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खतरनाक पाकिस्तानी पैंतरा
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीइसी) को पाकिस्तान अपने हर मर्ज की दवा मान रहा है. इस परियोजना की आड़ में वह अपने छद्म राष्ट्रवादी एजेंडे को थोपने की कवायद भी कर रहा है. ग्वादर बंदरगाह पर बलूचिस्तानी विरोध का दमन करने के बाद अब उसकी निगाह अवैध रूप से दखल किये गये गिलगिट-बाल्टिस्तान क्षेत्र पर है. […]
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीइसी) को पाकिस्तान अपने हर मर्ज की दवा मान रहा है. इस परियोजना की आड़ में वह अपने छद्म राष्ट्रवादी एजेंडे को थोपने की कवायद भी कर रहा है. ग्वादर बंदरगाह पर बलूचिस्तानी विरोध का दमन करने के बाद अब उसकी निगाह अवैध रूप से दखल किये गये गिलगिट-बाल्टिस्तान क्षेत्र पर है. दशकों से वहां के संसाधनों की लूट से परेशान स्थानीय बाशिंदे इस परियोजना का पुरजोर विरोध कर रहे हैं.
हालांकि, इस इलाके पर पाकिस्तानी हुकूमत ही चलती है, पर दिखावे के लिए उसने स्वायत्तता का ढोंग रचा हुआ है. लेकिन, पाक-अधिकृत कश्मीर की सीमा से लगनेवाले इस विवादित क्षेत्र पर नियंत्रण मजबूत करने के लिए पाकिस्तान अब इसे अपने पांचवें प्रांत का दर्जा देने की तैयारी में है. माना जा रहा है कि इसमें चीनी हित भी कारक हैं. सियाचिन ग्लेशियर के नजदीक होने और हाइड्रो क्षमताओं से संपन्न इस क्षेत्र को चीन सामरिक नजरिये से बेहद महत्वपूर्ण मानता है. वृहत्तर कश्मीर का मुद्दा पाकिस्तान सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती है. सीपीइसी प्रोजेक्ट के लिए यदि पाकिस्तान राजनीतिक रूप से अस्थिर इस क्षेत्र के मुद्दे पर जल्दबाजी में कोई फैसला करता है, तो अशांति और अस्थिरता के रूप में इसका बड़ा खामियाजा पाकिस्तान समेत पूरे इलाके को भुगतना पड़ सकता है. वर्ष 1947 से कब्जेवाले कश्मीर में पाकिस्तान का रवैया दुर्भावनाओं से भरा रहा है. हाल के वर्षों में नागरिक अधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ लोगों ने आवाजें भी उठायी हैं.
उनका आरोप है कि हाइड्रोइलेक्ट्रिक, पर्यटन, खनन और व्यापार से मिलनेवाले राजस्व का बड़ा हिस्सा पाकिस्तान खुद इस्तेमाल करता है. निवासियों को सांप्रदायिक आधार पर बांट कर अपने स्वार्थ साधने की कोशिशें भी लंबे समय से जारी हैं. पाकिस्तानी सरकार और सेना भारत-विरोधी एजेंडे को भी हवा देते रहे हैं, जो इस क्षेत्र में हिंसा और अशांति का बड़ा कारण है.
भारत ने चीन और पाकिस्तान के सामने पाक-अधिकृत कश्मीर और गिलगिट-बाल्टिस्तान में आर्थिक गलियारा बनाये जाने पर अपनी आपत्ति पहले ही जता दी है. यदि दोनों देश भारत के साथ बेहतर संबंधों के हिमायती हैं और दक्षिण एशिया में स्थिरता चाहते हैं, तो उन्हें विवादित क्षेत्रों में यथा-स्थिति बनाये रखने की कोशिश करनी चाहिए. भारत को भी इस संबंध में दबाव बनाने के लिए पुरजोर कूटनीतिक प्रयास जारी रखना चाहिए.
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