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राजनीति की भाषाई अशालीनता

उत्तर प्रदेश में चुनावी रणभूमि में बयानबाजियों का महाभारत जोर पकड़ रहा है. राजनीति का ऐसा दंगल कहीं नहीं देखा जा सकता. क्या सीएम और क्या पीएम सभी बढ़-चढ़ कर एक दूसरे पर तीखे बयान कसते दिख रहे हैं. चलिए बयानबाजी तक तो ठीक है, लेकिन ये क्या कि अपनी भाषा की मर्यादा भी पार […]

उत्तर प्रदेश में चुनावी रणभूमि में बयानबाजियों का महाभारत जोर पकड़ रहा है. राजनीति का ऐसा दंगल कहीं नहीं देखा जा सकता. क्या सीएम और क्या पीएम सभी बढ़-चढ़ कर एक दूसरे पर तीखे बयान कसते दिख रहे हैं. चलिए बयानबाजी तक तो ठीक है, लेकिन ये क्या कि अपनी भाषा की मर्यादा भी पार कर दें .
मोदी जी के अनुसार, उत्तर प्रदेश में धर्म के नाम पर भेदभाव हो रहे हैं उनका यह कथन कि “रमजान में बिजली मिलती हैं, तो दिवाली में भी मिले” और “गांव में कब्रिस्तान बनता हैं, तो शमशान भी बनना चाहिए” इस तरह से राष्ट्र के प्रधानमंत्री का मात्र किसी पार्टी पर निशाना साधने भर के लिए जाती और धर्म के भेदभाव का आरोप लगाना क्या उनके पद की गरिमा को शोभा देता है.
उत्तर प्रदेश के सीएम अखिलेश यादव ने एक चुनावी रैली के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर पलटवार करते हुए कहा कि, “गुजरात में टीवी पर गधों का प्रचार कराया जाता हैं और वहां के लोग यूपी में आकर श्मशान और कब्रिस्तान की बात करते हैं”. चुनावी जीत के लिए ऐसे ओछे बयान आखिर कहां तक जायज है? चाहे पीएम हो या सीएम, जिन लोगों को अपने शब्दों पर लगाम लगाने का तरीका न आता हो, वह लोग भला आतंकवाद और भ्रष्टाचार जैसी आपराधिक गतिविधियों पर क्या लगाम लगायेंगे?
पूजा कुमारी, दिल्ली

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