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प्रशंसा और आलोचना

आलोचना करने पर आदमी अपना बचाव ही करेगा, लेकिन जब उसको बोला जायेगा कि तुम बहुत अच्छा गाते हो, उस वक्त वह फूल जायेगा, उसमें अहंकार आ जायेगा. आदमी की ये दो बहुत बड़ी समस्याएं हैं, आलोचना में बचाव और प्रशंसा में अहंकार. अब जैसे कोई लड़की बहुत अच्छा गाती है और उसे प्रशस्ति-पत्र मिल […]

आलोचना करने पर आदमी अपना बचाव ही करेगा, लेकिन जब उसको बोला जायेगा कि तुम बहुत अच्छा गाते हो, उस वक्त वह फूल जायेगा, उसमें अहंकार आ जायेगा. आदमी की ये दो बहुत बड़ी समस्याएं हैं, आलोचना में बचाव और प्रशंसा में अहंकार.

अब जैसे कोई लड़की बहुत अच्छा गाती है और उसे प्रशस्ति-पत्र मिल गया, पंद्रह हजार रुपये का इनाम भी मिल गया, उसका नाम तक अखबार में छप गया, तो इन सबसे घमंड आता है. मगर उसके बाद आलोचना सुन कर अपने को बचाने की प्रवृत्ति आती है. और दोनों ही गलत हैं. आदमी को दोनों जगह अलग रवैया रखना पड़ता है. यहां सबसे बड़ी चीज है, चिंतन और आत्म-निरीक्षण. अगर कोई कहे कि तुम बहुत अच्छा गाते हो, तो अपने मन में सोचना चाहिए.

हां, मानते हैं ऐसा होगा. मगर देखो, तानसेन कैसा गायक था? आदमी को प्रशंसा में विनम्र होना चाहिए. लेकिन आलोचना होती है, उस वक्त तुम्हारे मन में स्वीकृति आनी चाहिए, हां, यह सही है. जैसे पेड़ फल फलने से झुक जाता है, उसी प्रकार जो गुणवान व्यक्ति होते हैं, वे गुणों के कारण नम्र हो जाते हैं. जो आदमी दबना जानता है, वही आदमी दुनिया पर राज करता है.

– स्वामी सत्यानंद सरस्वती

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