यहां उम्मीदवार घर से ही दिया जाये. इसी कारण मुङो उम्मीदवार बनना पड़ा.
आपके मुकाबले जदयू से डॉ रंजन यादव और भाजपा से रामकृपाल यादव उम्मीदवार हैं. आप इनसे कैसे अपने को बेहतर मानती हैं.
यह दोनों मेरे चाचा हैं. लालू जी के दल से ही वह निकले हैं. वो बुजुर्ग हैं, मैं युवा हूं, महिला हूं. इसलिए मैं उनसे मुकाबले में अपने को सेफ मानती हूं. मेरे साथ राजद की पूरे कार्यकर्ता और इलाके की जनता का प्यार है. मुङो उम्मीद है कि क्षेत्र की जनता मुङो अपना समर्थन देगी और हम सांसद निर्वाचित होंगे. डर तो वह लोग रहे हैं. बहुत लोग उन्हें नापसंद भी करते हैं.
राजनीति का आपको कितना अनुभव है.
सीधे चुनाव का अनुभव नहीं है. लेकिन कहीं न कहीं से राजनीति से जुड़ी तो थी ही. मैं चपरासी क्वार्टर से मुख्यमंत्री निवास और फिर दिल्ली में केंद्रीय रेल मंत्री के आवास में रह चुकी हूं. घर में बचपन से ही राजनीतिक माहौल देखती आयी हूं. मेरा नाम मीसा रखे जाने के पीछे भी राजनीति ही कारण रहा. जिस दौरान लालू जी आपातकाल में जेल गये, मीसा लगा उसी समय मेरा जन्म हुआ. इस कारण नाम भी मीसा रखा गया. हां मैने कभी पॉलिटिकल प्रैक्टिस नहीं की.
नरेंद्र मोदी की लहर को आप कितना चुनौती मानती हैं.
देयर इज नो वेब, कैसा वेब. यदि वेब होता तो नरेंद्र मोदी को दो जगहों से चुनाव क्यों लड़ना पड़ता. गुजरात से उन्हें बाहर निकलने की क्या जरूरत पड़ती और लाल कृष्ण आडवाणी को भोपाल की सीट क्यों पसंद करनी पड़ती. लहर तो लालू जी का है, जो वर्षाें से बरकरार है. मैं गांवों में घूम रही हूं. लोगों से पूछती हूं, सड़क किसने बनवाया, जवाब होता है मुखिया जी और लालू जी. सरकार किनकी है, तो जवाब आता है लालू जी की. लालू जी को छोड़ किसी और का नाम भी नहीं जानते गांवों के लोग.
आप एक डाक्टर हैं, आपको लगता है कि चुनाव में एक प्रमुख मुद्दा स्वास्थ भी होना चाहिए. आप क्या इस पर चुनावी सभाओं में चर्चा करती हैं.
निश्चित रूप से स्वास्थ एक चुनावी मुददा बनना चाहिए. मैं देखती हूं, दूर-दूर तक ग्रामीण इलाकों में अस्पताल नहीं है. महिलायें स्वास्थ संबंधी चीजों से अवगत नहीं हैं. मैं सांसद निर्वाचित हुई, तो संसद में राइट टू एजुकेशन की तर्ज पर ‘राइट टू हेल्थ’ कानून लाये जाने की आवाज उठाऊंगी. मेरे उम्मीदवार बनने से बड़ी संख्या में महिलायें राजद की ओर मुखातिब हो रही हैं. मैं सांसद बनने पर महिला आरक्षण के पक्ष में आवाज उठाऊंगी. मैं इस बात की पक्षधर हूं कि महिला आरक्षण में वीकर सेक्शन की महिलाओं के लिए जगह सुरक्षित होनी चाहिए.