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हाइकमान के फैसले को स्वीकार करने के लिए प्रदेश के शीर्ष नेताओं में आम सहमति है : सरयू राय

सरयू राय भाजपा की झारखंड इकाई के वरिष्ठ नेता है. पार्टी के रणनीतिक मुद्दों पर उनका नजरिया पार्टी के लिए महत्वपूर्ण होता है. वे लंबे समय से पार्टी का घोषणा पत्र बनाने का काम करते रहे हैं. यह तय है कि राज्य में गठित होने वाली भाजपा की अगली सरकार में उनकी भूमिका अहम होगी. […]

सरयू राय भाजपा की झारखंड इकाई के वरिष्ठ नेता है. पार्टी के रणनीतिक मुद्दों पर उनका नजरिया पार्टी के लिए महत्वपूर्ण होता है. वे लंबे समय से पार्टी का घोषणा पत्र बनाने का काम करते रहे हैं. यह तय है कि राज्य में गठित होने वाली भाजपा की अगली सरकार में उनकी भूमिका अहम होगी. अगर वे मुख्यमंत्री बनते हैं तो भी और नहीं बनते हैं तब भी. गवर्नेस, प्लानिंग और आर्थिक मोर्चे पर सरकार के लिए उनका मार्गदर्शन अहम होगा. डोरंडा के लोटस अपार्टमेंट स्थित उनके आवास पर विधायकों, कार्यकर्ताओं व समर्थकों का गुरुवार को दिन पर जमावड़ा लगता रहा. इस बीच उन्होंने आज राज्य इकाई के शीर्ष नेताओं के साथ एक बैठक भी की और भावी रणनीति पर चर्चा की. सरयू राय बड़ी साफगोई से मानते हैं कि अगली सरकार के लिए परिस्थितियां चुनौतीपूर्ण होगी. साथ ही खुद के दम पर भाजपा को बहुमत का आंकड़ा छूने से वंचित रह जाने को भी वह संगठन की ताकत की सीमा मानते हैं और संकेत देते हैं कि संगठन के लिए और काम करने की जरूरत है. प्रस्तुत है प्रभात खबर डॉट कॉम के लिए कुणाल किशोर से उनकी बातचीत का प्रमुख अंश :
प्रश्न : इस चुनाव परिणाम को आप कैसे देखते हैं. आपके गंठबंधन को बहुमत मिला है? अब आगे क्या होगा?
उत्तर : यह चुनाव परिणाम 14 वर्ष तक राज्य में जो कुशासन था, उसको बदलने का संकेत है. हमें बहुमत से थोड़ी कम सीटें आयीं. आम जनता स्थिर सरकार चाहती है. 14 सालों में चीजें खिचड़ी सरकार के कारण नेपथ्य में चली गयी थी. आम जनता ने मन बनाया, मन बनाने की प्रेरणा नरेंद्र मोदी को लोकसभा चुनाव में देश में मिली सफलता से मिली. देश में भी प्रतिकूल परिस्थितियां के बावजूद पूर्ण बहुमत वाली सरकार जनता ने चुनी. राज्य में भी जनता को लगा कि उन्हें ऐसी सरकार चुननी चाहिए.
प्रश्न : आप झारखंड आये, गोविंदचार्य जी आये. बाबूलाल सीएम बने. यह तय किया गया था कि पितामह की भूमिका आपकी रहेगी और योजनाओं व कार्यक्रमों को कार्यान्वित करने की भूमिका मुख्यमंत्री के रूप में बाबूलाल मरांडी की होगी. फिर समस्या कहां आ गयी?
उत्तर : पिछले 14 साल के शासन को हम दो खंडों में देखते हैं. एक खंड 2000 से 2004 तक और दूसरा उसके बाद का. उस समय एक ही तरह की सरकार दिल्ली व राज्य में थी. उसके बाद केंद्र में यूपीए सरकार आयी. अजरुन मुंडा की सरकार को गिरा दिया गया, निर्दलीय को सीएम बना दिया दिया. फिर मधु कोड़ा को भी हटा दिया गया. फिर शिबू सोरेन भी सीएम बने. उनकी सरकार भी गिरा दी गयी. फिर एनडीए सरकार को भी चलने नहीं दिया. कांग्रेस का सरकारों पर नियंत्रण हुआ. पिछली सरकार (हेमंत सोरेन सरकार) के दौरान मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव व सचिव भारत सरकार की किसी बैठक में नहीं जाते थे. जो चतुराई का एलिमेंट राजनीति में आया, बाद में वहीं पॉलिसी बन गयी. और, अगर वही पॉलिसी बन जाये तो विकास को इसका खामियाजा भुगतना ही पड़ेगा. मान्यता यह हो गयी कि जो विधायक को बांध कर रख सकता है, वही मुख्यमंत्री होगा. इससे शासन की संस्कृति व राजनीतिक शैली में गिरावट आयी. इस कारण नयी सरकार के सामने भी कड़ी चुनौतियां रहेंगी.
सुशासन के अभाव का दंश ऊपर से नीचे तक चला गया है. आम जनता को उसका अधिकार लेने के लिए सरकारी तंत्र को विवश होना पड़ता है. मेरा सिद्धांत है – भ्रष्टाचार मुक्त शासन, प्रदूषण मुक्त उत्पादन. अगर ये चीजें नहीं हो पाती हैं तो आम जनता के पॉकेट से ही पैसे निकलेंगे. जैसे मौसम में बदलाव आने पर हम कपड़े बदलते हैं. वैसे ही, हम उम्मीद करते हैं कि हमारा प्रशासनिक ढांचा भी बदलेगा. प्रशासनिक तंत्र भ्रष्टाचार का लबादा फेंक देगा.
सड़क, भवन बन जाते हैं, लेकिन आम जनता के हक वाली कई चीजें सालों से बंद हैं. शासन में कमजोर तबके को लाभ मिलना चाहिए. इस कमी को दूर करना कितना भी चुनौतीपूर्ण हो, पर इसे किया जाना चाहिए. अभी जयंत सिन्हा आये थे, उनसे बात हो रही थी. सरकार के विकास कार्यो का कितना प्रतिशत लाभ लोगों को होता है, इसका हम भौतिक सत्यापन नहीं करते. विद्यालय भवन बन कर खड़े हैं, लेकिन उसमें विद्यार्थी नहीं हैं. वित्तीय खर्च के साथ भौतिक मूल्यांकन भी होना चाहिए.
प्रश्न : आपका भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने का लंबा इतिहास रहा है. पशुपालन घोटाले में सुशील मोदी सड़क पर आंदोलन ले गये, रविशंकर प्रसाद कोर्ट जाते थे और आप तथ्य मुहैया कराते थे. डीवीसी के मुद्दे को भी आपने उठाया. आपकी पार्टी में भी हो सकता है आप जितने ईमानदार हैं, उतने दूसरे लोग नहीं हो. ऐसे में शासन को पारदर्शी, प्रभावी कैसे बनाया जायेगा?
उत्तर : मैं तो कहता हूं कि सत्ता पक्ष ही नहीं विपक्ष के साथ भी आम सहमति के कुछ मुद्दे बनायें. यह टीम सरकार के भीतर भी बने और बाहर भी. आम सहमति की सरकार चलायी जाये, महत्वपूर्ण निर्णय लिया जाये. यह टीम बनाने की जिम्मेवारी मुख्यमंत्री की होगी. संगठन की भूमिका सरकार के लाभ को आम जनता तक ले जाने की व निगरानी करने की होगी. समाज के अच्छे व्यक्तित्व को वे(मुख्यमंत्री) साथ लेकर काम करें. ताकि सरकारी कार्यक्रमों व योजनाओं का अधिक से अधिक अंश आम जनता को मिल सके.
रही बात सरकार और प्रशासन की तो, मुख्यमंत्री वे चीजें तय करते हैं. टीम तो 12 लोगों की होती हैं, वह छह भी हो सकती है. पर, भ्रष्टाचार को कैसे न्यूनतम स्तर पर लायें, यह अहम है. यह भी देखना होगा सरकारी स्तर पर कार्यक्षमता प्रभावित नहीं हो और नौकरशाह काम करें. यहां पहले भी कानून बना है कि समय सीमा के अंदर काम करने का. इसके साथ ही आरटीआइ जैसा क्रांतिकारी कानून भी है.
मुख्यमंत्री सचिवालय में सशक्त पर्यवेक्षक कोषांग का गठन किया जाये. साथ ही इ-गवर्नेस लागू किया जाना चाहिए. मुख्यमंत्री को सामाजिक दायित्व के प्रति सचेत होना चाहिए और जिम्मेवारी तय करनी चाहिए.
मैं भ्रष्टाचार मुक्त शासन और प्रदूषण मुक्त उत्पादन का पक्षधर हूं. भारत सरकार व निजी क्षेत्र की संस्थाओं में हस्तक्षेप की जरूरत है. प्रदूषण के लिए हमारे मेधावी दिमाग ही जिम्मेवार हैं. वे अगर अपनी जिम्मेवारी का निर्वाह करने लगेंगे तो प्रदूषण नहीं होगा.
उद्योग से जो लाभ होता है, उससे जीडीपी में जितना जुड़ता है, उतना नुकसान स्वास्थ्य समस्या में होने वाले खर्च के कारण हो जाता है. नदियों के प्रदूषण को जीडीपी से जोड़ देते हैं, लेकिन पानी के प्रदूषण के कारण बीमारियों होती हैं और पैसे खर्च होते हैं. मैं इन दो मुद्दों को उठाता हूं. यही मेरी ताकत है और यही मेरी कमजोरी है.
प्रश्न : आपकी नजर में मुख्यमंत्री का पद कैसे व्यक्तित्व को मिलना चाहिए?
उत्तर : मुख्यमंत्री पद के चयन के लिए बहुत सारी कसौटियां हैं. उस शख्स की स्वीकार्यता हो, समझदारी हो, उसके अंदर लोगों को साथ लेकर चलने की क्षमता हो, धैर्य हो और सहनशीलता भी हो. उसके अंदर संसाधनों के बारे में विकासोन्मुख दृष्टिकोण होना चाहिए. यह सारे गुण एक व्यक्ति के अंदर नहीं मिलेंगे.
हाइकमान इन प्राथमिकताओं के आधार पर जिसे चाहे उसे नेता बनाये. नरेंद्र मोदी का व्यक्तित्व हमारे लिए मुख्य मुद्दा है. उन्होंने झारखंड दौरे पर कहा था कि झारखंड जिस स्थिति में है, वह हमें स्वीकार नहीं है. मुख्यमंत्री पार्टी से ही होगा. विधायक दल की बैठक में यह तय होगा. हम पार्टी हाइकमान के फैसलों का सम्मान करेंगे. अन्य तबकों से वार्ता कर भी निष्कर्ष वह निकाल सकती है. प्रधानमंत्री, पार्टी अध्यक्ष जिसे नामित करेंगे, वह मुख्यमंत्री होगा.
प्रश्न : क्या मुख्यमंत्री पद को लेकर आदिवासी, मूलवासी व बाहरी जैसे भी कोई विवाद है?
उत्तर : मैं यह नहीं मानता कि राज्य का विकास आदिवासी सीएम होने के कारण नहीं हुआ. हमारी पार्टी ने जिन लोगों को मुख्यमंत्री बनाया वे पार्टी के समझदार लोगों में शामिल थे, सिर्फ ऐसा नहीं है कि उन्हें आदिवासी होने के कारण सीएम बनाया. शिबू सोरेन भी स्वीकार्य थे. पार्टी के कम से कम आधा दर्जन लोगों मुख्यमंत्री बनने के योग्य हैं. हमारी पार्टी आदिवासी मूलवासी पर विचार किये बिना फैसला लेगी. कोई विवाद उत्पन्न करता है, तो सरकार अपनी उपलब्धि से इस अवधारणा को समाप्त करेगी.
प्रश्न : क्या पार्टी से बाहर गये लोगों की घर वापसी होगी?
उत्तर : हमारे संगठन में जो कभी नहीं थे, उन्हें भी पार्टी ने स्वीकार किया. जिनकी छवि को लेकर अच्छे संकेत नहीं थे, उन्हें भी स्वीकार किया है. जो लोग बेदाग हैं, उन्हें पार्टी में लेने में परहेज नहीं है. अजरुन मुंडा उदाहरण हैं. पर, ताली एक हाथ से नहीं बजती है. कई उदाहरण हैं. अगर योग्यता, क्षमता है तो इतना भरोसा करना चाहिए कि पार्टी में उन्हें सम्मान मिलेगा. हमारे प्रदेश अध्यक्ष भी पार्टी छोड़ चले गये थे, वापस आने पर उन्हें अध्यक्ष बनाया. कहीं न कहीं बात चलती रहती है. पार्टी में ऐसे लोग आयेंगे तो यह अहम होगा. वर्तमान राजनीतिक वातावरण में ऐसे लोगों का समर्थन मिलता है, तो राज्य का विकास होगा.
प्रश्न : अगले मुख्यमंत्री को लेकर कई नामों की चर्चा है. किसी को दौड़ में आगे तो किसी को पीछे बताया जा रहा है. मेरा सवाल है कि मुख्यमंत्री क्या विधायकों में से होगा या किसी सांसद को, किसी हारे उम्मीदवार को, ऊपर से भेजे गये किसी आदमी को सीएम बनाया जायेगा. कई पूर्व मुख्यमंत्री चुनाव हार गये, निवर्तमान सीएम भी एक जगह से हार गये?
संसदीय लोकतंत्र में किसी के नाम पर विचार करने से परहेज नहीं है. कोई बाधा नहीं है. मेरी धारण है कि विधायक दल से ही नाम तय करने की धारणा संसदीय बोर्ड की भी है. मैं मानता हूं कि यह चुनाव परिणाम जनता की बुद्धिमता का परिचायक है. पांच साल जनता मौका देती है. चुनाव में हार-जीत कई चीजों पर निर्भर करती है. एक शेर है – एक वक्त था कि पसीना भी गुलाब था, आज इत्र भी मलते हैं तो चर्चा नहीं होती. चंद्रशेखर जी कहा करते थे कि राजनीति संभावनाओं का खेल है.
प्रश्न : कितना कठिन होता है, एक जूनियर के नेतृत्व में काम करना?
उत्तर : राजनीति में अपने से जूनियर के अंदर, कनिष्ठ के साथ काम करने को तैयार रहना चाहिए. जिन्हें लगता है यह मुनासिब नहीं है, वे त्याग देते हैं. संगठन का आदेश भी होता है. कार्यकर्ता के नाते संगठन का आदेश स्वीकार करना चाहिए. आज की परिस्थिति में अगर संगठन मुझ पर भरोसा करता है तो उस खरा उतरने का प्रयास करूंगा.
कोई व्यक्ति भगवान श्रीकृष्ण की तरह 16 कलाओं में निपुण नहीं होता है. पार्टी की मेरे बारे में क्या धारणा है, उस पर मैंने विचार नहीं किया है. राष्ट्रीय नेतृत्व जिसे योग्य समङो उसे राज्य की बागडोर सौंप सकता है. प्रदेश में हम प्रमुख नेताओं की इस बात पर सहमति है कि जिसे भी हाइकमान नेतृत्व सौंपेगा उसका नेतृत्व स्वीकार करेंगे.

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