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सुधार की राह पर अर्थव्यवस्था

सुधार की राह पर अर्थव्यवस्था

प्रीतम बनर्जी

आर्थिक विश्लेषक

delhi@prabhatkhabar.in

कोरोना महामारी के कारण अर्थव्यवस्था में आयी गिरावट को संभालने के लिए सरकार ने पिछले छह महीनों में प्रोत्साहन पैकेज जारी करने समेत अनेक अहम फैसले लिये हैं. हालांकि, देश में और बाहर के कई विशेषज्ञ आलोचना करते हुए यह कह रहे थे कि इस प्रोत्साहन पैकेज में नयी राशि ज्यादा नहीं है, लेकिन अनेक कार्यक्रमों के माध्यम से सरकार अलग-अलग क्षेत्रों को राहत पहुंचाने और उबारने की कोशिश कर रही है.

लघु उद्योगों को सहायता देने हेतु कई कार्यक्रम शुरू किये गये, लोगों को कर्ज लेने में दिक्कत न हो इसलिए लघु उद्योगों की लागत कम करने के लिए कर्मचारियों को वेतन आदि का समर्थन दिया गया. ब्याज दरों में कमी की गयी. ऐसे बहुत सारे छोटे-छोटे उपाय किये गये. अभी आंकड़ों को देखते हुए ऐसा लग रहा है कि ये सारे उपाय कारगर रहे हैं. हजारों करोड़ रुपये खर्च करने की बजाय सरकार ने कुछ अलग प्रकार के प्रभावी फैसले लिये हैं.

आमतौर पर माना जाता है कि सरकारी खर्च के माध्यम से विभिन्न परियोजनाओं में लोगों को नौकरी मिलेगी, जिससे अर्थव्यवस्था को समर्थन मिलता है. जब भी आर्थिक संकट आता है, तो ऐसे उपाय किये जाते हैं, लेकिन सरकार ने इस बार ऐसा नहीं किया, बहुत छोटे-छोटे लक्षित कार्यक्रमों के माध्यम से हल निकालने की कोशिश की गयी. जीएसटी के संग्रह में सुधार हुआ है. बीच में यह काफी कम हो गया था. बिजली खपत भी बढ़ रही है.

रेलवे की माल ढुलाई में भी बढ़ोतरी हुई है. ऐसे तमाम संकेतकों से पता चलता है कि औद्योगिक गतिविधियों में तेजी से सुधार आ रहा है. कई वैश्विक आर्थिक संस्थाएं और देश के भीतर भी कई विशेषज्ञ कह रहे थे कि भारत को कोरोना पूर्व आर्थिक स्थिति में जाने के लिए दिसंबर, 2021 तक का समय लग जायेगा, लेकिन जिस तरह से सुधार होते दिख रहे हैं, उससे स्पष्ट है कि 2021 की शुरुआत में ही भारत अपनी पुरानी दशा को प्राप्त कर लेगा.

एक खुशखबरी है कि ग्रामीण आय अभी सकारात्मक है. इससे स्पष्ट होता है कि कृषि और उससे संबंधित उद्योग पहले से बेहतर कर रहे हैं. हालांकि, कोविड के कारण कृषि क्षेत्र प्रभावित नहीं हुआ था. लॉकडाउन के कारण ग्रामीण क्षेत्र की मांग में भी ज्यादा असर नहीं पड़ा था. हालांकि, रोजगार के मोर्चे पर अभी और सुधार की दरकार है. मौजूदा स्थिति के मद्देनजर बहुत सारे लोग नौकरी के लिए अभी बाहर नहीं निकल रहे हैं.

कोविड के कारण वे अपने घर जा चुके हैं. बेरोजगारी के साथ-साथ एक चिंता यह भी है कि कई सारी कंपनियों ने कर्मचारियों का वेतन बहुत कम कर दिया है. लोगों की आमदनी पर नकारात्मक असर पड़ा है. इससे अगले तीन-चार महीने तक लोगों की खर्च करने की क्षमता प्रभावित रहेगी. उसका साफ असर अर्थव्यवस्था पर रहेगा.

कुल मिला कर अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत दिखने लगे हैं. सरकार की रणनीति कारगार साबित हो रही है. दुनिया के अन्य देशों को देखें, तो बड़े-बड़े आर्थिक पैकेज की घोषणा की गयी. कई देशों ने तो अपनी जीडीपी के 10 प्रतिशत से लेकर 20 प्रतिशत तक के पैकेज की घोषणा की. भारत में जीडीपी का दो प्रतिशत ही प्रोत्साहन पैकेज घोषित किया गया था. लेकिन, आर्थिक चुनौतियों से निपटने की सरकार की रणनीति प्रभावी साबित हुई.

आर्थिक गतिविधियों को मापने के अल्पकालिक संकेतक यह स्पष्ट कर रहे हैं. दिसंबर, 2019 के आंकड़ों को देखें, तो कोविड के सदमे के बाद हम उस दशा में कितने समय में पहुंच पायेंगे, यह सबसे महत्वपूर्ण सवाल था. विशेषज्ञ कह रहे थे कि दिसंबर, 2021 तक का समय लगेगा, लेकिन जो आंकड़े आ रहे हैं, उससे स्पष्ट है कि शायद मार्च, 2021 तक हम फिर से उस अवस्था में चले जायेंगे. यह बड़ी उपलब्धि होगी.

दुनिया के कई देशों में यह अब तक संभव नहीं हो पाया है. निश्चित तौर पर इसका श्रेय सरकार को जाना चाहिए. यह सच है कि कोविड के कारण बहुत सारे लोगों की नौकरियां चली गयी है. जिन लोगों को अभी नौकरी मिल भी रही है, उन्हें बहुत कम वेतन पर मिल रही है. कोविड के दौरान जो वेतन में कटौती की गयी थी, उसी ट्रेंड पर अभी काम चल रहा है. इससे लोगों की आय के स्तर को काफी ठेस पहुंची है. इस मसले पर विशेष रूप से ध्यान देने की जरूरत है.

कोविड काल में भी हेल्थकेयर सेक्टर, खासकर फार्मास्युटिकल्स, बैंकिंग, ई-कॉमर्स आदि कुछ सेक्टर बेहतर कर रहे हैं. हालांकि, ई-कॉमर्स के कारण खुदरा कारोबार करनेवालों पर असर पड़ा है. क्योंकि, दुकानों से खरीदारी के बजाय लोग ऑनलाइन खरीद ज्यादा कर रहे हैं. खासकर बड़े शहरों में लोग ऑनलाइन खरीदारी को तवज्जो देने लगे हैं. इससे ई-कॉमर्स सेक्टर में वृद्धि हुई है. इसके अलावा लॉजिस्टिक्स सेक्टर, कृषि आदि बेहतर स्थिति में हैं.

हालांकि, ऐसा नहीं है कि इन सेक्टरों में लोगों का वेतन बढ़ गया है. वर्तमान में हर सेक्टर में सैलरी कम हो गयी है. यह समस्या अभी कुछ महीनों तक बनी रहेगी. लोगों की आमदनी विशेषकर मध्यम वर्ग, जिसमें 20 से 25 करोड़ लोग हैं, उनकी आमदनी को इससे ठेस पहुंची है.

नीतिगत स्तर पर सरकार पहले से ही कई पहल कर रही है. खास तौर पर तीन बातों पर ध्यान देने की जरूरत है, पहली ये कि छोटे से छोटा धंधा करनेवालों को भी बैंक से सहायता की जरूरत होती है. छोटा ऋण हो या बड़ा ऋण, उस पर कर्ज की लागत का बड़ा बोझ पड़ता है. क्योंकि उससे आपका मार्जिन भी घटता या बढ़ता है. एक, जो सबसे जरूरी सुधार की दरकार है कि छोटे से छोटे उद्यमी को आसान ऋण उपलब्ध हो सके और वह उचित दर पर मिले. यह काम और तेज करने की जरूरत है.

दूसरी, ढांचागत क्षेत्र में खर्च को जारी रखना होगा, क्योंकि उससे आर्थिक गतिविधियों में तेजी आयेगी और इससे नौकरियां भी आती हैं. अभी की स्थिति में रोजगार काफी महत्वपूर्ण है. तीसरी, अर्थव्यवस्था में गिरावट के मद्देनजर कंपनियों ने वेतन में कमी की थी. जब स्थिति सामान्य होती जायेगी, तो कहीं ऐसा न हो कि वेतन कटौती ऐसे ही बनी रह जाये.

सरकार इसके लिए क्या उपाय कर सकती है, यह तो स्पष्ट नहीं है, लेकिन इसके ऊपर ध्यान देना बहुत आवश्यक है. लोगों की आमदनी लंबे समय तक प्रभावित न हो, यह सुनिश्चित करना होगा. अर्थव्यवस्था में सबसे ज्यादा उपभोग मध्यम वर्ग ही करता है. देश में 20 से 25 करोड़ लोग ऐसे हैं, जो उपभोग को आगे बढ़ाते हैं. इनकी वजह से अर्थव्यवस्था में जो फायदा होता है, वह सबको मिलता है.

posted by : sameer oraon

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