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मथुरा के फालेन गांव का होलिका दहन, जहां हर साल आग की मोटी धधकती लपटों को चीरकर बाहर निकलते हैं पंडा

इस अनोखे होलिका दहन की तैयारी में जुटा रहता है पूरा गांव

कान्हा की नगरी मथुरा का छाता तहसील जहां के फालेन गांव में दशकों से एक अनोखी कृष्णकालीन प्रथा चली आ रही है. आस्था का एक ऐसा दृश्य देखने को मिलता है जो धधकती हुई आग की लपटों पर भी भारी पड़ता है. यहां होलिका दहन के समय गांव का पंडा आग की बड़ी -बड़ी लपटों के बीच से पार करते है और सुरक्षित निकल जाते है. मथुरा के फालेन गांव की होली का यह नजारा वाकई में दंग कर देने वाला है. काफी दशकों से चली आ रही परंपरा के अनुसार होलिका दहन में आग की लपटों को पार करने वाले पंडा बसंत पंचमी से ही गांव के मंदिर में जमीन पर ही सोते हैं. फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी से वह अन्न का त्याग कर आहार में केवल फल व दूध इत्यादि लेते हैं. वह दोनों वक्त मंदिर में हवन करते है. इन दिनों इस अनोखे होलिका दहन की तैयारी में पूरा गांव जुटा रहता है, जो गांव के ही प्रह्लाद मंदिर के पास में मनाया जाता है.

गांव के लोग मिलकर पंडा का चयन करते हैं. लगभग 20 से 25 फीट ऊंची और चौड़ी होलिका गांव वाले मिलकर तैयार करते हैं. होलिका दहन का समय भी पंडा ही तय करते हैं. होलिका दहन का मुहूर्त बनते ही पंडा पास के प्रह्लाद कुंड में स्नान करने निकलते हैं और होलिका में आग लगाकर तैयारी की जा चुकी होती है. पंडा की बहन प्रह्लाद कुंड से होलिका दहन स्थल तक रास्ते में पानी डालती है, जिसपर चलकर पंडा दौड़ते हुए प्रह्लाद कुंड से आते हैं और धधकती हुई आग की लपटों को चीरते हुए दूसरी तरफ से बाहर निकल जाते हैं. गांव वाले इसे प्रह्लाद मंत्र का चमत्कार मानते हुए बताते हैं कि आग की मोटी लपटों को चीरकर निकले पंडा को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है यह प्रभु का ही चमत्कार होता है.

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