आमतौर से मुसलिम घरानों में यह रिवाज देखने को मिलता है कि बच्चे जब कुछ बड़े हो जाते हैं, तो उन्हें मदरसे में दाखिला करा दिया जाता है. ज्यादातर मदरसों में सिर्फ इसलामी शिक्षा दी जाती है और स्कूली विषयों को पढ़ाना नाकाफी समझा जाता है. फिर मुसलिम लीडर सिर्फ अपनी रोटियां सेंकने की खातिर देश की अर्थव्यवस्था पर चीखने-चिल्लाने लगते हैं, कि हमें हमारे हक से वंचित रखा जाता है. हमें आगे बढ़ने का मौका नहीं दिया जाता है. लिहाजा सरकार को चाहिए कि वह मदरसों पर नजर रखे और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए गंभीर प्रयास करे.
शादाब इब्राहिमी, ब्राम्बे, रांची