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युवा हाथों में हर समाधान

कैलाश सत्यार्थी नोबेल शांति पुरस्कार विजेता नोबेल पुरस्कार की घोषणा होते ही तमाम देशी-विदेशी पत्रकारों ने मुझे घेर लिया था. उनमें से कइयों ने पूछा, ‘भारत के करोड़ों बच्चे बाल मजदूरी, बाल विवाह, वेश्यावृत्ति, यौन शोषण, अशिक्षा जैसी ढेरों समस्याओं के शिकार हैं, तो इनका हल कैसे होगा?’ मेरे मुंह से अनायास ही निकल गया, […]

कैलाश सत्यार्थी
नोबेल शांति पुरस्कार विजेता
नोबेल पुरस्कार की घोषणा होते ही तमाम देशी-विदेशी पत्रकारों ने मुझे घेर लिया था. उनमें से कइयों ने पूछा, ‘भारत के करोड़ों बच्चे बाल मजदूरी, बाल विवाह, वेश्यावृत्ति, यौन शोषण, अशिक्षा जैसी ढेरों समस्याओं के शिकार हैं, तो इनका हल कैसे होगा?’ मेरे मुंह से अनायास ही निकल गया, ‘भारत अगर सौ समस्याओं की धरती है, तो सौ करोड़ समाधानों की जननी भी है.’ हजारों साल पहले भारत की धरती से उपजा ज्ञान और विज्ञान आज भी सम-सामयिक है. झारखंड भी इसी परंपरा का हिस्सा है. अकूत खनिज व वन संपदा से संपन्न झारखंड के लोगों में गरीबी, विषमता, ट्रैफिकिंग, बाल मजदूरी जैसी बुराइयों का अंत करने की पर्याप्त क्षमता है.
ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि मैं समाज के पुरुषार्थ और किशोरों-युवाओं के जज्बे को जानता हूं. बस उस सोये पुरुषार्थ और जज्बे को जगाने की जरूरत है. अब कोडरमा जिले के घोरटप्पी गांव की रेखा को ही लीजियेे. इस 14 वर्षीय बालिका ने साहस का परिचय देते हुए अपने बाल विवाह को रुकवाया. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, झारखंड भारत का दूसरा राज्य है, जहां सबसे ज्यादा बाल विवाह होता है.
अब जरा सामाजिक कुरीतियों के विरोध का रेखा का जज्बा देखिये कि जब गांव वाले विवाह का विरोध करने के कारण उसे धमकियां देने लगे, तो उसने जिला बाल कल्याण समिति में इसकी शिकायत कर दी. इसके बाद हमारे संगठन बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) की टीम ने फौरन रेखा सहित 26 बच्चों का बाल विवाह रुकवा दिया. यह सब बीबीए के लोक जागृति के प्रयास और रेखा व अन्य लड़कियों की बहादुरी से ही संभव हो सका.
पूरी दुनिया में अब ऐसे उदाहरण बढ़ते जा रहे हैं. किशोर और युवा सामाजिक बुराइयों, अन्याय और विषमता के खिलाफ लगातार आवाज उठा रहे हैं. बांग्लादेश, नाइजीरिया, सुडान, पाकिस्तान, पनामा, कोलंबिया आदि देशों में बाल विवाह और किशोरावस्था में बढ़ रहे गर्भाधान के खिलाफ किशोर-किशोरियां खड़े हो रहे हैं. अमेरिका, इंगलैंड, फ्रांस आदि देशों में हिंसा के खिलाफ और शांति के लिए युवा समूह आवाज उठा रहे हैं. बाल मजदूरी के खिलाफ ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर सौ से अधिक देशों में युवाओं के साथ मिल कर काम कर रहा है.
और वहीं ग्लोबल कैंपेन फॉर एजुकेशन से जुड़ कर लाखों विद्यार्थी दुनिया के हर बच्चे को अच्छी शिक्षा मुहैया कराने की मांग बुलंद कर रहे हैं.
यह एक शुभ संकेत है. लेकिन, मैं यह भी मानता हूं कि जितनी बड़ी तादाद में नकारात्मक शक्तियां समाज में काम कर रही हैं, उनकी तुलना में युवाओं की पहल अभी नाकाफी है. दुनिया में 10 करोड़ से ज्यादा बच्चे गुलामी, यौन हिंसा, ट्रैफिकिंग जैसे अपराध के शिकार हैं. कुछ सालों से दुनिया के सामने धर्मांधता और आतंकवाद जैसी चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं.
बच्चे ही इनके सबसे ज्यादा शिकार होते हैं. 23 करोड़ बच्चे युद्ध और हिंसाग्रस्त देशों में रह रहे हैं. उनका जीवन खतरों से भरा हुआ है. करीब तीन करोड़ बच्चे शरणार्थी बन चुके हैं. मैं शरणार्थी शिविरों में जाकर पीड़ितों से मिला हूं. मां-बाप से बिछड़े बच्चों की मनोदशा तो गंभीर है ही, लेकिन शरणार्थी परिवारों के बच्चे भी अनिश्चितता और असुरक्षा में जी रहे हैं. इस्तांबुल के शरणार्थी शिविरों के लोगों ने मुझे बताया कि वे सुरक्षा की खातिर अपनी 12-14 साल की बेटियों को बड़े उम्र के आदमी से ब्याह दे रहे हैं. सीरिया, यमन और अफगानिस्तान जैसे देशों से यूरोपीय देशों में पलायन करनेवाले बच्चे वहां मजदूरी कर रहे हैं. आतंकवादी समूह बच्चों के हाथों में बंदूक पकड़ा कर उन्हें चाइल्ड सोल्जर बना रहे हैं. झारखंड में भी नक्सली समूहों द्वारा बच्चों को ‘चाइल्ड सोल्जर’ के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है.
सौ से अधिक देशों में दशकों से काम करते हुए मैंने कुछ बातें सीखी हैं. पहली, इन सब चुनौतियों का मुकाबला केवल सरकारों, पुराने तौर-तरीकों से चलनेवाली संस्थाओं और सोच के जरिये संभव नहीं होगा. इसके लिए हमें नये तौर-तरीके खोजने होंगे. दूसरी, दुनिया की तीन अरब युवा आबादी में करोड़ों बच्चे और युवा न केवल ऊर्जा और उत्साह से भरे हुए हैं, बल्कि उनके भीतर आदर्शवादिता भी है. वे अपने दायरे से बाहर निकल कर समाज व मानवता की बेहतरी के लिए कुछ करना चाहते हैं. और तीसरी यह कि युवाओं के भीतर की अनंत संभावनाओं को किसी सार्थक उद्देश्य में तब्दील करने के प्रयास बिखरे-बिखरे और छिट-पुट हैं.
इसी पृष्ठभूमि में मैंने कई नोबेल पुरस्कार विजेताओं और समाज के विभिन्न वर्गों में नेतृत्व देनेवाले विशिष्ट व्यक्तियों, संगठनों और छात्रों के समर्थन से इतिहास का सबसे बड़ा युवा आंदोलन शुरू किया है. जिसका नाम- ‘100 मिलियन फॉर 100 मिलियन’ है. भारत में इसका शुभारंभ कुछ महीने पहले राष्ट्रपति महोदय द्वारा किया गया. अगले पांच सालों में सौ से अधिक देशों के 10 करोड़ युवा इसमें शामिल होकर उन 10 करोड़ वंचित बच्चों और किशोरों की आवाज बनेंगे, जो हिंसा के शिकार हैं.
इस प्रक्रिया में स्कूली बच्चे और युवक-युवतियां सोशल मीडिया के जरिये वंचित बच्चों की सुरक्षा, स्वतंत्रता और शिक्षा के लिए आवाज उठा सकेंगे. इसके अलावा स्कूलों, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों और मोहल्लों आदि में वे बाल मित्र समूह बना कर ऐसी सामाजिक व स्वयंसेवी गतिविधियों में शामिल होंगे, जिनसे दुनियाभर के बचपन और यौवन को हिंसा से बचा कर सही दिशा में लगाया जा सकता है. मुझे उम्मीद है कि दुनिया का यह सबसे बड़ा अभियान संसार में बदलाव लाने में जरूर कामयाब होगा.
(लेखक दुनिया के जानेमाने बाल अधिकार कार्यकर्ता हैं.)

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