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स्वतंत्र चिंतन की आड़ में अलगाववाद

आज मैंने एक पाठक की ‘छद्म राष्ट्रवाद का खतरा’ शीर्षक से िचट्ठी पढ़ी, जिसमें उन्होंने 10 मार्च के संपादकीय लेख ‘ये जो मर्दाना राष्ट्रवाद है’ का जिक्र करते हुए कहा कि इस लेख ने तथाकथित राष्ट्रवाद की पोल खोल कर रख दी. दिल्ली विश्वविद्यालय का एक छात्र होने के नाते बीते दिनों यहां जो कुछ […]

आज मैंने एक पाठक की ‘छद्म राष्ट्रवाद का खतरा’ शीर्षक से िचट्ठी पढ़ी, जिसमें उन्होंने 10 मार्च के संपादकीय लेख ‘ये जो मर्दाना राष्ट्रवाद है’ का जिक्र करते हुए कहा कि इस लेख ने तथाकथित राष्ट्रवाद की पोल खोल कर रख दी. दिल्ली विश्वविद्यालय का एक छात्र होने के नाते बीते दिनों यहां जो कुछ भी हुआ है, हमने बहुत करीब से देखा और जाना है.
बहुत दुःख हुआ यह देख कर कि कैसे कुछ लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर देशविरोधी नारे लगाने वालों का समर्थन कर रहे हैं. यहां कैसे कुछ वामपंथी छात्रों और शिक्षकों ने एक एजेंडे के तहत पहले अफजल प्रेमी उमर खालिद को आमंत्रित किया और फिर विरोध होने पर राष्ट्रविरोधी नारे लगा कर हमारे राष्ट्र की संप्रभुता, एकता एवं अखंडता पर प्रहार किया है. स्वतंत्र चिंतन के नाम पर भारत के टुकड़े करने की बात करना क्या संवैधानिक है? हम दिल्ली विश्वविद्यालय को जेएनयू-2 नहीं बनने देंगे.
शशिधर वत्स, ईमेल से

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