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मंद पड़ेगी हमारी अर्थव्यवस्था
डॉ भरत झुनझुनवाला अर्थशास्त्री इस समय मंदी की ओर संकेत करनेवाले चार कारक एक साथ उत्पन्न हो गये हैं. पहला कारक अमेरिकी केंद्रीय बैंक ‘फेड’ द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि किया जाना है. दो सप्ताह पूर्व फेड ने ब्याज दरों में 0.25 प्रतिशत की मामूली वृद्धि की थी, और कहा था कि 2017 में इनमें […]
डॉ भरत झुनझुनवाला
अर्थशास्त्री
इस समय मंदी की ओर संकेत करनेवाले चार कारक एक साथ उत्पन्न हो गये हैं. पहला कारक अमेरिकी केंद्रीय बैंक ‘फेड’ द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि किया जाना है. दो सप्ताह पूर्व फेड ने ब्याज दरों में 0.25 प्रतिशत की मामूली वृद्धि की थी, और कहा था कि 2017 में इनमें तीन बार और वृद्धि किये जाने की संभावना है. अमेरिका में ब्याज दरों में वृद्धि से विदेशी निवेशकों में प्रवृत्ति बनेगी कि निवेश को भारत से निकाल कर अमेरिका ले जायें. बीते दिनों इन्होंने दो अरब डाॅलर की पूंजी भारत से निकाली है. भारत के शेयर बाजार के टूटने एवं रुपये के नरम पड़ने का यह प्रमुख कारण है. विदेशी पूंजी के वापस जाने से भारतीय कंपनियों के शेयर टूटेंगे और उन्हें निवेश के लिए शेयर बाजार से पूंजी जुटाना कठिन हो जायेगा. इससे अर्थव्यवस्था मंद पड़ेगी.
दूसरा कारक ईंधन तेल के वैश्विक दाम में वृद्धि है. हाल में तेल निर्यातक देशों के संगठन ओपेक ने तेल के उत्पादन में कटौती करने का निर्णय लिया है. इस निर्णय के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम 45 डॉलर प्रति बैरल से बढ़ कर 55 डॉलर प्रति बैरल हो गये हैं. विश्लेषकों का मत है कि ये 70 डाॅलर तक चढ़ सकते हैं. हम भारी मात्रा में तेल का आयात करते हैं. इसके लिए हमारी पूंजी विदेश जाती है. तेल के दाम बढ़ने से हमारी पूंजी का पलायन अधिक होगा. हमारी अर्थव्यवस्था मंद पड़ेगी.
तीसरा कारक नोटबंदी है. इस कदम से घरेलू व्यापारियों में वित्तीय व्यवस्था के प्रति अविश्वास बना है.नब्बे के दशक में सोवियत रूस के विघटन के समय रूसी जनता की बैंकों में जमा रकम डूब गयी थी. इसके बाद रूस की वित्तीय व्यवस्था पर उनका विश्वास डगमगा गया. तब से रूस के लोग अपनी पूंजी को यूरो अथवा डाॅलर में रखते हैं. इसी प्रकार आनेवाले समय में भारत के व्यापारियों द्वारा अपनी बचत को विदेशी मुद्राओं में रखे जाने की संभावना है. हमारी अर्थव्यवस्था मंद पड़ेगी.
चौथा कारक जनता के हाथ में आय का ह्रास है. डिजिटल इकोनॉमी को अपनाने से खरीद पर विक्रेता को टैक्स देना होगा. पहले दुकानदार नकद में माल खरीद कर नकद में बेचता था और इस पर टैक्स अदा नहीं करता था. टैक्स की चोरी से बाजार में माल सस्ता बिकता था. टैक्स देने से माल महंगा होगा और उपभोक्ता की क्रय शक्ति घटेगी. बाजार में मांग कम होगी. डिजिटल इकोनॉमी से बाजार में मांग कम होगी.
इस गहराते अंधेरे में हमें अपनी आर्थिक नीतियों में बदलाव करना चाहिए. अमेरिकी फेड द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि के कारण विदेशी पूंजी को वापस जाने से हम नहीं रोक सकेंगे, परंतु अपनी पूंजी को घर में बने रहने को प्रोत्साहित कर सकते हैं. वर्तमान में मेक इन इंडिया जैसे नारों के सहारे सरकार का प्रयास विदेशी पूंजी को आकर्षित करने का है. इससे भारतीय पूंजी को अनुकूल वातावरण उपलब्ध कराने से हमारा ध्यान हट जाता है. सरकार को चाहिए कि भारतीय पूंजीपतियों से खुली वार्ता करे और उन्हें निवेश को प्रोत्साहित करे, विशेषकर छोटे उद्यमियों से वार्ता करे.
तेल के बढ़ते आयातों का सामना करने का एक उपाय है कि तेल पर टैक्स में और वृद्धि की जाये. जिस प्रकार सरकार जनता को डिजिटल इकोनॉमी की तरफ ले जा रही है, उसी तरह कम ऊर्जा से जीवन निर्वाह करने की ओर ले जाये.
बस तथा मेट्रो में निवेश बढ़ना चाहिए, जिससे प्राइवेट कार का उपयोग कम हो. मैनुफैक्चरिंग के स्थान पर सर्विस सेक्टर को आगे बढ़ाना चाहिए. इसमें ऊर्जा का उपयोग कम होता है. बिजली की खपत की तीव्र प्रोग्रेसिव प्राइसिंग करनी चाहिए. हर देश को अपने संसाधनों के अनुरूप जीवन शैली अपनानी होती है. भारत में ऊर्जा के स्रोत कम हैं.
नोटबंदी से जनता में बने अविश्वास को दूर करना होगा. मूलत: व्यापारी टैक्स चोरी के बजाय टैक्स देकर चैन की नींद सोना चाहता है. लेकिन, भ्रष्ट सरकारी कर्मियों के कारण कुछ व्यापारी टैक्स की चोरी करते हैं. समस्या की जड़ में टैक्स दरों का ऊंचा होना और सरकारी कर्मियों का भ्रष्टाचार है. सरकार को इन मूल कारणों पर प्रहार करना चाहिए. निरीह व्यापारी को कालेधन का दोषी बता कर भर्त्सना करने से व्यापार मंद पड़ेगा. बिना व्यापारी को विश्वास में लिये आर्थिक विकास संभव नहीं है.
अमेरिकी ब्याज दर तथा तेल के दाम में वृद्धि से भारतीय अर्थव्यवस्था दबाव में है. यह समय ऋण लेकर निवेश बढ़ा कर अर्थव्यवस्था को गति देने का है.
सरकार को चाहिए कि डिजिटल इकोनॉमी से हुई अतिरिक्त आय का उपयोग कस्बों में मुफ्त इंटरनेट, उच्च शिक्षा के लिए मुफ्त वाउचर, अंतरिक्ष में अनुसंधान जैसे कार्यक्रमों के लिए करे. तब उपभोक्ता द्वारा अदा की गयी अतिरिक्त रकम घूम कर अर्थव्यवस्था में वापस आ जायेगी.
सुयोधन ने शिखंडी नामक व्यक्ति को अपना सलाहकार बना लिया था. शिखंडी ने सुयोधन को पुण्यात्मा पांडवों के विरुद्ध भड़का दिया. फलस्वरूप सुयोधन की मृत्यु ही नहीं हुई, उसका नाम भी दुर्योधन पड़ गया. प्रधानमंत्री को ऐसे शिखंडियों से बचना चाहिए.
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