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ईश्वर परिपूर्ण है

आप जो कुछ भी देखते हैं, वह ईश्वर है. आप जो कुछ भी सुनते हैं, वह ईश्वर है. आप जो कुछ चखते या सूंघते हैं, वह ईश्वर है. आप जो कुछ भी अनुभव करते हैं, वह ईश्वर है. यही ईश्वर का व्यक्त स्वरूप है. ईश्वर प्रकाशों का प्रकाश है. ईश्वर सर्वव्यापी बुद्धि और चेतना है. […]

आप जो कुछ भी देखते हैं, वह ईश्वर है. आप जो कुछ भी सुनते हैं, वह ईश्वर है. आप जो कुछ चखते या सूंघते हैं, वह ईश्वर है. आप जो कुछ भी अनुभव करते हैं, वह ईश्वर है. यही ईश्वर का व्यक्त स्वरूप है. ईश्वर प्रकाशों का प्रकाश है. ईश्वर सर्वव्यापी बुद्धि और चेतना है.

ईश्वर इस ब्रह्मांड को नियंत्रित और पूर्णतया व्यवस्थित रखनेवाली शक्ति है. वह बदलती हुई घटनाओं के मध्य अपरिवर्तित है, इस संसार की नश्वर वस्तुओं के बीच अनश्वर है. उसने अपनी लीला के लिए सत्व, रजस् एवं तमस् गुणों से इस जगत की सृष्टि की है.

माया उसके नियंत्रण में रहती है. ईश्वर स्वतंत्र है. वह जीवों को उनके कर्मों के अनुसार फल प्रदान करता है. अत्यंत कृपालु है. वह हमारी भूख और प्यास मिटाता है. मात्र अपने अज्ञान और अभिमान के कारण हम ईश्वर को भूल गये हैं. अनंत आनंद और परम शांति तो मात्र ईश्वर में ही मिल सकती है. इसी कारण बुद्धिमान जिज्ञासु ईश्वर-साक्षात्कार का प्रयास करते हैं. यह संसार वस्तुत: एक बृहत् स्वप्न है. आपकी पांचों इंद्रियां आपको सदैव भ्रमित करती हैं. अपनी आंखें खोलिए. विवेकी बनिए. ईश्वर के रहस्य को समझिए.

हर जगह उसकी उपस्थिति और निकटता का अनुभव कीजिए. वह आपके हृदय में निवास करता है. वह आपके मन का मूक साक्षी है. वह आपके प्राणों का सूत्रधार है. वह आपके विचारों का प्रेरक है. अपने हृदय में उसकी खोज कीजिए और उसके आशीर्वाद को प्राप्त कीजिए. ईश्वर प्रेम है. वह परम सत्ता है. गीता उन्हें पुरुषोत्तम की संज्ञा देती है. वह सर्वविद् है, सब कुछ जानता है. वह इस जगत, शरीर, मन, इंद्रियों एवं प्राणों का अवलंब है.

उसके बिना एक अणु भी नहीं हिलता. वह वेदों का मूल स्रोत है. इंद्र, अग्नि, वरुण, वायु और यम उसके सहायक हैं. पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश उसकी पांच शक्तियां हैं. माया उसकी मोहिनी शक्ति है. ईश्वर स्वयंभू है. अपने अस्तित्व के लिए वह किसी अन्य पर निर्भर नहीं. वह स्वयं-प्रकाशित है, अपने को प्रकट करने के लिए उसे किसी अन्य के प्रकाश की आवश्यकता नहीं है. ईश्वर स्वत: सिद्ध है, उसे किसी के प्रमाण की आवश्यकता नहीं है. वह परिपूर्ण है.

– स्वामी शिवानंद सरस्वती

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