ग्लास्गो : भारत के भारोत्तोलक सतीश कुमार शिवालिंगम ने कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण जीतने के बाद कहा कि यह उनके जिंदगी का टर्निंग फ्वाइंट है. उन्होंने कहा कि राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतना जिंदगी बदलने वाला अनुभव रहा क्योंकि उन्होंने अपने माता-पिता का बहु-स्पर्धा टूर्नामेंट में पहला स्थान हासिल करने का सपना साकार कर दिया.
दक्षिण रेलवे के कर्मचारी 22 वर्षीय शिवालिंगम ने कहा कि अगर वह चार साल की कडी ट्रेनिंग के बाद भी स्वर्ण नहीं जीत पाते तो उनके माता-पिता निराश हो जाते. शिवालिंगम ने कहा, स्वर्ण पदक जीतना जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट है. मैंने राष्ट्रमंडल स्वर्ण पदकधारी बनने का अपना सपना साकार कर लिया है. यह चार साल की कडी मेहनत और उम्मीदों का नतीजा है. मेरे माता-पिता वेल्लूर में अपने गांव में लोगों को कह रहे थे कि मैं राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतूंगा. मैंने उनका सपना सच कर दिया.
पिता का सपना पूरा किया
उन्होंने कहा, मैं गरीब परिवार से हूं और मेरे पिता सेना में छोटे से पद पर थे. वह राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में खेले थे लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक नहीं जीत पाये थे. वह चाहते थे कि मैं बडे अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में पदक जीतूं. सतीश ने भारोत्तोलन खेल अपनाने के बारे में कहा, मेरे पिता ने मुझे भारोत्तोलन की ओर बढ़ाया और मैंने गांव के जिम में शुरुआत की, तब मैं महज 15 साल का था. पिछले चार साल से मैं ट्रेनिंग कर रहा हूं, पहले घर पर और फिर एनआईएस पटिलया में राष्ट्रीय शिविर में. मेरा ध्यान सिर्फ राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतने पर लगा था.