ईद-अल-अजहा का मतलब है कुर्बानी की ईद. ‘कुर्बानी’ से मुराद ‘डेडिकेशन’ यानी समर्पण से है. यही ईद-अल-अजहा का मूल भाव है. ईद-अल-अजहा के दिन की मुख्य दो बातें अहम हैं- सुबह ईद की नमाज अदा करना और जानवर की कुर्बानी करना. ईद का अर्थ ‘खुशी’ यानी खुशियां मनाने का दिन.
एक-दूसरे से गले मिलना, बधाइयां देना, गिफ्ट देना और सबको मिठाइयां खिलाना आदि, इस बात की गवाही देते हैं कि लोगों के बीच से मतभेदों को खत्म करने की कोशिश की जाये. एक-दूसरे को मुबारकबाद देकर आपस में दोस्ताना तअल्लुक को बढ़ाना ही इसका मकसद होता है. यह न सिर्फ मुसलमानों के लिए, बल्कि हर धर्म के ऐतबार से होना चाहिए, जिससे कि धर्मों के बीच की दूरी को कम कर आपसी मेल-मिलाप को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा मिले. और सचाई, हक और इंसानिययत के वजूद को बुलंद किया जा सके.
ईद अगरचे साल में एक बार मनाया जाता है, लेकिन इसका मकसद यह है कि उस दिन लोगों में ऐसी सौहार्दपूर्ण भावना का सुत्रपात हो, जो पूरे साल तक कायम रहे. यानी लोगों के दिलों में मोहब्बत की स्पिरिट, शांति से रहने की स्पिरिट, हर-एक का सम्मान करने की स्पिरिट और एक-दूसरे के काम आने की स्पिरिट, वगैरह को बरकरार रखते हुए आपसी भाईचारे की बुनियाद पर खुशियां पैदा की जा सके.
– मौलाना वहीदुद्दीन खान