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बच्चों के भविष्य से खिलवाड़
इस साल जुलाई से अशांत कश्मीर में हिंसा के बीच स्कूलों को आग लगाने का सिलसिला सबसे भयावह है. इस दौरान उपद्रवियों द्वारा कम-से-कम 19 स्कूलों को जला दिया गया है, जिनमें से अधिकतर दक्षिण कश्मीर के हैं. आगजनी की इन घटनाओं की अब तक न तो किसी ने जिम्मेवारी ली है, और न ही […]
इस साल जुलाई से अशांत कश्मीर में हिंसा के बीच स्कूलों को आग लगाने का सिलसिला सबसे भयावह है. इस दौरान उपद्रवियों द्वारा कम-से-कम 19 स्कूलों को जला दिया गया है, जिनमें से अधिकतर दक्षिण कश्मीर के हैं. आगजनी की इन घटनाओं की अब तक न तो किसी ने जिम्मेवारी ली है, और न ही पुलिस ने किसी को हिरासत में लिया है. घाटी में हालात सामान्य होने पर जब बच्चे स्कूलों में लौटेंगे, तब करीब पांच हजार बच्चों को अपने तबाह स्कूलों की मरम्मत पूरी होने का इंतजार करना पड़ेगा. स्कूलों को जलाने का यह सिलसिला जारी रहा, तो कश्मीर की एक पीढ़ी का भविष्य अंधकारमय हो सकता है.
कश्मीर में 1990 के दशक में जब उग्रवाद का बोलबाला था, तब भी सैकड़ों स्कूलों को उजाड़ा गया था, जिससे बड़ी संख्या में बच्चे जरूरी शिक्षा से वंचित रह गये थे. उग्रवादियों को समझना होगा कि ऐसे कृत्य से वे कश्मीरी बच्चों के भविष्य के साथ खतरनाक खिलवाड़ कर रहे हैं. शिक्षा का अधिकार एक सार्वभौमिक मानवाधिकार है और इसे अवरुद्ध करने का राजनीतिक या नैतिक अधिकार किसी भी व्यक्ति या समूह को नहीं है.
केंद्र और राज्य सरकारों के साथ-साथ कश्मीर के नागरिक संगठनों की भी बड़ी जिम्मेवारी है कि वे ऐसी घटनाओं को रोकने और दोषियों को सजा दिलाने में मददगार बनें. सरकार को भी स्कूलों, भले ही वे अभी खाली पड़े हों, को सुरक्षाबलों के लिए इस्तेमाल करने से परहेज करना चाहिए, ताकि उग्रवादियों को उन्हें निशाना बनाने का बहाना न मिले. अशांति के मौजूदा दौर में कश्मीर की आबादी पहले ही कई तरह की परेशानियों का सामना कर रही है.
हालात सामान्य बनाने के मकसद से संबद्ध पक्षों के बीच संवाद स्थापित करने के प्रयास कई स्तरों पर जारी हैं. इसी कड़ी में पिछले दिनों पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, पूर्व प्रशासनिक अधिकारी वजाहत हबीबुल्लाह, वायुसेना के पूर्व उपाध्यक्ष कपिल काक, वरिष्ठ पत्रकार भारत भूषण और सामाजिक कार्यकर्ता सुशोभा वार्वे ने अलगाववादी गुटों समेत कश्मीर के विभिन्न संगठनों से बातचीत की है.
सिन्हा ने ठीक ही कहा है कि कश्मीरियों को राहत देने के लिए उनके दर्द को ठीक से समझना होगा. उम्मीद है कि ऐसी पहलें आगे भी जारी रहेंगी. घाटी में अमन-चैन बहाल करने के लिए चल रही कोशिशों में शिक्षा पाने के बुनियादी अधिकार को सुनिश्चित करने को प्राथमिकता देनी चाहिए. जवान होती पीढ़ी का शिक्षित होना एक स्थिर भविष्य का महत्वपूर्ण आधार है.
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