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बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ाएं

समझ के साथ पढ़ना, अपनी बात को व्यक्त करना, साधारण गणित करना– ये बच्चों का हक होना चाहिए. हम बड़ों को यह प्रयास करना चाहिए कि हम बच्चे को इन दक्षताओं को हासिल करने में मदद करें.

पूरे देश में स्कूल खुल चुके हैं और बच्चे उत्साह ऊर्जा के साथ कक्षाओं में पहुंचने लगे हैं. शिक्षक भी बहुत दिनों से इसी वक्त का इंतजार कर रहे थे. पिछले एक महीने में मुझे कई राज्यों के कई जिलों में घूमने का मौका मिला. दो सप्ताह पहले हम झारखंड के सिमडेगा जिले के एक प्रखंड में पहुंचे. देश के बाकी राज्यों की तरह सिमडेगा के स्कूल भी लंबे समय से बंद थे. महामारी के चलते मार्च, 2020 से सितंबर, 2021 तक विद्यालय पूरी तरह बंद रहे.

नये साल में कोविड की तीसरी लहर के कारण स्कूल फिर से बंद करने पड़े. दोपहर का समय था. बच्चों के स्वागत के लिए स्कूल में पुताई और रंगाई की गयी थी. हम बरामदे के किनारे 6ठीं कक्षा में आ गये. कमरा भरा हुआ था. लड़कियों के बालों में लाल रिबन फूल की तरह खिल रहे थे. लड़के हाफ पैंट, शर्ट और टाई में स्मार्ट लग रहे थे. स्कूल आने के लिए सब ने अपनी-अपनी तरह से तैयारी की हुई थी.

ब्लैकबोर्ड पर बहुत सारी मिठाइयों के नाम लिखे थे. मैंने पूछा- क्या पढ़ रहे हो? किसी ने कोई जवाब नहीं दिया. सबकी आंखों में कौतूहल था, लेकिन किसी के मुंह से कोई आवाज नहीं निकली. बहुत कोशिश के बाद कुछ बच्चों ने धीमे स्वर में बोलना शुरू किया. धीरे-धीरे सभी ने मनपसंद खाने की चीजों के नाम बताये. कुछ नये नाम भी सुनने को मिले- धुस्का, गुलगुला. हो सकता है कि घर में सादरी, मुंडारी या खड़िया जैसी भाषा बोलनेवाले बच्चों को स्कूल में आकर हिंदी में बातचीत करने में कठिनाई हो रही हो, वह भी किसी अपरिचित व्यक्ति से.

शायद यह भी हो सकता है कि इतने दिनों तक स्कूल बंद होने के कारण बच्चे खुद को संकोचित महसूस कर रहे हों. यह समस्या सिर्फ झारखंड की नहीं है, जहां घर की भाषा और विद्यालयों की भाषा में अंतर है. बच्चे स्कूली भाषा बहुत हद तक भूल गये हैं. जहां भाषा में ज्यादा अंतर है, वहां बच्चों को शिक्षक से बातचीत करने में भी दिक्कत हो रही है.

बच्चों में पढ़ने की क्षमता भी थोड़ी कमजोर हो गयी है. बहुत सारे बच्चों को मैंने अटक-अटक कर पढ़ते हुए सुना. बच्चों की लिखने की आदत भी कम हो गयी है. प्राथमिक कक्षा के बच्चे अब भी स्कूल आकर अपने पुराने दोस्तों के साथ मिल कर, मैदान में खेल कर आनंद ले रहे हैं, लेकिन थोड़े बड़े बच्चे यानी सातवीं-आठवीं के बच्चों को यह बुरा लगता है कि साधारण गतिविधियां करने में उन्हें परेशानी क्यों हो रही है.

झारखंड से बाद मुझे असम और पश्चिम बंगाल जाने का मौका मिला. ग्रामीण इलाकों में हर जगह कमोबेश स्थिति एक जैसी ही है. शिक्षकों के सामने नयी चुनौती है– स्कूल में छठी कक्षा में पढ़ानेवाली एक शिक्षिका का कहना है कि महामारी के बाद बच्चों के पढ़ने का स्तर तो गिरा ही है, एक ही कक्षा के बच्चों में सीखने का अंतर भी बढ़ गया है. हमें यह समझ नहीं आ रहा है कि कहां से शुरू करें, किस को क्या पढ़ाएं?

उपलब्ध आंकड़ों को अगर देखें, तो समझ में आता है कि महामारी काल के पहले भी पढ़ने-लिखने की स्थिति संतोषजनक नहीं थी. साल 2018 के ‘असर’ (एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट) सर्वे के अनुसार, ग्रामीण भारत में कक्षा तीन में औसतन सिर्फ 30 प्रतिशत बच्चे कक्षा के स्तर की पढ़ाई कर पाते थे.

कक्षा पांच में पहुंचते-पहुंचते 50 प्रतिशत बच्चे साधारण घटाव का सवाल (जैसे 85–17) हल नहीं कर पाते थे. महामारी काल में लंबे समय तक स्कूल बंद होने के कारण यह स्थिति और बिगड़ गयी है. अप्रैल के महीने में बच्चे नयी कक्षा में जाते हैं. अक्सर उससे पहले परीक्षाएं होती हैं. झारखंड जैसे राज्यों में आठवीं में बोर्ड के जैसे इम्तिहान होते हैं. मन में सवाल आता है– क्या ऐसी हालत में, इस साल परीक्षा होनी चाहिए? परीक्षा के परिणाम ठीक नहीं आते हैं, तो बच्चों के आत्मविश्वास को धक्का लगता है. उनका मनोबल घटता है.

क्यों न बच्चों और शिक्षकों को वक्त दिया जाए कि इतने अरसे के बाद खुले स्कूलों में बच्चों का नियमित रूप से ठहराव हो और सभी एक-दूसरे से सही मायने में परिचित हो जाएं? महामारी के पहले भी बहुत बच्चों को अपनी कक्षा का पाठ्यक्रम कठिन लगता था और शिक्षकों को कक्षा के अनुसार पढ़ाने में दिक्कत होती थी. अब स्थिति और भी गंभीर हो गयी है. क्या छात्र-छात्राओं को अपनी बुनियादी क्षमताओं को मजबूत करने के लिए समय नहीं दिया जाए?

समझ के साथ पढ़ना, अपनी बात को व्यक्त करना, साधारण गणित करना– ये बच्चों का हक होना चाहिए. हम बड़ों को यह प्रयास करना चाहिए कि हम बच्चे को इन दक्षताओं को हासिल करने में मदद करें. आज की कमजोरियों को अगर हम प्राथमिकता के तौर पर समय नहीं देते हैं और उन्हें दूर नहीं करते हैं, तो यह आनेवाले कई सालों तक तकलीफ देंगी. एक ऊंची इमारत के लिए उसकी बुनियाद का मजबूत होना जरूरी है. इसलिए जरूरत है कि अगले कुछ महीनों के लिए कक्षावार पाठ्यक्रम को हटा दें.

आइए, हम सभी मिल कर बच्चों की बुनियाद को मजबूत करें, उनका आत्मविश्वास बढ़ाएं और बच्चों को एहसास दिलाएं कि उनका भविष्य उज्ज्वल होगा.

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