जार्ज बर्नार्ड शॉ ने कहा है, दुनिया में दो ही दुख हैं- एक तुम जो चाहो वह न मिले और दूसरा तुम जो चाहो वह मिल जाये. मेरी नजर में दूसरा दुख पहले से बड़ा है, क्योंकि मजनूं को लैला न मिले, तो भी विचार में तो सोचता ही रहता है कि काश मिल जाती, तो कैसा सुख होता! मिल जाती, तो उड़ता आकाश में, करता सवारी बादलों की, करता बातें चांद-तारों से. नहीं मिल पायी इसलिए दुखी हूं. मजनू को मैं कहूंगा, जरा उनसे पूछो जिनको लैला मिल गयी है.
वे छाती पीट रहे हैं. सोच रहे हैं कि मजनू धन्यभागी था, सौभाग्यशाली था. कम-से-कम वह भ्रम में तो रहा. हमारा भ्रम भी टूट गया. जिनके प्रेम सफल हो गये हैं, उनके प्रेम भी असफल हो जाते हैं. इस संसार में कोई भी चीज सफल हो ही नहीं सकती. जैसे ही तुमने सुना ‘प्रेम’, कि तुमने जितनी फिल्में देखी हैं, उन सबका सार आ गया. लेकिन, मैं जिस प्रेम की बात कर रहा हूं वह कुछ और.
मीरा ने किया, कबीर ने किया, नानक ने किया, जगजीवन ने किया. तुम्हारी फिल्मों वाला प्रेम नहीं, नाटक नहीं. जिन्होंने यह प्रेम किया, उन सबने यही कहा कि वहां हार नहीं है, वहां जीत ही जीत है. दुख नहीं है, वहां आनंद है. अगर तुम इस प्रेम को न जान पाये, तो जिंदगी व्यर्थ गयी. मरते वक्त ऐसा न कहना पड़े तुम्हें कि कितनी दूर से आये थे. दूर से आये थे साकी सुन कर मैखाने को हम, पर तरसते ही चले अफसोस पैमाने को हम… यहां एक घूंट भी न मिला. मरते वक्त ज्यादातर लोगों की आंखों में यही भाव होता है.
तरसते हुए जाते हैं. हां, कभी-कभी ऐसा घटता है कि परमात्मा का कोई भक्त, या कोई प्रेमी कभी तरसता हुआ नहीं जाता, लबालब जाता है. मैं किसी और प्रेम की बात कर रहा हूं. आंख खोल कर एक प्रेम होता है, वह रूप से है. आंख बंद करके एक प्रेम होता है, वह अरूप से है. कुछ पा लेने की इच्छा से एक प्रेम होता है, वह लोभ है, लिप्सा है. अपने को समर्पित कर देने का एक प्रेम होता है, वही भक्ति है. तुम्हारा प्रेम तो शोषण है. पुरुष स्त्री को शोषित करना चाहता है, स्त्री पुरुष को. इसीलिए तो स्त्री-पुरुषों के बीच सतत झगड़ा बना रहता है. पति-पत्नी लड़ते रहते हैं. कलह का शात वातावरण रहता है.
– आचार्य रजनीश ओशो