रमजान के पवित्र महीने में जकात और फितरा अल्लाह की राह में खर्च करने का सबसे अहम व आसान रास्ता है. रमजान में ढाई फीसदी जकात देकर मुसलमान अपनी जान-माल की हिफाजत कर सकता है. जकात के रूप में मिस्कीनों को देना हर साहिबे निसाब मुसलमान पर फर्ज है. जानिए कि जकात किन-किन लोगों को देना वाजिब बताया गया है.
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किसे ज़कात देना बताया गया फर्ज
रमजान के पवित्र महीने में जकात और फितरा अल्लाह की राह में खर्च करने का सबसे अहम व आसान रास्ता है. रमजान में ढाई फीसदी जकात देकर मुसलमान अपनी जान-माल की हिफाजत कर सकता है. जकात के रूप में मिस्कीनों को देना हर साहिबे निसाब मुसलमान पर फर्ज है. जानिए कि जकात किन-किन लोगों को […]
जिन लोगों को ज़कात का माल देना जायज़ है, वे सात हैं –
1. फक़ीर 2. मिस्कीन 3. कर्ज़दार 4. मुसाफिर 5. आमिल 6. मुकातिब
7. फी सबीलिल्लाह.
फक़ीर वह शख्स है, जिसके पास कुछ माल है, मगर निसाब से कम है, मगर उसका सवाल करके मांगना नाजायज़ है.
मिस्कीन वह शख्स है, जिसके पास कुछ न हो, न खाने को ग़ल्ला और न पहनने को कपड़े हों, मिस्कीन को सवाल करना भी हलाल है.
क़र्ज़दार वह शख्स है, जिसके जिम्मे कर्ज़ हो, उसे जकात देना वाजिब बताया गया है.
मुसाफ़िर वह शख्स है, जिसके पास सफर की हाल में माल न रहा हो, उसे ज़कात देना जायज़ है.
आमिल वह शख्स है, जिसको बादशाह इस्लाम ने ज़कात वसूल करने के लिए मुक़र्रर किया हो.
मुकातिब वह गुलाम या नौकर है, जो अपने मालिक को माल देकर आज़ाद होना चाहे.
फ़ी सबीलिल्लाह यानी राहे खुदा में खर्च करना. इसकी कई सूरतें हैं, जैसे कोई तालिबे इल्म है, जो इल्मेदीन पढ़ता है, उसे भी ज़कात दे सकते हैं.
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