किसी कार्य की सिद्धि सत्व से होती है, वस्तुओं से नहीं. अब सत्व के लिए क्या करें? सही आहार, सही व्यवहार और अपने मन को विश्राम देना सबसे पहले है. अगर इसके बावजूद भी कभी कोई हार हाथ लगे, तो सत्वगुण उत्साह तो कम होने नहीं देता और फिर छोड़ने का प्रश्न ही मन में नहीं उठता. जब एक बार जीतने का चस्का लग जाये, तो फिर बार-बार खेलने का मन करता है. इधर-उधर कोई हार भी हाथ लगे, तो फिर भी मन में कुछ अच्छा करने का विश्वास तो बना ही रहता है. और यह विश्वास तब आता है, जब काम के प्रति श्रद्धा हो. जैसे मन में शांति और कृत में जोश से कितने लोग आजादी के लिए लड़ते रहे. ऐसे लोगों को कोई पैसा नहीं मिलता था, पर वे लोग पीछे नहीं हटे.
हर हार जीत की ओर एक कदम है. एक कारण अपने में कोई कमी हो सकती है या व्यवस्था में कोई कमी. अपने में कमी जैसे किसी ने सही ढंग से प्रदर्शन नहीं किया. जैसे अगर तुम एक इंटरव्यू में जाते हो और कुछ ज्यादा बोल देते हो, तो इंटरव्यू लेनेवाले के मन में संदेह उठ जाता है कि तुम वह काम कर पाओगे या नहीं. अपने में कमी को दूर करने के लिए योग्यता बढ़ाओ और यह देखो तुमने क्या सीखा! क्या तुम भावनाओं के साथ बह गये? जो लोग उसी काम में हैं, क्या तुमने उन्हें संपर्क किया? तुम उन पर विश्वास नहीं करते, या तुमने भरोसेमंद लोगों को अपने साथ नहीं रखा? सब कारण हो सकते हैं. तो अपनी योग्यता बढ़ाने के लिए अपने क्षेत्र के ज्ञान की गहराई में जाओ. फिर आता है व्यवस्था को ठीक करना! तो यह तुम अकेले नहीं कर सकते.
जैसे भ्रष्टाचार के खिलाफ कुछ करना हो तो तुम अकेले नहीं लड़ सकते. एक साथ चलो, और लोगों को अपने भरोसे में लो. लोगों में जागृति पैदा करके उन्हें अपने साथ लेकर चलो. इस कलयुग में एक साथ चलने में ही शक्ति है. लोग कहते हैं, कलयुग में ऐसा लगता है, जैसे सत्य कहीं दब गया है. अगर तुम्हें ऐसा लगता है तो साथ चलो, और फिर देखो काम होता है या नहीं. दुनिया में जाओ, ताकि अपने साथ और लोगों को ला सको, और अपनी योग्यता बढ़ाने के लिए अपने भीतर जाओ. दोनों को साथ लेकर चलने से सफलता अवश्य मिलेगी.
– श्री श्री रविशंकर