विभिन्न खबरों में आजकल चर्चा इस बात को लेकर है कि वीर शिवाजी और सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमा की ऊंचाइयों को लेकर राजनीतिक लड़ाइयां शुरू हो चुकी हैं. गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी सरदार पटेल की दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति स्थापित कराने के प्रयास में लगे हैं, तो वहीं महाराष्ट्र में शिवाजी की मूर्ति स्थापित करने की योजना है. चर्चा है कि यह मूर्ति सरदार पटेल की मूर्ति से भी ऊंची होगी. राजनीतिक पार्टियां हमेशा एक-दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश में लगी रहती हैं. पर, इन सब में शिवाजी-सरदार पटेल का क्या दोष है, जो उनकी मूर्तियों पर प्रतिस्पर्धा शुरू हो गयी है!
बड़ी बात यह है कि मूर्तियां कहीं भी स्थापित हों, लेकिन इसका खर्च करोड़ों नहीं अरबों रुपये का आयेगा. अब जरा सोचिए, इन पैसों का इस्तेमाल राज्य सरकारें अगर जनहित के कामों में करेंगी तो कितने लोगों की दो वक्त की रोटी सुनिश्चित हो जाती! लेकिन इन राजनीतिज्ञों को तो प्रसिद्धि की भूख है, ऐसे में गरीबों की भलाई या दो वक्त की रोटी देकर उन्हें कौन सी प्रसिद्धि मिलेगी? अब तो ऐसा लगता है कि इन दोनों महापुरुषों की ऊंची-ऊंची मूर्तियों के जरिये राजनीतिज्ञ खुद को महान कहलवाना चाहते हैं. सोचने वाली बात तो यह है कि वीर शिवाजी और सरदार
पटेल के ऊंचे आदर्शो, विचारों और सिद्घांतों को तो कोई पार्टी ऊंचा नहीं कर पा रही है. उनकी ऊंची मूर्तियां बनाने से उनके ऊंचे आदर्शो, विचारों और सिद्घांतों को भुलाया जा रहा है. हमारे राजनीतिज्ञों को चाहिए कि उन महापुरुषों के आदर्शो, विचारों और सिद्घांतों को पालन करें और जनता की भलाई में उनका उपयोग करें. इससे महापुरुषों की आत्माओं को सुकून मिलता.
रवि टुडू, ई-मेल से