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भाजपा-पीडीपी का ढहता गंठबंधन

पवन के वर्मा स्तंभकार एवं पूर्व प्रशासक कश्मीर के शानदार बागीचों के स्वादिष्ट सेब जमीन पर पड़े सड़ रहे हैं. जल्दी ही अखरोट की भी हालत ऐसी ही हो जायेगी. घाटी में लगे कर्फ्यू की वजह से फलों को बाहर ला पाना संभव नहीं है. पूरे समुदाय की कमाई खत्म हो चुकी है. जल्दी ही […]

पवन के वर्मा

स्तंभकार एवं पूर्व प्रशासक

कश्मीर के शानदार बागीचों के स्वादिष्ट सेब जमीन पर पड़े सड़ रहे हैं. जल्दी ही अखरोट की भी हालत ऐसी ही हो जायेगी. घाटी में लगे कर्फ्यू की वजह से फलों को बाहर ला पाना संभव नहीं है. पूरे समुदाय की कमाई खत्म हो चुकी है.

जल्दी ही ठंड भी दस्तक देगी. औसतन 14 हजार फीट और उससे अधिक ऊंचाई के साथ नियंत्रण रेखा की 700 किलोमीटर की सीमा लगती है. नियंत्रण रेखा के किनारों पर बर्फ की 20 फीट मोटी परत जमा हो जायेगी. कंटीले तारों के बाड़ की ऊंचाई मात्र 12 फीट है और वह बर्फ के नीचे दफन हो जायेगा. बर्फ के साथ घना कोहरा भी होता है. ऐसे में हमारे बहादुर जवान कुछ फीट से आगे नहीं देख पायेंगे. पाकिस्तान अपने जिहादियों का सीमा पार भेजने के लिए ऐसे ही वक्त का इंतजार कर रहा है.

कश्मीर अभूतपूर्व संकट की स्थिति में है. पहले भी संकट पैदा हुए हैं, लेकिन इस बार एक बड़ा फर्क दिख रहा है- युवाओं में दुराव और क्रोध. उन्हें इस बेमानी हिंसा से दूर करना होगा और समूचे युवा वर्ग में राष्ट्र की मुख्यधारा के लाभों के प्रति उम्मीद की भावना जगानी होगी. सर्वदलीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल का दौरा एक सकारात्मक कदम था, लेकिन यह बहुत पहले ही किया जाना चाहिए था. लेकिन केंद्र की भाजपा तथा राज्य की भाजपा-पीडीपी सरकारें ढीलेपन की जकड़ में हैं.

लोकतंत्र की अपनी मजबूरियां होती हैं, और हमारे सामने ऐसे अनेक उदाहरण हैं जहां चुनावी परिणामों के मद्देनजर कट्टर प्रतिद्वंद्वियों ने मिल कर सरकारें बनायी हैं. लेकिन फिर भी, भाजपा-पीडीपी गंठबंधन प्रारंभ से ही नहीं चल पानेवाला, स्वार्थी और सत्ता पर किसी भी तरह काबिज होने की मंशा से बना गंठबंधन है. यह बुनियादी रूप से एक दोषपूर्ण सरकार रही है.

शुरू से ही कोई ऐसा मुद्दा नहीं था जिस पर दोनों सहयोगी एकमत रहे हों. अनुच्छेद- 370, अाफ्स्पा, तथा अशांति और उग्रवाद के कारण तथा इनसे निबटने के उपायों आदि मामलों में दोनों दलों का परस्पर विरोधी दृष्टिकोण रहा है. इसके बावजूद दोनों ने सरकार बनायी और 11 पन्ने के गंठबंधन के एजेंडे पर भी सहमत हो गये. महीनों तक गंठबंधन सहयोगी इसके मसौदे पर उलझते रहे और जम्मू-कश्मीर बिना सरकार के चलता रहा तथा स्थितियां नियंत्रण से परे होती गयीं. जो दस्तावेज तैयार हुआ वह बहुत भ्रामक है. यही वजह है कि यह कागज पर ही बना रहा और लागू नहीं हो सका.

जिस तरीके से कॉमन एजेंडे के मुख्य बिंदुओं से भाजपा मुकर गयी, वह काफी दुर्भाग्यपूर्ण है. उदाहरण के लिए, एजेंडा अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा हुर्रियत कांफ्रेंस सहित सभी राजनीतिक समूहों के साथ बातचीत शुरू करने का जिक्र करता है. लेकिन एक बार मसौदा तैयार कर लेने के बाद कोई कदम नहीं उठाया गया.

हुर्रियत को प्रतिनिधिमंडल से वार्ता के लिए आमंत्रित किया गया, लेकिन यह गंठबंधन सरकार द्वारा नहीं. यह महबूबा मुफ्ती द्वारा भेजा गया, लेकिन मुख्यमंत्री के रूप नहीं. इस आमंत्रण को उन्होंने पीडीपी नेता के तौर पर भेजा था. जब शरद यादव और सीताराम येचुरी जैसे नेताओं ने हुर्रियत नेताओं से मिलने का प्रयास किया, तो गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने आपत्ति नहीं उठायी. लेकिन, उनकी पार्टी, जो वाजपेयी जी के नाम पर इस वार्ता के लिए प्रतिबद्ध थी, ने इससे स्वार्थपूर्ण दूरी रखी.

सैयद शाह गिलानी जैसे कट्टरपंथियों से कानून के दायरे में सख्ती से निबटने की जरूरत है. लेकिन सरकार बनाते समय भाजपा को पूरे होश में इसे स्पष्ट करना चाहिए था. भाजपा ने अपनी प्रतिबद्धता से भागते हुए सारी जिम्मेवारी पीडीपी पर डाल दी है. भाजपा का यही रवैया अाफ्स्पा की

समीक्षा, भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत वाजिब लोगों को जमीन वापस करने, आर्थिक विकास और एनएचपीसी के साथ राजस्व समझौते की समीक्षा, जैसे मुद्दों पर भी दिखता है. इसका परिणाम शासन के ठप होने, ठोस रणनीति की कमी और नीति निर्माण में अस्वीकार्य गतिहीनता के रूप में दिखता है.

जाहिर तौर पर, भाजपा ने अब घाटी में हुर्रियत और इसलामिक कट्टरता के साथ सख्ती से निबटने का फैसला किया है. लेकिन इस नीति को स्वीकार करने से पहले क्या उसने गंठबंधन में सहयोगी पीडीपी से सलाह ली है? महबूबा मुफ्ती के एक अहम सहयोगी मुजफ्फर बेग ने अपने नेता से कहा है कि यदि वह एजेंडा फॉर एलायंस को लागू नहीं कर पाती हैं, तो उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए. इससे स्पष्ट है कि अवसरवादी गंठबंधन के दो सहयोगी परस्पर विरोधी उद्देश्यों की ओर उन्मुख हैं. पाकिस्तान इस ऊहापोह पूरा फायदा उठा रहा है.

सीमापार घुसपैठ बढ़ रही है और ठंड के मौसम में यह और बढ़ेगी. जम्मू-कश्मीर में तेजी से गंभीर होती स्थिति कब तक इस गैर व्यावहारिक भाजपा-पीडीपी गंठबंधन के चंगुल में फंसी रहेगी? भाजपा न सिर्फ इस ढहते गंठबंधन, बल्कि पूरे देश के प्रति जवाबदेह है.

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